26 साल बाद इंसाफ: HC ने कहा-रिकॉर्ड गुम होने पर किसी पात्र को नहीं कर सकते आवंटित प्लॉट से वंचित, मुआवजा दें

26 साल पुराने आवासीय प्लॉट विवाद में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि मूल रिकॉर्ड के गुम होने को आधार बनाकर किसी पात्र आवेदक को प्लॉट आवंटन से वंचित नहीं रखा जा सकता। जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस विकास सूरी ने इसे प्रशासन की लापरवाही, दुर्भावना और कर्तव्य में चूक का उदाहरण बताते हुए आवेदक को 2 लाख रुपये का अनुकरणीय मुआवजा देने का आदेश भी दिया। यह राशि संबंधित उत्तरदाता को अपनी जेब से अदा करनी होगी। हरियाणा निवासी गुरचरण सिंह ने 1982 में लुधियाना टाउन इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट की आवासीय योजना के तहत 125 वर्ग गज के प्लॉट के लिए आवेदन किया था और 950 रुपये बतौर अर्नेस्ट मनी भी जमा कराए थे। 10 सितंबर 1999 को निकाले गए लॉटरी ड्रॉ में गुरचरण सिंह का नाम सफल आवेदकों में आया, लेकिन उन्हें न तो ड्रॉ की सूचना दी गई और न ही आवंटन की जानकारी दी गई। साल 2000 में ट्रस्ट ने यह कहते हुए सभी 19 आवंटनों को रद्द कर दिया कि ड्रॉ से संबंधित मूल रिकॉर्ड गुम हो गया है। बाद में 2012 में ट्रस्ट ने गुरचरण सिंह का प्लॉट बहाल करने का निर्णय लिया, लेकिन 2015 में स्थानीय निकाय विभाग ने यह निर्णय बिना किसी वैध कारण के रद्द कर दिया। कोर्ट ने विभाग की इस कार्रवाई को बिना सोच-विचार के लिया गया फैसला बताते हुए उसकी कड़ी आलोचना की। कोर्ट ने कहा कि विभाग के पास ट्रस्ट के निर्णय को रद्द करने का कोई अधिकार नहीं था, विशेष रूप से तब जब पहले खुद विभाग ने ही पुनर्विचार की सिफारिश की थी। कोर्ट ने माना कि गुरचरण सिंह ने आवेदन और भुगतान से संबंधित जिन दस्तावेज़ों की प्रतिलिपि पेश की, उनकी सत्यता पर कभी कोई सवाल नहीं उठाया गया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ड्रॉ में मिली सफलता को खारिज नहीं किया जा सकता और न ही उन्हें प्लॉट के भौतिक कब्जे से वंचित किया जा सकता है। अंत में कोर्ट ने आदेश दिया कि तीन महीने के भीतर गुरचरण सिंह को उनका प्लॉट दोबारा आवंटित किया जाए और उन्हें उसका भौतिक कब्जा भी सौंपा जाए।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Apr 25, 2025, 14:18 IST
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