कैफ़ भोपाली: उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ

कुटिया में कौन आएगा इस तीरगी के साथ अब ये किवाड़ बंद करो ख़ामुशी के साथ साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ चलते हैं बच के शैख़-ओ-बरहमन के साए से अपना यही अमल है बुरे आदमी के साथ शाइस्तगान-ए-शहर मुझे ख़्वाह कुछ कहें सड़कों का हुस्न है मिरी आवारगी के साथ शा'इर हिकायतें न सुना वस्ल ओ इश्क़ की इतना बड़ा मज़ाक़ न कर शाइरी के साथ लिखता है ग़म की बात मसर्रत के मूड में मख़्सूस है ये तर्ज़ फ़क़त 'कैफ़' ही के साथ

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Feb 19, 2025, 12:07 IST
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