कवि प्रभात: शरीर में दिल है सो धड़कता है मगर इन दिनों वजह दूसरी है

शरीर में दिल है सो धड़कता है मगर इन दिनों वजह दूसरी है धरती पर कोई है जिसके होने की आहट से यह धड़कने लगता है क्या अब ऐसा होगा कि शरीर न हो तो भी चलेगा दिल अब किसी दूसरी और शरीर से कुछ अधिक प्रिय वजह से धड़केगा मैं अपने भीतर और अपने से बाहर और अपने आप ही एक घोंसला बुनने लगा हूं जिसमें यह दूसरी वजह से धड़कने वाला दिल और इसके धड़कने की वज़ह दोनों महफू़ज़ रह सकें मैं घोंसला बुन रहा हूं यह जानते हुए भी कि घोंसलों को आंधियांबिखेर देती हैं आज यह पूरे दिन उसी दूसरी वजह से धड़कता रहा है शरीर का इसने पानी भी नहीं पिया है डर भी रहा हूंकि कल को यह दूसरी वजह रूठ जाए तो क्या होगा इस नाज़ुक का शरीर में यह लौट नहीं पाएगा बाहर यह बच नहीं पाएगा स्मृतियांरह जाएंगी केवल स्मृतियांजो जिन वजहों के लिए बनती हैं उन वजहों के मिटने पर बनती हैं यही वजह है शायद सबसे मीठी स्मृतियों का रंग सबसे ज़्यादा उदास होता है देखो उदासी के उस रंग ने कितना अपने में डुबो लिया है उस दिल को जिसका धड़कना शुरू होना दो दिन पहले की बात है। हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Nov 29, 2025, 15:17 IST
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