Khabaron Ke Khiladi: भाजपा या कांग्रेस? दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP का किससे होगा असल मुकाबला?
दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा जनवरी में हो जाएगी। तीन बार सरकार बना चुके अरविंद केजरीवाल के खिलाफ इस बार कांग्रेस ज्यादा मुखर है और अपनी रणनीति के प्रति वह आश्वस्त भी नजर आ रही है। उम्मीदवार तय करने में भी आप और कांग्रेस, दोनों ने देर नहीं की है। दोनों दल एकदूसरे को लेकर तल्ख और मुखर भी हैं। वहीं, भाजपा ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। इस बार खबरों के खिलाड़ी में इसी विषय पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री, हर्षवर्धन त्रिपाठी, राजकिशोर, समीर चौगांवकर, अवधेश कुमार और पूर्णिमा त्रिपाठी मौजूद थे। कांग्रेस के लिए दिल्ली के चुनाव में कितनी संभावनाएं नजर आ रही हैं पूर्णिमा त्रिपाठी: कांग्रेस को हटाकर ही आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में सरकार बनाई थी, इसलिए असली लड़ाई तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच ही रही है। राज्यों की राजनीति की जब बात आती है, तब इंडिया गठबंधन वहां ज्यादा मायने नहीं रखता। इंडिया गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को रोकने के लिए बना है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच लड़ाई का नतीजा क्या होगा, यह देखना होगा। कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि शायद उसे इस बार सत्ता का मौका मिल जाए। दोनों के बीच अभी और बयानबाजी देखने को मिलेगी। अब कांग्रेस बहुत आक्रामक है। 2013 में कांग्रेस का जो रुख था और आज उसकी जो रणनीति है, उसमें काफी फर्क है। भाजपा दौड़ से बाहर लग रही है। कांग्रेस अपना मौका देख रही है और उस मौके को वह गंवाना नहीं चाह रही है। अवधेश कुमार: कांग्रेस के समझदार लोगों के मन में यह पीड़ा है कि हमने 2013 में क्यों 49 दिन का समर्थन आम आदमी पार्टी को दिया और हम दिल्ली में शून्य हो गए। संदीप दीक्षित, अजय माकन जैसे नेता तो तब भी नहीं चाहते थे कि आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया जाए। कांग्रेस के अंदर एक वर्ग की यह सोच उभर रही है कि जहां-जहां भाजपा है, वहां-वहां हम हैं, लेकिन इस बीच तीसरी पार्टी आ जाए तो हम खत्म हो जाएंगे। इसी वजह से कांग्रेस दिल्ली में उठकर खड़े होने की कोशिश कर रही है। आम आदमी पार्टी अब अजय माकन को सीधे चुनौती दे रही है और उन पर कार्रवाई न होने पर कांग्रेस को इंडिया गठबंधन से बाहर करने की बात कर रही है। इंडिया गठबंधन का तो वैसे भी कोई बड़ा राजनीतिक लक्ष्य नहीं था, यह सिर्फ मोदी विरोधी गठबंधन है। राजकिशोर: जमीनी स्तर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिस तरह काम करता है, वैसा काम अभी दिल्ली में नहीं दिख रहा। अभी अरविंद केजरीवाल भले ही मुख्यमंत्री नहीं हैं, लेकिन चेहरा वही हैं। सवाल यह है कि क्या भाजपा केजरीवाल के मुकाबले कोई बड़ा चेहरा ला पाएगी। कांग्रेस धीरे-धीरे अपनी जमीन पाने की कोशिश कर रही है। आम आदमी पार्टी भाजपा से ज्यादा कांग्रेस की रणनीति से चिंतित नजर आ रही है। कांग्रेस को यह समझ आ गया है कि वह उधार की दोस्ती पर पूरा कर्जा नहीं चुका सकती, उसे अपनी जमीन मजबूत करनी होगी। अजय माकन के हाथ मजबूत करने की बात राहुल गांधी कह रहे हैं। इससे आम आदमी पार्टी के लिए संदेश साफ है। कांग्रेस ने अब तक बहुत सोच-समझकर टिकट बांटे हैं। केजरीवाल इस भावना के साथ आए थे कि वे आम आदमी की समस्याओं को सबसे बेहतर तरीके से समझते हैं, लेकिन अब उनकी छवि बदल चुकी है। एक वर्ग उनसे छिटक चुका है। अनियमित कॉलोनियों की जनसांख्यिकी इस तरह है कि वहां बड़ा लाभार्थी वर्ग रहता है। क्या ये सब वोट बैंक के लिए हो रहा है हर्षवर्धन त्रिपाठी: 2013 में भाजपा की 32, आप की 27 और कांग्रेस की आठ सीटें आई थीं। कांग्रेस और आप के बीच समझौता हो गया। 2015 और 2020 में कांग्रेस शून्य हो गई। भाजपा का वोट प्रतिशत लगभग बना हुआ है। केजरीवाल मजबूत हुए और कांग्रेस कमजोर हो गई। दिल्ली में कोई किसी की बी टीम नहीं है। केजरीवाल का आवरण ध्वस्त हो चुका है। राहुल गांधी अगर कृपा नहीं करेंगे तो केजरीवाल के सामने करो या मरो जैसी स्थिति रहेगी। दो-तीन सांसदों वाली पार्टी 99 सांसदों वाली कांग्रेस को इंडिया गठबंधन से बाहर करने की बात कर रही है। यह हास्यास्पद है। पूरी कांग्रेस आम आदमी पार्टी से लड़ने को तैयार है। राहुल गांधी क्या करते हैं, यह देखना होगा। समीर चौगांवकर: पहली बार शायद आम आदमी पार्टी को लग रहा है कि कोई सत्ता विरोधी लहर हो सकती है। अरविंद केजरीवाल जानते हैं कि इस बार उन्हें बहुत मेहनत करनी होगी। भाजपा अभी सेफ जोन में है। आप और कांग्रेस आपस में जितना लड़ेंगे, उतना भाजपा को फायदा होगा। कांग्रेस जितनी मजबूत होगी, आप का वोट बैंक उतना ही मजबूत होगा। यहां लोकसभा में जनादेश एकतरफा भाजपा को मिलता है और विधानसभा चुनाव में एकतरफा आम आदमी पार्टी जीत जाती है। केजरीवाल के चेहरे के सामने भाजपा या कांग्रेस के सामने कोई चेहरा नहीं है। भाजपा इस बार सम्मानजनक सीटें जीतना चाहती है ताकि वह सरकार न भी बना पाए तो मजबूत विपक्ष की भूमिका में रहे। क्या भाजपा रणनीति में कहीं पिछड़ती दिख रही है विनोद अग्निहोत्री: आम आदमी पार्टी अन्ना आंदोलन से निकली और यह आंदोलन यूपीए की सरकार के खिलाफ था। कांग्रेस ने एक बार समर्थन देकर वापस ले लिया। नुकसान कांग्रेस को ही हुआ। भाजपा के पास डॉ. हर्षवर्धन जैसा भरोसेमंद चेहरा था। वे सरकार नहीं बना पाए तो दिल्ली के वोटरों में उनके लिए सहानुभूति थी। लेकिन भाजपा ने बाद में किरण बेदी को चेहरा बना दिया। इस बीच, केजरीवाल ने मुफ्त सुविधाएं वाली योजनाएं चलाईं और अपना वोट बैंक मजबूत किया। अब कांग्रेस यह चाहती है कि आम आदमी पार्टी के पक्ष में देशभर में जो नरेटिव बन रहा है कि वह भाजपा का मुकाबला कर सकती है, इसे ध्वस्त किया जाए। भाजपा यह चाहती है कि भले ही हमें हार जाएं, लेकिन सरकार आम आदमी पार्टी की ही बने ताकि वह दूसरे राज्यों में कांग्रेस को कमजोर कर सके।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 28, 2024, 20:03 IST
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