खुसरो दरिया प्रेम का उल्टी वाकी धार: आपको स्वयं को दूसरे से प्रेम करते हुए देखना होगा, 'पहले खुद से' उल्टी बात

पहले जितना समय मैं ट्विटर पर बिताता था, अब सबस्टैक पर बिताता हूं, इससे मेरी जिंदगी काफी बेहतर हो गई है। दुनिया में कई दिलचस्प और विविधतापूर्ण लेखक हैं। उदाहरण के लिए, इस हफ्ते मुझे एंटोनिया बेंटेल का एक पोस्ट मिला, जिसमें उन्होंने छह अजनबियों और दोस्तों से पूछा था कि वे प्यार में कैसे पड़ते हैं। एक महिला ने जवाब दिया, मुझे तब प्यार होता है, जब कोई मुझे उस नजर से देखता है, जिस नजर से मैं खुद को नहीं देख पाती। एक युवक ने जवाब दिया, प्यार में पड़ना ऐसा है, जैसे किसी और के मन में खुद को प्रतिबिंबित होते देखना। एक अन्य महिला ने कहा, मुझे तब प्यार होता है, जब मुझे लगता है कि मैं कोई अच्छा काम नहीं कर रही हूं। प्यार तब होता है, जब कोई आपको पूरी तरह से अस्त-व्यस्त अवस्था में देखता है-आपका दर्द, आपकी तुच्छता, आपकी बकाया पार्किंग टिकट। दूसरे व्यक्ति ने कहा, प्यार में पड़ना ऐसा है, जैसे अपने घर के एक ऐसे कमरे में प्रवेश करना, जिसके अस्तित्व के बारे में आपको पता ही नहीं था। इन उत्तरों में जिस बात ने मुझे प्रभावित किया, वह यह कि इन सभी में प्रेम की एक ही परिभाषा है-कि प्रेम तब पनपता है, जब कोई दूसरा व्यक्ति आपको समझता है और आपको आपके बारे में अच्छा महसूस कराता है। हम सब इससे जुड़ सकते हैं। हम सब देखना और निहारना चाहते हैं। आपने शायद रेमंड कार्वर की प्रसिद्ध कविता, लेट फ्रैगमेंट जरूर पढ़ी होगी-और क्या तुम्हें वह मिला जो/तुम इस जिंदगी से चाहते थे, फिर भी/मुझे मिला।/और तुम क्या चाहते थे-खुद को प्रिय कहलाना, खुद को/इस धरती पर प्रिय महसूस कराना। फिर भी मैं कहूंगा कि सबस्टैक के जवाब इस आम गलतफहमी को उजागर करते हैं कि आप कैसे प्रिय बनते हैं। इन जवाबों में ज्यादातर आत्म-सम्मान था और दूसरे व्यक्ति के बारे में ज्यादा कुछ नहीं। और शायद किसी दूसरे व्यक्ति की सेवा या देखभाल करने, या यहां तक कि उसके हितों को अपने हितों से ऊपर रखने के बारे में भी नहीं। दरअसल, ये उन सांस्कृतिक रुझानों के सटीक निष्कर्ष हैं, जिनका वर्णन सामाजिक आलोचक दशकों से करते आ रहे हैं। 1966 में, फिलिप रीफ ने द ट्रायम्फ ऑफ द थेरेप्यूटिक लिखा था, जिसमें तर्क दिया गया था कि साझा नैतिक ढांचों को त्यागकर उनकी जगह चिकित्सकीय मूल्यों को लाया जा रहा है। सर्वोच्च अच्छाई कोई पवित्र आदर्श नहीं, बल्कि व्यक्तिगत कल्याण और मनोवैज्ञानिक समायोजन है। फिर 1979 में, क्रिस्टोफर लाश ने द कल्चर ऑफ नार्सिसिज्म लिखी, जिसमें तर्क दिया गया था कि चिकित्सकीय मूल्य और उपभोक्ता पूंजीवाद मिलकर आत्म-अवशोषित, कमजोर और मान्यता के लिए बेताब आत्ममुग्ध व्यक्ति पैदा करते हैं। ऐसी संस्कृति में लोग स्वाभाविक रूप से प्रेम को उस भावना के रूप में परिभाषित करेंगे, जो उन्हें तब प्राप्त होती है, जब कोई उनकी सकारात्मक और कोमल लालसा को संतुष्ट करता है, न कि किसी ऐसी चीज के रूप में, जो वे निःस्वार्थ भाव से किसी दूसरे को देते हैं। दूसरे कम आत्म-केंद्रित संस्कृतियों और समयों में, प्रेम को आत्म-सुख के बजाय आत्म-त्याग के अधिक निकट माना जाता था। इसे एक ऐसी मजबूत ताकत के रूप में देखा जाता था, जो हमारे स्वाभाविक स्वार्थ पर विजय प्राप्त कर सकती थी। ऐसा प्रेम किसी ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा से शुरू होता है, जो सुंदर, अच्छा और सच्चा लगता है। अचानक आप उसके बारे में सोचना बंद नहीं कर पाते। आपको लगता है कि आप हर भीड़ में उसका चेहरा देखते हैं। फिर आता है विकेंद्रीकरण। आपको एहसास होता है कि आपका सबसे पवित्र खजाना किसी और में है। इस दृष्टिकोण से, प्रेम में पड़ना कोई ऐसा निर्णय नहीं है, जो आप अपने फायदे के लिए लेते हैं, बल्कि यह एक काव्यात्मक समर्पण है, जिसे आप स्वीकार करते हैं, अक्सर बिना इसकी कीमत लगाए। यह सशक्तीकरण नहीं है, बल्कि इसमें आत्म-नियंत्रण का ह्रास शामिल है। कवि जॉन ओ'डोनोह्यू ने लिखा, आकर्षण के साथ एक प्यारी-सी अव्यवस्था आती है। जब आप खुद को किसी के प्रति आकर्षित पाते हैं, तो धीरे-धीरे जीवन को नियंत्रित करने वाले ढांचों पर अपनी पकड़ खोने लगते हैं। जैसे-जैसे वह चेहरा स्पष्ट होता जाता है, आपके जीवन का अधिकांश हिस्सा धुंधला होता जाता है। एक चुंबक आपके विचारों को अपनी ओर खींचता है। जब आप साथ होते हैं, तो समय तेजी से बीत जाता है। और जैसे ही अलग होते हैं, अगली मुलाकात की कल्पना करने लगते हैं। प्रेम कोई भावना नहीं है, हालांकि यह कई भावनाओं को जगाता है। यह किसी के करीब होने और उसकी सेवा करने की इच्छा की प्रेरक अवस्था है। यह एक-दूसरे के बीच की सीमा को धुंधला कर देता है। एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ यह मेल देने और लेने के बीच के अंतर को कम कर देता है, क्योंकि जब आप अपने प्रिय को देते हैं, तो लगता है जैसे आप अपने ही एक अंश को दे रहे हैं, और यह देना, लेने से ज्यादा आनंददायक होता है। इस देने यानी प्रेम का लक्ष्य, दूसरे के जीवन को बेहतर बनाना है। मनोविश्लेषक और दार्शनिक एरिक फ्रॉम ने 1956 में अपनी पुस्तक, द आर्ट ऑफ लविंग में तर्क दिया कि प्रेम एक भावना नहीं है, यह एक अभ्यास है, कला है। उन्होंने लिखा, प्रेम उस चीज के जीवन और विकास के लिए सक्रिय चिंता है, जिसे हम प्यार करते हैं। इसके लिए अनुशासन, देखभाल, सम्मान, ज्ञान और आत्ममुग्धता पर विजय की आवश्यकता होती है। यह प्रेम का एक रूप है। मैं यह नहीं कह रहा कि उस जमाने में लोग सचमुच इस परोपकारी तरीके से जीते थे, लेकिन यह एक प्रचलित सामाजिक आदर्श था, जिस पर काम करना जरूरी था। आज लोग जिस तरह के प्रेम का वर्णन कर रहे हैं, वह एक उमड़ता हुआ प्रेम है। प्रेम की इस अवधारणा में, प्रेम का एहसास दो लोगों को एक-दूसरे को समर्पित करने के बाद प्राप्त होने वाला बाइप्रोडक्ट है। इसमें आत्म-केंद्रीयता हमारी मुख्य समस्या है, और प्रेम एक स्वादिष्ट और मांगलिक उपाय है। विवाह इस उदारता को संस्थागत बनाने का प्रयास है, ताकि उन्माद के मिट जाने के बाद भी यह बना रहे। लंबे समय से यह धारणा प्रचलित है कि आत्म-केंद्रित होना हमारी मुख्य समस्या है। इसके लिए हमारे पास बहुत सारे मैं दशक हैं। आत्म-विनाश (मैं किसी से बेहतर नहीं हूं और कोई भी मुझसे बेहतर नहीं है) की जगह अब आत्म-प्रदर्शन की भावना ने ले ली है। अगर आपको मुझ पर शक है, तो इंस्टाग्राम, टिकटॉक या अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को देख लीजिए। चारों ओर व्याप्त सामान्य दुख और अलगाव आंशिक रूप से उपचारात्मक, आत्ममुग्धता और प्रदर्शनकारी संस्कृति के क्रमिक निर्माण का परिणाम है। जब संस्कृति लोगों को अपनी आवश्यकताओं को आदर्श बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है, तो इससे मजबूत लोग नहीं, बल्कि जरूरतमंद, संवेदनशील और असुरक्षित लोग पैदा होते हैं। एक आत्ममुग्ध व्यक्ति को प्यार करने में परेशानी होती है, क्योंकि वह किसी दूसरे व्यक्ति को असल में देख ही नहीं पाता। वह सिर्फ यही समझ पाता है कि दूसरे लोग उस पर क्या असर डाल रहे हैं। हैरानी की बात नहीं है कि जो संस्कृति आत्म-केंद्रित है, वह प्रेम के उल्टे सिद्धांत गढ़ती है। मैं कभी-कभी लोगों को यह कहते सुनता हूं कि दूसरों से प्रेम करने से पहले आपको स्वयं से प्रेम करना होगा। पर यह एक उल्टी बात है। इससे पहले कि आप स्वयं को प्रेम योग्य समझें और इससे पहले कि आप वास्तव में प्रेम योग्य हों, आपको स्वयं को दूसरों से प्रेम करते हुए देखना होगा।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Sep 07, 2025, 07:57 IST
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