कुशल दौनेरिया की ग़ज़ल: आँखों के साथ उसे मिरा हँसना नहीं पसंद

आँखों के साथ उसे मिरा हँसना नहीं पसंद दरिया हो या हो घाव उसे गहरा नहीं पसंद तुम को तो मुझ से गुफ़्तुगू करना पसंद था अब क्यों मिरी मज़ार पे रुकना नहीं पसंद तारीख़ आ चुकी है उधर कार्ड छप गए अब कब कहेगी तुझ को वो लड़का नहीं पसंद कपड़ों से इत्र तक या किताबों से हार तक वो बोले तो सही कि उसे क्या नहीं पसंद इक दिन पड़ा मिला था मुझे रास्तों पे और इक दिन सुना उसे मिरा छूना नहीं पसंद हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 15, 2025, 18:43 IST
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