भाषायी स्वाभिमान: मराठी भाषा के बहाने भाषाबोध की पड़ताल... महाराष्ट्र सरकार के फैसले से जगी रोजगार की आशा
राजनीति और महाकुंभ के समाचारों की आपाधापी के बीच एक महत्वपूर्ण समाचार हिंदीभाषी समाज में अनदेखा रह गया। यह समाचार भाषायी स्वाभिमान से जुड़ा हुआ है। दरअसल, महाराष्ट्र सरकार के मराठी भाषा को पूरे महाराष्ट्र के सरकारी कार्यालयों में अनिवार्य रूप से लागू करने के आदेश के आलोक में हिंदीभाषी राज्यों की ओर देखें, तो ऐसा भाषायी स्वाभिमान कम ही नजर आता है। अब महाराष्ट्र के सभी सरकारी कार्यालयों, नगर निकायों, नगर निगमों और सार्वजनिक कंपनियों में मराठी में काम करना जरूरी होगा। इसके तहत वहां लगे कंप्यूटरों के की-पैड और प्रिंटर पर रोमन के साथ मराठी देवनागरी लिपि में टैक्स्ट लिखना जरूरी हो गया है। ऐसा नहीं कि सिर्फ सरकारी कर्मचारी और अधिकारी ही मराठी में काम करेंगे, बल्कि इन दफ्तरों से जिनका पाला पड़ना है या जिन्हें आना है, उन्हें भी मराठी में ही बातचीत और दस्तावेजी कार्यवाही आदि करनी होगी। इस नियम से सिर्फ उन्हें छूट मिलेगी, जो विदेशी हैं या महाराष्ट्र के बाहर से आए हैं या मराठी भाषी नहीं हैं। राज्य सरकार के कार्यालयों और राज्य की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों या दूसरे इंटरप्राइजेज के नाम वाले बोर्ड पर मराठी में भी लिखना जरूरी होगा। साथ ही इन दफ्तरों आदि में नोटिस भी मराठी भाषा में ही लिखना होगा। आदेश में कहा गया है कि नए व्यवसायों को अपना नाम मूल मराठी में रजिस्टर करना चाहिए। महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लागू करना और मराठी में ही कामकाज भाषायी के साथ ही राजनीतिक मुद्दा रहा है। एक दौर में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और शिवसेना के लोग मराठी भाषा का इस्तेमाल न करने वाले कार्यालयों और अधिकारियों पर हमला करने से भी नहीं चूकते थे। उस समय भी बाहरी छात्रों के विरोध का आधार सिर्फ बाहरी लोगों द्वारा नौकरियों पर कब्जा जमाना नहीं, बल्कि गैर मराठीभाषी को तवज्जो मिलना भी रहा। मराठी को लेकर महाराष्ट्र में स्नेह और गौरवबोध की परंपरा रही है। मराठी भाषा को बढ़ावा देने के लिए 1964 में ही राज्य ने महाराष्ट्र राजभाषा अधिनियम पारित किया था, जिसमें कहा गया है कि महाराष्ट्र में प्रस्ताव, पत्र और परिपत्र समेत सभी आधिकारिक दस्तावेज मराठी में होने चाहिए। 2024 में हुए विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राज्य की एकनाथ शिंदे सरकार ने मराठी भाषा नीति बनाई, जिसमें मराठी भाषा के संरक्षण, संवर्धन, प्रसार और विकास के लिए सभी सार्वजनिक मामलों में मराठी के इस्तेमाल की सिफारिश की गई है। फिर बीते अक्तूबर में मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देते वक्त कहा गया था कि इसके बाद मराठी शिक्षा और शोध के क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। नए आदेश के तहत मराठी भाषा में बात करना अधिकारियों के लिए जरूरी कर दिया गया है। अगर इन नियमों का पालन नहीं होता या कोई अधिकारी उल्लंघन करता है, तो इसकी शिकायत मराठी भाषा समिति में की जा सकेगी। समिति संबंधित अधिकारियों को दंडित भी कर सकेगी। भाषा बोध के नजरिये से देखें, तो मराठी भाषा के विस्तार और विकास की दिशा में उठाए गए महाराष्ट्र सरकार के इस कदम की सराहना ही होगी। सवाल उठ सकता है कि हिंदी में ऐसा बोध क्यों नहीं दिखता। जिस तरह पूरे देश में केंद्रीय स्तर पर भारतीय राष्ट्रबोध है, भाषा के संदर्भ में कुछ ऐसी ही स्थिति हिंदी की भी है। मराठी, बांग्ला या कन्नड़, मलयालम की तरह हिंदी कोई संकेंद्रित भाषा नहीं है, बल्कि भाषाओं का एक समुच्चय है। हिंदीभाषी क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर कई भाषाएं और बोलियां हैं। लोग अपने क्षेत्र की स्थानीय भाषाओं या बोलियों का ही आपसी संवाद और संचार में प्रयोग करते हैं, लेकिन जब औपचारिक संवाद की जरूरत होती है, तभी हिंदीभाषी क्षेत्र का स्थानीय समाज हिंदी का प्रयोग करता है। इस तरह से हिंदीभाषी क्षेत्रों में प्रयोग के लिहाज से हिंदी की स्थिति द्वितीयक स्तर की है। इसीलिए शायद हिंदीभाषी समाज भाषा को लेकर उपराष्ट्रीयता वाले समाजों की तरह आक्रामक या अस्मिताबोध से नहीं भर पाता। हिंदी के साथ अनाचार होता है, उपेक्षा होती है, तो भी हिंदीभाषी समाज नहीं उठता। जबकि उपेक्षा करने वाली ताकतें, जिनमें ज्यादातर नौकरशाह और कुछ हद तक राजनीतिज्ञ भी हैं, उपराष्ट्रीयता वाले इलाकों की भाषाओं के साथ नहीं कर पातीं। अगर वे ऐसा करने की कोशिश भी करती हैं, तो स्थानीय अस्मिताओं की म्यान में रखी संघर्ष की तलवारें बाहर निकल आती हैं, जिनमें अक्सर स्थानीय भाषाबोध और अस्मिताएं ही विजयी होती रही हैं। मराठी को लेकर महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले की सराहना सिर्फ इसलिए नहीं बनती कि वह शिक्षा और शोध में मराठी के जरिये रोजगार का मौका उपलब्ध कराने जा रही है, बल्कि इसलिए भी है कि उसने अपने नागरिकों के भाषायी गौरव और अस्मिताबोध को अभिव्यक्त किया है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Feb 18, 2025, 04:09 IST
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