दूसरा पहलू : चार सौ साल से वीरान पड़ा है आलीशान सतखंडा महल, लाखों हुए खर्च पर आए नहीं जहांपनाह
शायद सन्नाटा ही इस आलीशान सात मंजिला महल का करीब चार सौ वर्षों से हमसफर है। महज एक दिन मुगल बादशाह जहांगीर के रहने के लिए बनाए गए इस महल को स्थानीय लोग सतखंडा महल कहते हैं। अफसोस यह कि जहांगीर यहां कभी नहीं आ पाए, और स्वास्तिक के आकार की यह इमारत आबाद न हो सकी। मध्य प्रदेश के दतिया में स्थित यह महल कई मायनों में इतिहास की अजूबी दास्तान समेटे खामोशी से खड़ा है। इस ऐतिहासिक कथा का सिरा ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला (1605-1627) से जुड़ता है। वह चाहते थे कि उनके मित्र और मुगल शासक जहांगीर उनकी भेंट को स्वीकार करें। इसी वजह से दतिया में एक भव्य महल का निर्माण शुरू किया गया। लेकिन जहांगीर ने विनम्रता से इस न्योते को ठुकरा दिया। दरअसल, जहांगीर जब शहजादे सलीम थे, तब उन्होंने अकबर के खिलाफ विद्रोह किया था, तो वीर सिंह बुंदेला ने ही मुगल सेनापति अबुल फजल का सिर नरवर में कलम किया था। 440 कमरों और सात तलों वाली इस इमारत को कभी भी रहने के उद्देश्य से नहीं बनाया गया था, वीर सिंह ओरछा में रहते थे। उन्होंने जहांगीर के लिए दतिया में छोटे-बड़े 52 महल बनवाए थे। लेकिन सबसे शानदार यही है। कुछ लोग इसे पुराना महल भी कहते हैं। इसे गोविंद महल, गोविंद मंदिर, जहांगीर महल, बीर सिंह महल के नाम से भी जाना जाता है। नई दिल्ली के वास्तुविद सर एडवर्ड लुटियंस इस इमारत की वास्तुकला से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसका इस्तेमाल दिल्ली में नॉर्थ और साउथ ब्लॉक को डिजाइन करने में किया। महल की ख्याति सुन 1818 में ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स और 1902 में वायसराय लॉर्ड कर्जन ने यहां दरबार लगाया था। वर्ष 1635 में मुगल बादशाह शाहजहां के साथ यहां आए इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी ने इसे बेहद शानदार बताया था। महल के निर्माण में नौ साल लगे और 35 लाख रुपये लागत आई। मथुरा में वीर सिंह को सोने में तोला गया था, उसका इस्तेमाल इसे बनाने में किया गया। गाइड लखनलाल रजक बताते हैं कि आपको इसकी पांच ही मंजिलें नजर आएंगी। दो मंजिलें जमीन के अंदर हैं। जमीन में भी कमरों व सुरंगों का जाल है। इसे बनाने में लोहे या लकड़ी का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इमारत पत्थर और ईंटों के दम पर खड़ी है। इस महल तक पहुंचने का रास्ता गलियों से होकर गुजरता है। लेकिन एक बार जब आप इसके सामने होते हैं, तो आसपास का परिवेश बेमानी हो जाता है और एक सन्नाटा-सा अंदर तक पसर जाता है।शायद यही इस महल की नियति है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Feb 27, 2025, 06:52 IST
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