Mahakumbh 2025: प्रयागराज में संगम के किनारे स्थित है अक्षय वट, जानिए पौराणिक महत्व और इससे जुड़े प्रसंग

Mahakumbh 2025: इस पृथ्वी पर करोड़ों वृक्ष हैं, लेकिन उनमें से कुछ वृक्ष ऐसे में भी हैं जो हजारों वर्षों से जिंदा है और कुछ ऐसे हैं जो चमत्कारिक हैं। हिन्दू धर्मानुसार 5 वटवृक्षों का महत्व अधिक है। अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट के बारे में कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता है। अक्षय वट, जिसे भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में अत्यंत पवित्र माना जाता है, पौराणिक कथाओं और आस्थाओं से जुड़ा हुआ है। यह वट वृक्ष उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में स्थित है और संगम क्षेत्र में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम के निकट इसका स्थान है। इसे अक्षय वट इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अजर-अमर माना गया है और इसका अस्तित्व सृष्टि के आरंभ से ही है। अक्षय का अर्थ होता है जिसका कभी क्षय न हो, जिसे कभी नष्ट न किया जा सके। इसीलिए इस वृक्ष को अक्षय वट कहते हैं। वट का अर्थ बरगद, बड़ आदि। इस वृक्ष को मनोरथ वृक्ष भी कहते हैं अर्थात मोक्ष देने वाला या मनोकामना पूर्ण करने वाला। यह वृक्ष प्रयाग में संगम तट पर हजारों वर्षों से स्थित है। धार्मिक महत्व अक्षय वट को मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस वृक्ष के दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है और जीवन-मरण के बंधनों से मुक्ति मिलती है। त्रिवेणी संगम के पास स्थित होने के कारण यह तीर्थयात्रियों और श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। माघ मेले और कुंभ मेले के दौरान यहाँ लाखों भक्त आते हैं और इसे पवित्र मानकर इसकी परिक्रमा करते हैं। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, अक्षय वट की पूजा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। महाभारत और पुराणों में इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश द्वारा संरक्षित बताया गया है। इसे त्रिदेवों की कृपा का स्थान माना जाता है। Mahakumbh 2025:महाकुंभ में गंगा स्नान से पहले जान लें इसके नियम, नहीं आएगी कोई बाधा इतिहास अक्षय वट का उल्लेख अनेक धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण और महाभारत में इसका वर्णन किया गया है। यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे कई ऋषि-मुनियों ने तपस्या की थी और वेदों का ज्ञान प्राप्त किया था। इसके अलावा, यह वृक्ष उन स्थानों में से एक है जहाँ भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण के साथ विश्राम किया था। Maha Kumbh 2025:कब से शुरू हो रहा है महाकुंभ जानें शाही स्नान की तिथियां और महत्व पौराणिक कथाएं सृष्टि के आरंभ की कथा: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि के आरंभ में जब जल प्रलय हुआ था, तब अक्षय वट ही एकमात्र वृक्ष था जो उस प्रलय से अडिग रहा। अक्षयवट कहलाने वाले इस वृक्ष के एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। इसे भगवान विष्णु की कृपा का प्रतीक माना गया। Maha Kumbh 2025:महाकुंभ मेले में पेशवाई क्या है जानें कौन ले सकता है इसमें भाग संतों की तपस्या का स्थान: यह वृक्ष उन ऋषि-मुनियों का तपस्थल माना जाता है जिन्होंने मोक्ष की प्राप्ति के लिए यहां तप किया। कहा जाता है कि ऋषि मार्कंडेय ने भी इस वट वृक्ष के नीचे तपस्या की थी।जैनों का मानना है कि उनके तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी। प्रयाग में इस स्थान को ऋषभदेव तपस्थली (या तपोवन) के नाम से जाना जाता है। भगवान राम का वनवास: जब भगवान राम अपने वनवास के दौरान प्रयागराज आए, तो उन्होंने इस वट वृक्ष के नीचे विश्राम किया। यही कारण है कि इसे रामभक्तों के लिए भी पवित्र माना जाता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jan 06, 2025, 08:25 IST
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