विश्लेषण: चुनाव से पहले दीदी का बंगाली राग, बंगाली अस्मिता के नाम पर गैर-मुद्दे को बना रहीं मुद्दा

देश के कुछ राज्यों में राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए जब-तब क्षेत्रीयता को हवा दी जाती रही है। महाराष्ट्र के बाद अब बंगाली अस्मिता के नाम पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसे भड़का रही हैं। बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ देशव्यापी अभियान और उसके बाद बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण से उन दलों में बेचैनी है, जो इन घुसपैठियों को अपना वोटबैंक मानते आए हैं। ममता इसे बांग्ला बोलने वाले बंगालियों के उत्पीड़न के रूप में प्रचारित कर रही हैं। परोक्ष रूप से धमकी देते हुए उन्होंने यहां तक कह दिया है कि क्या मैंने कभी हिंदीभाषियों को बंगाल छोड़ने के लिए कहा है दरअसल, बिहार के बाद पश्चिम बंगाल में भी वोटर लिस्ट के विशेष पुनरीक्षण की खबर से दीदी बेचैन हैं। इसलिए इस कवायद में शामिल होने वाले ब्लॉक स्तर के अधिकारियों (बीएलओ) तक को धमका दिया है कि एक भी नाम कटा, तो ठीक नहीं होगा। तृणमूल कांग्रेस के भाषा बचाओ आंदोलन के कैलेंडर से तो पश्चिम बंगाल और देश के प्रबुद्ध लोग चकित हैं कि भाषा पर कब और कैसे संकट आ गया यह 2026 के चुनाव को देखते हुए संस्थागत रूप ले चुके भ्रष्टाचार, राजनीतिक हिंसा, कुशासन, अराजकता की काली घटाओं से पैदा हुई एंटी-इन्कंबैंसी की धार को कुंद करने का प्रयास लगता है। रवींद्रनाथ टैगोर की धरती बोलपुर में बांग्ला भाषा के समर्थन में 28 जुलाई को की गई पदयात्रा ने ममता बनर्जी की भविष्य की राजनीति का संकेत दे दिया है। देश के कई राज्यों में घुसपैठियों, खासकर बांग्लादेश से आए मुस्लिमों व रोहिंग्याओं की पहचान करने, उनकी अवैध बस्तियों को गिराने, उन्हें डिटेंशन सेंटर में रखने या वापस बांग्लादेश भेजने की छिटपुट कार्रवाइयां हो रही हैं। मगर पश्चिम बंगाल की बात निराली है। पहले तो मुद्दा बना कि प्रवासी बंगालियों का भाजपा शासित राज्यों में उत्पीड़न हो रहा है, फिर तृणमूल की 21 जुलाई की शहीद रैली में इसे बांग्ला भाषा पर संकट के रूप में दिखाया गया। रैली में कहा गया कि बंगाली बोलने वाले प्रवासी असुरक्षित हैं। मुख्यमंत्री या उनके नेता घुसपैठियों का नाम तक नहीं ले रहे हैं। दिखाया जा रहा है कि जैसे बंगाली बोलने वाले सब बंग संतान हैं और उनकी एकमात्र रक्षक ममता बनर्जी हैं। जिस राज्य में पांच से बीस हजार रुपये लेकर आधार कार्ड, पासपोर्ट और वोटर कार्ड बनाने का कुटीर उद्योग चल रहा हो, वहां स्थानीय बंगाली और घुसपैठिये बंगाली में भेद करना वाकई मुश्किल है। कागजात तैयार होते ही ये घुसपैठिये दूसरे राज्यों की ओर रुख करते हैं, क्योंकि बंगाल में काम नहीं है। इस खेला में गाल-गोद (नियम तोड़ना) कितना है, इसकी एक मिसाल देखें। हाल ही में नवी मुंबई के भासी इलाके में बंगाल के बादुरिया निवासी अबू बकर का शव बोरे में मिला। इस पर तृणमूल कांग्रेस ने एक्स हैंडल पर लिखा, देश के जागने से पहले और कितने बंगालियों का कत्लेआम होगा उसका एकमात्र अपराध था भाजपा शासित राज्य में बंगाली होना। हालांकि, पुलिस की जांच में पता चला कि बकर की हत्या उसकी पत्नी के विवाहेतर संबंधों के कारण हुई। मृतक की पत्नी और उसका प्रेमी हत्या के आरोप में गिरफ्तार हैं। ऐसा ही विवाद दिल्ली में एक परिवार के उत्पीड़न को लेकर पैदा हुआ। दीदी को बांग्ला भाषा की कितनी चिंता है, इसकी मिसाल 2018 में तब दिखी, जब उत्तर दिनाजपुर के दाड़ीवीटा बांग्ला माध्यम स्कूल में नियुक्त तीन शिक्षकों में दो उर्दू के थे। इसका विरोध करने पर पुलिस की गोली से दो छात्रों की मौत हो गई। ममता के शासन में छात्रों के अभाव में आठ हजार प्राथमिक स्कूल बंद हो चुके हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार का हाल यह है कि कई मंत्री व अधिकारी जेलों में हैं। अदालती आदेश के बाद हजारों शिक्षक सड़क पर हैं। सीएए को लेकर बंगाल में हुई हिंसा को वह रोक नहीं पाईं। एनआरसी को लेकर लोगों को खूब डराया गया, जब केंद्र ने अपराध व घुसपैठ रोकने के लिए बीएसएफ का कार्यक्षेत्र सीमा से 50 किलोमीटर भीतर तक निर्धारित किया, तो उन्होंने खुलेआम लोगों को भड़काया। वक्फ कानून पास हुआ, तो मुर्शिदाबाद में दंगे भड़के, जानें गईं। उसे रोकने में विफल ममता ने कुछ बीएसएफ जवानों पर ही बाहरी लोगों को लाकर हिंसा कराने का आरोप मढ़ दिया। राज्य में घुसपैठ न रोक पाने के लिए वह बीएसएफ को जिम्मेवार बताती हैं, पर अब तक बांग्लादेश से लगी लगभग 450 किलोमीटर सीमा बिना बाड़ के इसलिए है कि वह भूमि उपलब्ध नहीं करा रही हैं। पश्चिम बंगाल में रोजगार के अवसर न होने से लोग पलायन कर रहे हैं। जरूरत है िक राज्य में रोजगार के अवसर पैदा कर प्रवासी मजदूरों को काम दिया जाए। ममता दीदी को मानना चाहिए कि घुसपैठिये देश के लोगों का हक छीन रहे हैं। 2014 के खगड़ागढ़ विस्फोट कराकर बंगालियों की हत्या करने वालों में चार बांग्लादेशी आतंकी (जेएमबी) भी थे। बांग्ला भाषा या अस्मिता को कोई खतरा नहीं है, जरूरत है पश्चिम बंगाल से भ्रष्टाचार हटाने और सुशासन लाने की।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Aug 05, 2025, 06:29 IST
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