सिर्फ उत्पीड़न का आरोप आत्महत्या के लिए उकसावे का प्रमाण नहीं: हाईकोर्ट
अमर उजाला ब्यूरोचंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि केवल उत्पीड़न का आरोप लगना ही आत्महत्या के लिए उकसावे का अपराध सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है। हाईकोर्ट ने रोपड़ निवासी महिला (सास) को बरी करते हुए कहा कि जब तक अभियोजन यह साबित नहीं करता कि आरोपी ने ऐसे कदम उठाए जिनसे मृतका को आत्महत्या करने के लिए विवश होना पड़ा, तब तक दोषसिद्धि नहीं की जा सकती।मृतका की सास और ननद पर आरोप था कि वे दहेज की मांग और संतान न होने के कारण उसे प्रताड़ित करती थीं। ट्रायल कोर्ट ने सास को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी। कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या के कारण और उसके पीछे उकसावे की भूमिका मानव व्यवहार के जटिल पहलुओं से जुड़ी होती है। इसलिए स्पष्ट और ठोस साक्ष्य की आवश्यकता होती है जो यह दर्शाए कि आरोपी ने मृतका को आत्महत्या के लिए उकसाया या विवश किया।ऐसे मामलों में यह भी आवश्यक है कि अभियोजन यह सिद्ध करे कि आरोपी ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आत्महत्या के लिए प्रेरित किया हो। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन मृतका की आत्महत्या के पीछे सास की कोई ठोस भूमिका सिद्ध नहीं कर सका। मृतका के पिता के बयान में भी गंभीर विरोधाभास पाए गए। उन्होंने पुलिस को दिए गए बयान में कहा था कि उनकी बेटी ससुराल में सामान्य और सौहार्दपूर्ण जीवन जी रही थी तथा संतान न होने के कारण मानसिक तनाव में थी। हाईकोर्ट ने कहा कि मात्र उत्पीड़न के आरोप या पारिवारिक कलह से आत्महत्या के लिए उकसावे का अपराध सिद्ध नहीं किया जा सकता, जब तक यह स्पष्ट न हो कि आरोपी ने अपने आचरण से मृतका को आत्महत्या के लिए विवश किया हो। कोर्ट ने कहा कि निस्संदेह एक युवा महिला ने अपनी जान गंवाई है लेकिन जब पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं कि अपीलकर्ता ने उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित किया, तो उसके विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई जारी रखना न्याय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 16, 2025, 21:01 IST
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