चिंताजनक: 14 साल से पहले शुरू होते हैं आधे से अधिक मानसिक रोग, छिपी हुई बीमारी का ले लेते हैं रूप
देश में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या गहराती जा रही है। 50 प्रतिशत से अधिक वयस्कों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं 14 साल की उम्र से पहले शुरू हो जाती हैं, जो एक छिपी हुई बीमारी का रूप ले लेती हैं। यह मानसिक समस्याएं बचपन में शुरू होती हैं, लेकिन समय पर पहचान न होने के कारण उन्हें अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।इन समस्याओं का असर पूरी जिंदगी पर पड़ता है। यह कहना है अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मनोचिकित्सा विभाग के प्रो. राजेश सागर का। वह बृहस्पतिवार को मानसिक स्वास्थ्य पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस दौरान प्रो. सागर ने कहा कि बचपन के दौरान मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं विकास की नींव को ही हिला सकती हैं। इस दौरान बच्चों को एकेडमिक, सोशल और जीवन कौशल सीखने होते हैं और यदि इस संवेदनशील उम्र में कोई समस्या उत्पन्न होती है, तो उसका प्रभाव जीवन भर बना रह सकता है। प्रो. सागर ने दावा करते हुए बताया कि देश में 80-90 प्रतिशत बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज नहीं मिल पाता है। यह एक बड़ी समस्या है, खासकर ऐसे देश में जहां 40 प्रतिशत आबादी युवा है। इसके पीछे के कारणों में कलंक, जागरूकता की कमी और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी प्रमुख हैं। बुलिंग, एक बड़ा मानसिक स्वास्थ्य खतरा प्रो. सागर ने बताया कि मौजूदा समय के बच्चे पहले से कहीं ज्यादा दबाव और चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। वे एकल परिवारों में बढ़ रहे हैं, जहां पढ़ाई का दबाव, प्रतिस्पर्धा और स्मार्टफोन का प्रभाव बढ़ चुका है। टेक्नोलॉजी ने बच्चों को एक-दूसरे से जोड़ तो दिया है, लेकिन इसके साथ ही भावनात्मक तनाव, बॉडी इमेज की चिंता, रिश्तों में झगड़े और साइबर बुलिंग जैसी समस्याएं भी बढ़ गई हैं। बच्चों के उपलब्धियों के लिए अपनी सोच में बदलाव लाएं : विशेषज्ञ विशेषज्ञों ने माता-पिता से अपील की है कि वे बच्चों की उपलब्धियों के लिए अपनी सोच में बदलाव लाएं। मार्क्स ही सब कुछ नहीं होते। उन्होंने स्कूलों और माता-पिता को बच्चों की तुलना करने से बचने और उनके व्यवहार व इशारों पर अधिक ध्यान देने को कहा है। उन्होंने कहा कि बच्चों को सिर्फ पढ़ाई के क्षेत्र में ही मदद की जरूरत नहीं है, बल्कि उन्हें भावनात्मक देखभाल, समझ और सुलभ मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की भी आवश्यकता है। जागरूकता बढ़ाना, सेवाओं को बेहतर बनाना और एक सहायक माहौल बनाना, सिर्फ मददगार कदम नहीं हैं, बल्कि यह देश की अगली पीढ़ी की मानसिक सेहत को सुरक्षित रखने के लिए बेहद जरूरी हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 28, 2025, 04:20 IST
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