Narak Chaturdashi 2025: नरक चतुर्दशी आज, जब भगवान कृष्ण ने मिटाया भय और दिया स्वयं की देखभाल का संदेश

Narak Chaturdashi 2025:सनातन संस्कृति में प्रत्येक पर्व केवल आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। दीपावली से एक दिन पहले आने वाला नरक चतुर्दशी का त्योहार, जिसे प्रचलित भाषा में रूप चौदस या छोटी दीपावली भी कहा जाता है, ऐसा ही पर्व है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्थाओं से जुड़ा है, बल्कि सौंदर्य, स्वास्थ्य और आत्म-देखभाल का भी अद्वितीय संदेश देता है। घर-परिवार की साफ-सफाई और दीवाली की तैयारियों के बीच यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि जैसे हम अपने घर को सुंदर और पवित्र बनाते हैं, वैसे ही अपने शरीर और मन की देखभाल करना भी उतना ही आवश्यक है। धार्मिक महत्व नरक चतुर्दशी का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राक्षस नरकासुर का वध कर सोलह हज़ार एक सौ कन्याओं को उसके बंधन से मुक्त कराया था। इस विजय से धरती भय और आतंक से मुक्त हुई। मान्यता है कि नरकासुर के वध के बाद भगवान कृष्ण ने अपनी थकान मिटाने के लिए तेल और उबटन से स्नान किया, तभी से इस दिन अभ्यंग स्नान की परंपरा शुरू हुई। Chhoti Diwali 2025:छोटी दिवाली पर किस भगवान की होती है पूजा, जानें दीप दान का शुभ मुहूर्त धर्मशास्त्रों में नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व तेल और उबटन लगाकर स्नान करने का विधान है। ऐसा करने से शरीर शुद्ध होता है, पापों का नाश होता है और नरक जाने का भय दूर होता है। साथ ही इस दिन यमराज की पूजा और दीपदान करने से अकाल मृत्यु का संकट टलने की मान्यता है। घरों की सफाई और सजावट भी इस दिन विशेष रूप से की जाती है, ताकि दीपावली की रात माता लक्ष्मी का स्वागत स्वच्छ और पवित्र घर में हो सके। Diwali 2025:घर पर कैसे करें लक्ष्मी पूजन यहां जानें विधि, सामग्री और शुभ मुहूर्त अच्छी सेहत का संदेश स्वास्थ्य और सौंदर्य से जुड़े हुए इस पर्व पर उबटन और तेल मालिश करने की परंपरा है। आयुर्वेद के अनुसार, यह प्रक्रिया शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालती है, रक्त संचार को संतुलित करती है और त्वचा को नई ऊर्जा देती है। दूसरी तरफ दीपावली का समय मौसम के बदलाव का होता है। वर्षा ऋतु समाप्त होकर शरद ऋतु का आगमन होता है। ठंडी हवाओं से त्वचा शुष्क होने लगती है। ऐसे में तेल की मालिश और हर्बल उबटन शरीर को नमी और कोमलता प्रदान करते हैं। यह परंपरा न केवल रूप निखारने का उपाय है, बल्कि शरीर को रोगों से बचाने और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का प्राकृतिक तरीका भी है। आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में लोग अक्सर स्वयं की देखभाल को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। ऐसे में यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि दूसरों के साथ-साथ अपनी सेहत और सुंदरता पर ध्यान देना भी उतना ही ज़रूरी है। रूप चौदस आज क्यों जरूरी समय के साथ त्योहारों का रूप बदलता रहा है, लेकिन उनका महत्व आज भी उतना ही गहरा है। रूप चौदस अब स्वच्छता, आत्म-देखभाल और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक बन चुका है। चाहे गृहिणी हों या कामकाजी महिलाएँ, यह दिन वे अपने लिए समय निकालकर खुद को संवारती हैं। पुरुष भी इस अवसर पर विशेष स्नान और अपने रूप-सज्जा पर ध्यान देते हैं। आधुनिक जीवनशैली में लोग पारंपरिक उबटन और हर्बल उत्पादों का उपयोग कर इस परंपरा को नए अंदाज में आगे बढ़ा रहे हैं। ब्यूटी ट्रीटमेंट्स और स्पा का चलन यह दर्शाता है कि त्योहार सिर्फ घर की सफाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अपने शरीर और मन को भी तरोताजा करने का अवसर है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 18, 2025, 11:25 IST
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