जीएसटी में नए युग का सूत्रपात: क्या अब वस्तुओं के दाम 50% तक घट जाएंगे? उपभोक्ताओं में खुशी और उम्मीद का माहौल

आठ साल पहले जब जीएसटी को लागू किया गया था, उसी समय से इसे आलोचना और प्रशंसा, दोनों का सामना करना पड़ा है। किसी अन्य कानून का इतना प्रभाव नहीं पड़ा, जितना जीएसटी का पड़ा, क्योंकि इसने एक राष्ट्र, एक कर की अवधारणा को जन्म दिया, जो पहले कभी नहीं सुनी गई थी। पिछले कुछ वर्षों में जीएसटी परिषद ने केंद्र एवं राज्य सरकारों के सामने आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए 56 बार बैठकें की हैं, यानी औसतन हर साल सात बार। हर गुजरते महीने के साथ जीएसटी संग्रह में वृद्धि एक ऐसी खबर बन गई है, जिस पर नजर रखना जरूरी है, क्योंकि यह न केवल सरकारी राजस्व में वृद्धि करती है, बल्कि औसत भारतीयों द्वारा उपभोग की जाने वाली लगभग हर चीज पर कर चुकाने की कठिनाई को भी उजागर करती है। अभी 2-3 सितंबर को हुई जीएसटी परिषद की बैठक कई मायनों में महत्वपूर्ण है। अब हम चार-स्तरीय दरों- पांच फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी और 28 फीसदी के बजाय पांच फीसदी और 18 फीसदी की सरलीकृत दो टैक्स स्लैब की ओर बढ़ रहे हैं। यह अपने आप में एक बड़ा कदम है, जिसका मिला-जुला असर होगा, क्योंकि 12 फीसदी दर वाली कुछ वस्तुओं और सेवाओं को 18 फीसदी की उच्चतर स्लैब में डाल दिया गया है, तथा कुछ को पांच फीसदी स्लैब में रखा गया है, जिससे राहत मिलेगी। हमेशा की तरह, तंबाकू जनित उत्पादों और विलासिता की वस्तुओं के लिए 40 फीसदी स्लैब बना हुआ है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सिगरेट, प्रीमियम शराब और उच्च श्रेणी की कारों जैसी वस्तुओं को कर में राहत नहीं मिलेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर की गई घोषणा के चलते कर कटौती की उम्मीद तो पहले से ही थी। 22 सितंबर, 2025 से लागू होने वाले इस बदलाव से सरकारी राजस्व में 48,000 करोड़ रुपये की कमी आने की आशंका है। उपभोक्ताओं में खुशी और उम्मीद का माहौल है, क्योंकि रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाली कई एफएमसीजी वस्तुएं, जैसे साबुन, हेयर ऑयल, शैंपू और अन्य घरेलू सामान, पहले के 12 फीसदी वाले स्लैब से पांच फीसदी वाले स्लैब के दायरे में आ गई हैं। भले ही स्लैब दर में 50 फीसदी से ज्यादा की कटौती की गई है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इन वस्तुओं की कीमतें 50 फीसदी तक गिर जाएंगी। सभी प्रकार की चपाती और परांठे समेत आवश्यक खाद्य पदार्थ कर-मुक्त रहेंगे, जिन पर अब कोई कर नहीं लगेगा, जबकि पहले पांच फीसदी कर लगता था। जीएसटी कर दरों को युक्तिसंगत बनाने की पूरी कवायद घरेलू खपत को बढ़ावा देने और कुछ हद तक व्यवसायों को अमेरिका द्वारा विभिन्न भारतीय उत्पादों पर लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ के प्रभाव का मुकाबला करने में मदद करने के लिए की गई है। भावनाएं मजबूत हैं, और यह भावना शेयर बाजारों में आई तेजी से परिलक्षित होती है, क्योंकि जीएसटी दर में कटौती की घोषणा के बाद बाजार में तेजी देखी गई। लेकिन, दरों में कटौती का जश्न मनाते हुए यह भी सोचना चाहिए कि आखिर कुछ वस्तुओं पर जीएसटी क्यों लगाया गया था। उदाहरण के लिए, नक्शों, चार्ट, पेंसिल और स्टेशनरी पर 12 फीसदी जीएसटी बिल्कुल नहीं लगना चाहिए था। इसी तरह, जीवन और स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर 18 फीसदी जीएसटी उन लोगों पर जुर्माना लगाने जैसा था, जो खुद को वित्तीय जोखिमों से बचा रहे थे। इसी तरह, कृषि उत्पादों, दूध, घी आदि पर जीएसटी शायद टाला जा सकता था, फिर भी ये कर मौजूद हैं। इन दरों का पांच फीसदी स्लैब में आना एक सकारात्मक संकेत है। इन करों का अस्तित्व व्यापक स्तर पर जवाब की मांग करता है। पिछले कुछ वर्षों में जीएसटी संग्रह में वृद्धि हुई है, जो सरकार के राजस्व के लिए अच्छी बात है। रिकॉर्ड जीएसटी संग्रह की खबर सामान्य बात हो गई है, और इसने हर भारतीय को कर के दायरे में ला दिया है। जीएसटी अपने नौवें वर्ष में प्रवेश कर गया है, और यह व्यापार में आसानी, बेहतर अनुपालन और व्यापक आर्थिक भागीदारी पर ध्यान केंद्रित करते हुए लगातार विकसित हो रहा है। चाहे करों में वृद्धि हो या कटौती, उसके असर को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता, क्योंकि इसका अन्य कई कारकों पर भी महत्वपूर्ण असर पड़ता है। वैश्विक तेल की कीमतें, मुद्रा दर, शेयर बाजार की गतिविधि, मांग एवं आपूर्ति, और बदलते रुझान कुछ ऐसे कारक हैं, जो कराधान और उपभोग को प्रभावित करते हैं। जीएसटी अनुपालन से जुड़ी लागतों से संबंधित मुद्दों को भी ध्यान में रखना होगा और उन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इस धारणा को भी पूरी तरह से नकारा नहीं जाना चाहिए कि आवश्यक वस्तुओं की मांग बढ़ेगी। हमने देखा है कि एफएमसीजी कंपनियां कीमतों में फेरबदल करने के बजाय पैक के आकार के साथ खेल करती हैं, जिसके कारण कई मामलों में कीमतों में प्रत्यक्ष रूप से कोई कमी नहीं दिखाई दे सकती है। हो सकता है कि इस कदम से बिक्री बढ़े, लेकिन जरूरी नहीं कि इससे लोगों पर बढ़ती लागत का बोझ सीधे तौर पर कम हो। लोग सिर्फ इसलिए चीजें नहीं खरीदते कि लागत कम हो गई है। कीमत कम होने पर लोग ज्यादा दवाइयां या ज्यादा खाना नहीं खाते। इसी तरह, जीएसटी के जरिये देश भर में कर संग्रह का एक मजबूत मॉडल तैयार करने के बाद सरकार इसे पूरी तरह से छोड़ने वाली नहीं है। हां, जीएसटी के तहत वस्तुओं पर कर की दर में उतार-चढ़ाव जरूर होगा, लेकिन जीएसटी संग्रह पर इसका असर बहुत ज्यादा नहीं पड़ेगा। नागरिकों के तौर पर, हमें बदलती कर दरों के साथ तालमेल बिठाना होगा और उन क्षेत्रों की पहचान करनी होगी, जहां हम हर बार कर दर में समायोजन के दौरान ज्यादा बचत कर सकते हैं। फिलहाल, जीएसटी दरों में इस बदलाव को उपभोग को बढ़ावा देने के एक उपाय के रूप में समझा जाना चाहिए, जो बढ़ती लागतों के कारण कम हो रहा था। परिवारों को अपने बजट पर कड़ी नजर रखनी होगी, ताकि यह पता चल सके कि वे वास्तव में कितनी बचत कर सकते हैं और उस बचत का उपयोग कैसे कर सकते हैं।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Sep 05, 2025, 05:26 IST
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