Social Media Poetry:  दुनिया के बाज़ारों में, मत ढूंढो अख़बारों में

दुनिया के बाज़ारों में मत ढूंढो अख़बारों में मिल जाऊंगा वहीं कहीं मैं भी दर्द के मारों में याद बहुत आते वे दिन जो गुज़रे त्योहारों में जले विरह में तब समझे आग कहां अंगारों में रिश्ते - नाते छूट गए गांवों में - गलियारों में साथ जो होने का सुख है क्या रखा अभिसारों में हम रहते इस दुनिया में जैसे कारागारों में क्या खूबी - खामी ढूंढें एक - सी इन सरकारों में कितनी मोहब्बत थी 'निश्चल' प्रेम - मयी फटकारों में ~ ओम निश्चल

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jun 02, 2025, 17:59 IST
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