तुमसे है उजाला: उत्तराखंड की बबीता ने महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर, वीरान गांव के लिए किया ये काम

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के सुदूरवर्ती गांव पसमा की रहने वाली बबीता सिंह ने 2021 में जब अपने पैतृक गांव की ओर रुख किया तो उन्हें वहां का बदला हुआ रूप विचलित कर गया। चारों ओर बंजर भूमि, बेरोजगारी और सबसे अधिक गांवों से हो रहा तेज पलायन। गांव की महिलाएं दिन-रात मेहनत कर रही थीं, लेकिन केवल पारंपरिक खेती के भरोसे उनका जीवन संघर्षों से भरा था। कोई उद्योग नहीं, रोजगार के अन्य साधन नहीं और न ही बाजार तक कोई पहुंच। ये समस्याएं इस खूबसूरत हिमालयी क्षेत्र को जकड़े हुए थीं। बबीता ने इस परिस्थिति को एक चुनौती नहीं, बल्कि अवसर के रूप में देखा। उन्होंने तय किया कि वह न केवल खेती को लाभदायक बनाएंगी, बल्कि गांव की महिलाओं को भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर करेंगी। स्थानीय लोगों से संवाद के बाद उन्होंने महसूस किया कि फसलों का चयन, जंगली जानवरों की समस्या, तकनीकी ज्ञान की कमी और बाजार तक पहुंच की बाधाएं क्षेत्र की मुख्य कृषि समस्याएं थीं। गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की ठानी बबीता ने गांव की कुछ महिलाओं के साथ मिलकर गेहूं और धान की पारंपरिक खेती के साथ-साथ दमास्क गुलाब, कैमोमाइल, बिछुआ, रोजमेरी, करी पत्ता जैसी सुगंधित एवं औषधीय फसलों की खेती भी शुरू की। इन फसलों की खासियत थी कि ये जलवायु के अनुकूल थीं, जंगली जानवरों से सुरक्षित रहती थीं और बाजार में इनकी अच्छी मांग थी। खेती को लाभदायक बनाने का प्रयास बबीता ने देहरादून के सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स (सीएपी) से पौधे मंगवाए और अपनी बचत से सिंचाई के लिए दो किलोमीटर लंबी पाइप लाइन डाली। खेत जोतने के लिए उपकरण खरीदे और स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण के साथ काम पर लगाया। 2022 में उन्होंने गुलाब जल, हाइड्रोसोल, हल्दी, अदरक, मधु आदि का उत्पादन शुरू किया, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती थी बाजार तक पहुंचने की। शुरुआत में स्थानीय बाजार से काम चला, लेकिन बिक्री सीमित थी और लागत अधिक। उन्होंने इस समस्या का हल निकाला रूरल बिजनेस इनक्यूबेटर (आरबीआई) के साथ जुड़कर, जहां से उन्हें मार्केटिंग और प्रशिक्षण की मदद मिली। धीरे-धीरे दिल्ली जैसे शहरों तक उनके उत्पादों की पहुंच बन गई। मधुमक्खी पालन किया बबीता ने मधुमक्खी पालन भी शुरू किया, जिससे शुद्ध हिमालयी शहद का उत्पादन हुआ और 100 प्रतिशत जैविक, रसायन मुक्त खेती बबीता की सबसे बड़ी पहचान बन गई। आज बबीता की पहल से 11 स्थायी कर्मचारी जुड़ी हुई हैं और पास के गांवों की महिलाएं भी समय-समय पर इस पहल से जुड़ती रहती हैं। ये महिलाएं अब आत्मनिर्भर हैं, उनकी आमदनी बढ़ी है और सबसे अहम उनकी पहचान बनी है। बबीता बताती हैं, “इस मॉडल ने पलायन की रफ्तार धीमी की, गांव में रोजगार के अवसर पैदा किए और समाज में सकारात्मक सोच को जन्म दिया। शुरुआत आसान नहीं थी। दुर्गम स्थान, खराब सड़कें, जल स्रोत की कमी, जंगली जानवरों का खतरा और स्थानीय लोगों की आशंकाएं, इन सबसे निपटना पड़ा।” हालांकि संसाधनों की कमी होने पर भी बबीता ने हार नहीं मानी, जिसमें उनके पति और बहन ने उनका सबसे अधिक साथ दिया। एग्रो टूरिज्म को बढ़ावा देना लक्ष्य आज गांव की सोच बदल चुकी है। जहां कभी लोग शंका करते थे, वहीं अब वे सलाह मांगते हैं। बबीता की 11 सदस्यीय टीम में खेती, उत्पादन, पैकेजिंग, मार्केटिंग और सोशल मीडिया जैसे हर क्षेत्र के लोग हैं। उन्होंने टीम के भीतर स्वामित्व की भावना विकसित की, जिससे हर व्यक्ति कंपनी की सफलता में खुद को सहभागी समझता है। मासिक बैठक, प्रशिक्षण और प्रदर्शन मूल्यांकन प्रणाली के जरिए टीम की कार्य-कुशलता बढ़ी है। बबीता कहती हैं, “मेरा लक्ष्य एग्रो-टूरिज्म को बढ़ावा देना भी है, जहां पर्यटक खेती, ट्रेकिंग, नदी राफ्टिंग जैसी गतिविधियों का आनंद ले सकें। इससे न सिर्फ गांव में रोजगार बढ़ेगा, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी एक नई दिशा मिलेगी।“

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Aug 01, 2025, 16:26 IST
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