PM Modi-Putin-Jinping Meet: दोस्ती का नया अंदाज, एससीओ से दिया नई ताकत और नेतृत्व के विकल्प का संदेश

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के मंच पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच दोस्ती का नया अंदाज दिखाई दिया। उन्होंने एक-दूसरे से हाथ मिलाकर गर्मजोशी से अभिवादन किया। अन्य नेताओं की मौजूदगी के बीच आपस में बातचीत के कुछ हल्के-फुल्के पल साझा किए और इस दौरान हंसी-ठहाके भी गूंजे। जाहिर है, एशिया की तीन सबसे बड़ी ताकतों का खुद को इस तरह एकजुट दिखाना पश्चिमी और अन्य देशों को ये संदेश देने की कोशिश थी कि अमेरिकी वैश्विक नेतृत्व का एक विकल्प मौजूद है। शुरुआत पीएम मोदी और पुतिन के हाथ पकड़कर अन्य विश्व नेताओं से भरे बैठक कक्ष में प्रवेश करने के साथ हुई। दोनों नेता सीधे जिनपिंग के पास पहुंचे। उन्होंने आपस में हाथ मिलाए और एक घेरा बनाकर बातचीत शुरू कर दी। अनुवादकों के शामिल होने से पहले तीनों नेताओं ने आपस में कुछ बातचीत की। पुतिन बड़ी मुस्कान मुस्कान बिखेरते नजर आए और तभी पीएम मोदी ने जोर से ठहाका लगाया। विश्लेषकों का कहना है कि इस पूरे दृश्य में कई संदेश छिपे थे। बंगलूरू स्थित तक्षशिला संस्थान में हिंद-प्रशांत अध्ययन के प्रमुख मनोज केवलरमानी कहते हैं, इस तिकड़ी ने कई महत्वपूर्ण संदेश देने की कोशिश की और व्हाइट हाउस को यह समझना चाहिए कि उसकी नीतियों के परिणामस्वरूप अन्य देश अपने हितों की पूर्ति के लिए विकल्प जरूर तलाशेंगे। आरआईसी के पुनर्जीवित होने का भी संकेत यह त्रिपक्षीय सहयोग हाल में मॉस्को की तरफ से दिए इस सुझाव को मूर्त रूप देने की दिशा में आगे बढ़ने का संकेत भी माना जा रहा है, जिसमें उसने कहा था कि रूस-भारत-चीन (आरआईसी) मंच को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए। भारत पूर्व में चीन और रूस के साथ इस तरह खुलकर गर्मजोशी दिखाने से परहेज करता रहा है। यही वाशिंगटन के साथ उसके संबंधों को आगे बढ़ाने और अन्य प्रमुख शक्तियों के नेतृत्व वाले मंचों पर अपनी जगह बनाए रखने का रहस्य है। लेकिन ट्रंप के टैरिफ के बाद भारत दोनों एशियाई देशों के साथ करीबी दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा। भाव-भंगिमा में छिपे अलग-अलग संदेश जिनपिंग : पुतिन-मोदी संग घनिष्ठता अमेरिका को चुनौती देने वाली वैकल्पिक विश्व व्यवस्था में बदल सकती है। वह ज्यादा स्थिर वैश्विक नेता के रूप में काम कर सकते हैं। पुतिन : यूक्रेन जंग के कारण पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद दबदबा कम नहीं हुआ है। बहुध्रुवीय व्यवस्था में उनकी मौजूदगी अब भी खास अहमियत रखती है। नरेंद्र मोदी : यदि ट्रंप प्रशासन टैरिफ के माध्यम से नई दिल्ली को अलग-थलग करना जारी रखता है, तो भारत के पास अन्य महत्वपूर्ण मित्र मौजूद हैं। इसमें सीमा विवाद जैसे मुद्दे हावी नहीं हो सकते। तिकड़ी ने पलटा ट्रंप का दांव अब तस्वीर लगभग साफ हो गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने के नाम पर भारत पर जो अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाया है, वह दरअसल, दबाव की रणनीति का हिस्सा है। ट्रंप चाहते हैं कि भारत अपने कृषि समेत कुछ मुख्य क्षेत्रों को अमेरिकी व्यापारियों के लिए खोले। इसके लिए मोदी सरकार तैयार नहीं है। अमेरिका से तनाव के बीच एससीओ की जो तस्वीर सामने आई है, वह अमेरिकी दबाव का रणनीति की हवा निकालती नजर आ रही है। तस्वीरों ने तीनों देशों के बीच गहरे होते संबंधों की कहानी बयां की। वर्षों के तनाव के बाद शी और मोदी साथ मुस्कुरा रहे हैं। मोदी मास्को की ओर झुक रहे हैं, जबकि ट्रंप भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ लगा रहे हैं। पुतिन खुद को इन सबके बीच अपरिहार्य मध्यस्थ के रूप में पेश कर रहे हैं। रूस-चीन में दरार की ट्रंप की पैंतरेबाजी को पुतिन ने पलटा शीत युद्ध के दौरान पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने रूस को अलग-थलग करने के लिए चीन के साथ अपने संबंधों को सुधारने पर जोर दिया था। उन्होंने चीन का दौरा किया और माओत्से तुंग से मुलाकात की। दोबारा सत्ता में लौटे ट्रंप ने पुतिन के साथ दोस्ती करने की कोशिश की। इसके जरिये वह रूस और चीन के बीच दरार पैदा करना चाहते थे। लेकिन पुतिन ने उनकी पैंतरेबाजी को उलट दिया है। रूसी नेता ने ट्रंप और अमेरिकी प्रभाव की कीमत पर चीन और भारत के साथ अपने संबंधों को और गहरा किया है। यह कदम सूक्ष्म, लेकिन भूचाल लाने वाला था। ट्रंप ने 15 अगस्त को अलास्का में पुतिन से मुलाकात की और उन्हें चीन की नजरों से दूर रहने के लिए मनाया। वहीं, बीजिंग ने दो हफ्ते बाद ही पीएम मोदी का स्वागत किया। 30 अगस्त को मोदी बीजिंग में थे। अगले दिन, वे तियानजिन में पुतिन और जिनपिंग के बगल में मुस्कुराते हुए खड़े थे। एपिया इंस्टीट्यूट के निदेशक फ्रांसेस्को सिस्की ने कहा, निक्सन प्रतिमान ने विपरीत रूप से काम किया, लेकिन अमेरिका ने जो सोचा था उससे अलग तरीके से, यानी, इस बार मास्को ने वाशिंगटन की भूमिका निभाई। जर्मन मार्शल फंड की बोनी ग्लेसर ने अटलांटिक को बताया, अगर पुतिन का ध्यान आकर्षित करने के लिए ट्रंप और जिनपिंग प्रतिस्पर्धा करते हैं, तो रूसी नेता अपने फायदे के लिए अमेरिका व चीन को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर सकते हैं। ऐसा होता है तो इससे न केवल अमेरिका-भारत संबंध टूट सकते हैं, बल्कि शीत युद्ध के बाद से बड़ी मेहनत से बनाया गया व्यापक पश्चिमी गठबंधन नेटवर्क भी खतरे में पड़ सकता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Sep 02, 2025, 05:26 IST
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