Pratima Barua Pandey: सुंदरी कमला से गूंजा गोलपारा, ब्रह्मपुत्र की बेटी प्रतिमा बरुआ पांडे की अमर आवाज

अगर कोई नदी अपनी कहानी खुद गा सके तो वो कैसी लगेगी शायद वैसी ही, जैसी असम के गोलपारा से उठी थीमृदुल स्वर, मिट्टी की महक और जीवन की लय से भरी। जब इंडियाज गाॅट टैलेंटके मंच पर लोकगायक ने सुंदरी कमला गाया, तो पूरा सभागार तालियों की गूंज से भर उठा। दर्शक खड़े हो गए>यह सिर्फ़ एक प्रस्तुति नहीं थी, यह था ब्रह्मपुत्र की आत्मा का संगीत, जो वर्षों बाद फिर गूंजा प्रतिमा बरुआ पांडे के नाम से। राजघराने की बेटी, जिसने चुना लोक की राह गोलपारा के गौरिपुर राजघराने में जन्मी प्रतिमा बरुआ पांडे एक ऐसी राजकुमारी थीं, जिन्होंने महलों के वैभव को छोड़ लोक की माटी को अपना लिया। उनके भीतर संगीत का संस्कार बचपन से था, लेकिन उन्हें सिखाने वाले कोई गुरु नहीं, बल्कि उनके अपने लोग थे, नाविक, चरवाहे, खेतिहर, हाथियों के महावत। वे जब गाते, तो प्रतिमा ध्यान से सुनतीं। उनकी आवाज में न राग की जटिलता थी, न ताल का बंधन, पर भावनाओं की गहराई थी। यही गहराई बाद में गोलपारी लोकगीत के रूप में भारत की आत्मा बन गई। ब्रह्मपुत्र की लहरों में गूंजते गीत गोलपारा असम का वह इलाका है जहाँ लोकगीत जीवन का हिस्सा हैं।यहांहर मौसम, हर त्योहार, हर दुःख और हर प्रेम का अपना गीत है। प्रतिमा बरुआ पांडे ने इन्हीं गीतों को सहेजा, गाया और नई पहचान दी। उनके प्रसिद्ध गीत ओ मोर महौत बंधु रे, हस्थिर कन्या और कोमला सुंदरी नाचे ने कोच राजबंशी समुदाय की संस्कृति को आवाज़ दी। ये गीत सिर्फसुर नहीं थे, बल्कि उन लोगों की कहानी थे जिनकी जिंदगी ब्रह्मपुत्र के किनारों पर बहती थी। भूपेन हजारिका से मुलाकात और लोक का उदय प्रतिमा बरुआ पांडे की मुलाकात डॉ. भूपेन हजारिका से हुई।वही संगीतकार जिन्होंने असम को भारत की आत्मा में गाया। भूपेन दा ने प्रतिमा की आवाज़ में असम की माटी की सच्चाई देखी और उन्हें फिल्म एरा भोयर ओई अरोने के लिए गाने का मौका दिया। प्रतिमा ने असमी, बांग्ला और राजबंशी बोली के संगम से जो गीत गाए, वो सीमाओं के पार गूंजे। उनका संगीत याद दिलाता है कि लोकसंगीत कोई पिछली पीढ़ी की चीज़ नहीं, बल्कि वह आत्मा है जो आज भी जीवित है। महिला दृष्टि से लोकसंगीत की पुनर्कथा प्रतिमा बरुआ पांडे केवल एक गायिका नहीं थीं, वे उस समय की आवाज़ थीं जब महिलाओं का मंच तक पहुँचना कठिन था। उन्होंने दिखाया कि एक महिला की संवेदना लोकसंगीत को और गहराई दे सकती है। उनके गीतों में प्रेम था, पीड़ा थी, पर सबसे बढ़कर आत्मविश्वास था। वे कहती थीं,“मेरे गीतों में मेरा असम है, मेरा जीवन है।”उनकी इस सोच ने आने वाली पीढ़ियों की महिला गायिकाओं को मंच पर अपनी जगह पाने की हिम्मत दी। इंडियाज गाॅट टैलेंटपर सुंदरी कमला का जादू आज जब Indias Got Talent जैसे मंच पर सुंदरी कमला गूंजता है और जज खड़े होकर सम्मान में ताली बजाते हैं, तो वह केवल एक लोकगीत की पुनरावृत्ति नहीं होती। वह एक विरासत की पुनर्जन्म कथा होती है। यह प्रतिमा बरुआ पांडे की आत्मा का सम्मान हैजिन्होंने दिखाया कि असम की मिट्टी में भी उतनी ही ताकत है जितनी किसी बड़े शहर के मंच में। यह उस परंपरा का पुनर्जागरण है जहाँ लोक और आधुनिकता का संगम किसी सांस्कृतिक पुल की तरह जुड़ता है। पद्मश्री और अमर पहचान प्रतिमा बरुआ पांडे को भारत सरकार ने पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया। पर उनका सबसे बड़ा सम्मान वो है कि आज भी गोलपारा के गाँवों में जब कोई ओ मोर महौत बंधु रे गाता है, तो पीढ़ियों के बीच एक पुल बनता है। वह दिखाती हैं कि जब कोई कलाकार अपनी मिट्टी से जुड़ा रहता है, तो उसकी आवाजकालजयी हो जाती है। प्रतिमा बरुआ पांडे की कहानी हमें सिखाती है कि संगीत सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, संस्कृति की सांस है।सुंदरी कमला जब गाई जाती है, तो उसमें एक महिला की हिम्मत, एक लोक की अस्मिता और एक नदी की लय बहती है। आज अगर वह गीत फिर से देशभर में गूंज रहा है, तो यह प्रमाण है कि लोक कभी मरता नहीं।वह बस अपने समय का इंतज़ार करता है, और फिर लौट आता है, एक नई धुन बनकर।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 29, 2025, 21:43 IST
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