नीति: अमेरिका की यह फितरत पुरानी है, भारत हो जाए सावधान!
यूक्रेन के खिलाफ रूसी युद्ध अब तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है। इस बात को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं कि यह युद्ध क्यों शुरू हुआ और क्यों जल्दी खत्म नहीं होने वाला है। हाल ही में संघर्ष विराम को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति भवन व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप एवं यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच हुआ टकराव अभूतपूर्व और चौंकाने वाला था। नतीजा यह हुआ है कि अमेरिका ने यूक्रेन को दी जाने वाली वित्तीय एवं सैन्य सहायता पर रोक लगा दी है। व्हाइट हाउस के एक अधिकारी के मुताबिक, इसकी समीक्षा की जा रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इससे समस्या के समाधान में मदद मिल रही है या नहीं। यूक्रेन के विकल्पों को खत्म कर देने के बाद, ट्रंप प्रशासन अब कहता है कि कीव को वही करना चाहिए, जो अमेरिका कहता है। और अगर ऐसा नहीं होता है, तो यूरोपीय देशों को यूक्रेन की रक्षा के लिए भुगतान करना होगा। इसी वजह से लंदन में यूरोपीय देशों के शासनाध्यक्षों की बैठक हुई, जिसमें उन्होंने अपने रक्षा खर्च को काफी हद तक बढ़ाने की कसम खाई है। जाहिर है, रूस से उनका डर दिवालिया होने से भी ज्यादा बड़ा है। यूक्रेन भी चाहता है कि यह युद्ध खत्म हो, लेकिन अपने लिए वह सुरक्षा की गारंटी भी चाहता है, जो डोनाल्ड ट्रंप देना नहीं चाहते। लेकिन यूक्रेन यह भी जानता है कि अगर रूस इस समय संघर्ष विराम के लिए राजी हो भी जाता है, तो यूक्रेन की सुरक्षा और स्वतंत्रता की गारंटी के बिना भविष्य में वह पूरे यूक्रेन पर कब्जा करने के लिए फिर से युद्ध छेड़ सकता है। हममें से बहुत से लोग जानते हैं कि हथियारों का उत्पादन और उसकी बिक्री से लाभ कमाना अमेरिका का पुराना धंधा है। सबको मालूम है कि इराक में खाड़ी देशों को युद्ध में शामिल करके अमेरिका ने कैसे अपने हथियारों की बिक्री से लाभ कमाया, जबकि छोटी अर्थव्यवस्थाएं अब भी अपने कर्ज चुका रही हैं। अमेरिका जानता है कि अपने सहयोगियों को भी युद्ध में कैसे घसीटा जाए और उनसे इसकी कीमत कैसे वसूली जाए! अमेरिका के एक प्रख्यात राजनीतिक वैज्ञानिक, प्रोफेसर जॉन जे मीशिमर कहते हैं कि अमेरिका ने रूस को यूक्रेन में संघर्ष में धकेला। क्यों क्योंकि रूस के डर से और भी देश नाटो में शामिल हो जाते। आइए, देखते हैं कि अमेरिका इस युद्ध को क्यों लंबा खींचना चाहता है। अमेरिका एक सैन्य औद्योगिक परिसर है और अपने हथियार उद्योग को फलने-फूलने देने के लिए युद्ध चाहता है। विश्व युद्धों के बाद से दुनिया भर में अमेरिका का अधिकांश प्रभाव लोकतंत्रों के लिए लड़े गए युद्धों और सैन्य सहायता व हथियारों की बिक्री का वादा करके धन कमाने के कारण है। सीनेटर रॉबर्ट एफ केनेडी (केनेडी वंश के) ने कहा है कि रूस ने बार-बार अपने मतभेदों को उन शर्तों पर निपटाने की कोशिश की, जो अमेरिका के लिए बहुत ही फायदेमंद थीं यहां तक कि उसने अमेरिका को एक बड़ी चीज भी दी, जो अमेरिका चाहता था, यानी नाटो में हर समय नए देशों को जोड़ने के लिए बड़े सैन्य ठेकेदारों को बनाए रखना। नॉर्थ्रप ग्रुम्मन, जनरल डायनेमिक्स और लॉकहीड मार्टिन जैसी कुछ कंपनियां नाटो से बिना प्रयास के लाभ उठाने वालों को अधिक हथियार बेचना चाहती हैं। यह 113 अरब डॉलर की हथियार खरीद थी। यह अमेरिका में सभी लोगों के लिए आवास बनाने के लिए पर्याप्त है और फिर हमने दो महीने पहले से 24 अरब डॉलर का अतिरिक्त निवेश करने का संकल्प लिया है; और अब वर्तमान हिंसा के साथ राष्ट्रपति बाइडन यूक्रेन को सौंपने के लिए 60 अरब डॉलर की अतिरिक्त राशि मांग रहे हैं ताकि युद्ध में नष्ट हुई सभी चीजों का पुनर्निर्माण किया जा सके। लेकिन जब मिच मैककोनेल (प्रख्यात अमेरिकी राजनेता) से पूछा गया कि क्या हम सचमुच यूक्रेन में 10 से 13 अरब डॉलर खर्च कर सकते हैं तो उन्होंने कहा कि चिंता मत करो, यह अमेरिकी रक्षा ठेकेदारों के पास जा रहा है। अगर आपको लगता है कि उस ऋण का कभी भुगतान नहीं किया जाएगा, तो अपने हाथ उठाएं बेशक ऐसा नहीं है, तो वे इसे ऋण क्यों कहते हैं वे इसे इसलिए ऋण कहते हैं, वे ऋण पर शर्तें लगा सकते हैं और वे ऋण शर्तें क्या हैं, जो हमें रूस विरोधी गठबंधन पर लगानी हैं। अलिखित संदेश यह है कि यदि आप यूक्रेन का समर्थन करते हैं, तो आप हमेशा के लिए गरीब हो जाएंगे। यह समझना सबसे महत्वपूर्ण है कि यूक्रेन को अपनी सारी संपत्ति बहुराष्ट्रीय निगमों को बेचने के लिए रखनी है, जिसमें उसकी सारी कृषि भूमि भी शामिल है (जो यूरोप की सबसे बड़ी एकल संपत्ति है), तथा दुनिया का एक अन्न भंडार है और फिर दिसंबर में राष्ट्रपति बाइडन ने यूक्रेन की संपत्ति के लिए अनुबंध बंद कर दिया जिसका उद्देश्य था कि हमें एक-दूसरे से नफरत करते रहना है। अमेरिका के रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स को ही इसका श्रेय जाता है कि श्वेतों के खिलाफ अश्वेत लड़ रहे हैं और इन सभी विभाजनों को पैदा कर रहे हैं। हालांकि, यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की, जिन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तानाशाह कहते हैं, के साथ किया गया घटिया व्यवहार भारत के लिए एक चेतावनी है। अमेरिका की यह फितरत है कि अगर उसका दोस्त उसके साथ नहीं आता है, तो वह न केवल अपने सहयोगियों का साथ छोड़ देगा, बल्कि वह यूक्रेन के खिलाफ हमला करने वाले रूस जैसे क्षेत्रीय आक्रमण को नजरअंदाज कर देगा। ऐसे में अगर कल को भारत से रिश्ते खराब होने पर वह संभवतः लेह-लद्दाख में चीन की ज्यादतियों को भी नजरअंदाज कर दे, तो कोई हैरानी की बात नहीं। क्या भारत को पता है कि अमेरिका के साथ उसके रिश्ते में आगे क्या हो सकता है डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद हाल के दिनों में अमेरिका का जैसा रवैया रहा है, उससे भारत को सावधान रहने की जरूरत है। जैसा कि कहा भी जाता है कि अमेरिका का कोई स्थायी दोस्त नहीं है। उसके लिए अपने हित ही सर्वोपरि हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Mar 06, 2025, 06:56 IST
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