लाभ का सौदा: आसमान पर सोना, नफे में भारतीय
सोना 3700 डॉलर प्रति औंस को पार कर चुका है। करेंसी टूट रही है, मुद्रास्फीति का डर है, जंगबाजी नई सियासत है, व्यापार नया हथियार है. विदेशी मुद्रा भंडारों को बनाने वाली मुद्राओं (डॉलर-यूरो) में विश्वास डगमगा रहा है, केंद्रीय बैंक पगलाए हुए सोना खरीद रहे हैं। गोल्ड अब मुल्कों की दूसरी सबसे बड़ी रिजर्व असेट है। पहला अमेरिकी डॉलर है, जिसका फॉरेक्स रिजर्व में हिस्सा लगातार गिर रहा है। जब संकट आता है, सोना चमकता है। गोल्ड की महंगाई लोगों की किस्मत भी बदल देती है। आइए, टाइम मशीन में सवार होकर चलते हैं उस दौर में, जब संकट आए, सोना चमका, मगर कुछ लोगों ने इस चमक को देखा जिया और खुद भी चमक उठे। टाइम मशीन अपने पहले पड़ाव पर है। हम 1923 के जर्मनी में उतर रहे हैं। वीमर रिपब्लिक का राज है। हम सीधे बाजार में चलते हैं यह क्या, कोई झाडू से जर्मन मार्क के नोट बटोर रहा है, जिसकी कीमत राख हो चुकी है। हाइपरइन्फ्लेक्शन यानी अतिमुद्रास्फीति ने जर्मनी को तोड़ दिया है। यह संकट हिटलर के लिए जमीन तैयार कर रहा है। 1919 में एक गोल्ड मार्क एक पेपर मार्क के बराबर था। अब नवंबर, 1923 है, एक गोल्ड मार्क के लिए दस खरब पेपर मार्क चाहिए। सोने की कीमत 170 मार्क प्रति औंस से बढ़कर 870 खरब मार्क तक पहुंच गई है। फेलिक्स मोरित्ज वारबर्ग की हर जगह चर्चा हो रही है। जब हाइपरइन्फ्लेशन जर्मन अर्थव्यवस्था को निगल रही थी, तब वारबर्ग ने अपनी पारिवारिक संपत्ति का एक हिस्सा सोने बदल लिया था। 1920 के दशक की शुरुआत में, जब जर्मनी प्रथम विश्वयुद्ध के बाद देनदारी से जूझ रहा था, वारबर्ग ने अपने भाई पॉल वारबर्ग के साथ सोने के सिक्कों और बार्स में निवेश किया।हाइपरइन्फ्लेशन ने कागजी मुद्रा को बेकार कर दिया, पर वारबर्ग के सोने की खरीद शक्ति 1.8 गुना बढ़ गई। वारबर्ग ने इस सोने से अपना व्यवसाय ती बचाया ही, यही धन हिटलर के मारे यहूदियों के काम आया। अमेरिका में रहकर वारबर्ग परिवार ने जर्मन यहूदियों को भोजन और पुनर्वास प्रदान किया। न्यूयॉर्क के फेलिक्स वारबर्ग मैन्शन में बना यहूदी संग्रहालय हाइपरइन्फ्लेशन के दौर में सोने से हुई कमाई का स्मारक भी है। अब हम आ गए हैं न्यूयॉर्क। साल है 1933 का। ग्रेट डिप्रेशन ने अमेरिका को घुटनों पर ला दिया है। बैंकों के बाहर लंबी कतारें थीं और लोग अपनी बचत निकाल रहे थे। राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी कर दिया। अमेरिकी नागरिकों को अपना सोना 20.67 डॉलर प्रति औंस पर फेडरल रिजर्व को सौंपने का आदेश हुआ है। जुर्माना 10,000 डॉलर या 10 साल की जेल। एक ही रात में सोने के मालिक अपराधी बन गए। अखबार फ्रेडरिक बार्बर कैम्पबेल के मुकदमे की रिपोर्ट से भरे हैं। न्यूयॉर्क के वकील कैम्पबेल ने चेस नेशनल बैंक में 5,000 औंस सोना रखा था-आज के 40 लाख डॉलर के बराबर। जब उन्होंने सोना निकालने की कोशिश की, बैंक ने मना कर दिया। कैम्पबेल ने यह कहते हुए मुकदमा किया कि 'मैं संविधान के अधिकारों के लिए लड़ रहा हूं, जेल जाना पड़े तो भी!' लेकिन अगले ही दिन, 27 सितंबर 1933 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जज ने गिरफ्तारी को तकनीकी आधार पर अमान्य कहा, लेकिन रूजवेल्ट ने तुरंत दूसरा ऑर्डर जारी कर दिया है। कैम्पबेल का सोना जब्त हो गया है। सरकार जो चाहती है, कर ही लेती है। लेकिन लोग भी कहां मानने वाले थे। कई परिवारों ने चुपके से सोना छिपाया-घड़ी के पीछे, फर्श के नीचे। 1934 में गोल्ड रिजर्व एक्ट से कीमत 35 डॉलर हो गई, अमेरिकी डॉलर का 69 फीसदी अवमूल्यन हुआ। सरकार के रिकॉर्ड ने बताया कि केवल 20-25 फीसदी सोना ही सरेंडर हुआ, बाकी छिपा रहा। 1975 में जब गोल्ड लीगलाइज्ड हुआ, तो 1933 के सिक्के भी जार में आ गए-यानी वेल्ट के कानून को किसी ने नहीं माना। आप 21वीं सदी से आ रहे हैं, तो आपको याद होगा कि भारत में 2015 में सरकार गोल्ड मॉनेटाइजेशन स्कीम लाई थी। लोगों ने सरकार को अपना सोना नहीं दिया। सोना है, तो फिर किसी पर भरोसा नहीं। अब हम 1971 में आ गए हैं। राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने ब्रेटन वुड्स सिस्टम को तोड़ दिया। गोल्ड स्टैंडर्ड खत्म हो गया है। सोना अब आजाद है। 1971 से 1980 तक इसकी कीमत 850 डॉलर आबाद है। 1971 से 1980 तक इसकी कीमत 850 डॉलर तक पहुंची 2,329 फीसदी की छलांग। इस तेजी का इतिहास में कोई मुकाबला नहीं होगा। 1979 में ही सोना करीब 120 फीसदी महंगा हो गया है। इसके सामने 2024-25 की 40 फीसदी तेजी कुछ नहीं। अब हम 2011 में हैं। 2008 में ग्लोबल बैंकर लेहमन ब्रदर्स के पतन ने वैश्विक बाजारों को हिला दिया है। सोना पहले 692.50 डॉलर तक गिरा, लेकिन फिर इसने जोरदार वापसी की है। अक्तूबर 2010 तक, यह 1,300 डॉलर तक पहुंच गया। 2011 में यूरोपीय कर्ज संकट के बीच, सोना 1,825 डॉलर प्रति औंस के रिकॉर्ड स्तर पर है और हम हैं न्यूयॉर्क में, जहां जॉन पॉलसन के किस्से ही किस्से हैं। पॉलसन एक मशहूर हेज फंड मैनेजर हैं, जिन्होंने 2008 के संकट को भांप लिया था। 2007 में, पॉलसन ने गोल्ड माइनिंग स्टॉक्स और गोल्ड में भारी निवेश किया। जब लेहमन ब्रदर्स गिरा, पॉलसन ने क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप्स के माध्यम से हाउसिंग मार्केट शॉर्ट किया, जिससे उनकी फर्म को 15 अरब डॉलर का लाभ हुआ। फिर 2009 में, उन्होंने गोल्ड ईटीएफ में 4.6 अरब डॉलर और माइनिंग कंपनियों में निवेश किया। सोना 692 डॉलर से बढ़कर 1,825 डॉलर तक पहुंचा, जिससे पॉलसन को 3.1 अरब डॉलर का मुनाफा हुआ। 2010 में उन्होंने यह कहते हुए गोल्ड फंड लॉन्च किया कि 'सोना मुद्रा है, कमोडिटी नहीं।' उन्होंने कहा था कि 2028 तक सोना 5,000 डॉलर प्रति औंस तक पहुंचेगा। टाइम मशीन न्यूयॉर्क फेड के सामने खड़ी है। यह 2025 का अक्तूबर है। सोना 3700 डॉलर प्रति औंस पर है। गोल्डमैन सैश ने सोने के 5000 डॉलर तक पहुंचने का आकलन पेश किया है। हमें नहीं पता कि इस तेजी का जॉन पॉलसन कौन होगा, मगर लोग बता रहे हैं कि इस तेजी का सबसे ज्यादा फायदा भारतीयों को हुआ है, क्योंकि वे तो पीढ़ियों से सोना लिए बैठे हैं। फिर मिलेंगे अगले सफर पर
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 12, 2025, 06:37 IST
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