क़तील शिफ़ाई: दिल को ग़म-ए-हयात गवारा है इन दिनों

दिल को ग़म-ए-हयात गवारा है इन दिनों पहले जो दर्द था वही चारा है इन दिनों हर सैल-ए-अश्क साहिल-ए-तस्कीं है आज-कल दरिया की मौज मौज किनारा है इन दिनों ये दिल ज़रा सा दिल तिरी यादों में खो गया ज़र्रे को आँधियों का सहारा है इन दिनों शम्ओं' में अब नहीं है वो पहली सी रौशनी क्या वाक़ई वो अंजुमन-आरा है इन दिनों तुम आ सको तो शब को बढ़ा दूँ कुछ और भी अपने कहे में सुब्ह का तारा है इन दिनों

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Aug 23, 2025, 13:19 IST
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