लोकतंत्र का सवाल: मिंता देवी जैसे मामले में सरकार-चुनाव आयोग को पारदर्शी जांच करानी चाहिए, ताकि भरोसा कायम रहे
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) और मतदाता सूचियों में कथित धांधली के खिलाफ सोमवार को विपक्ष के करीब 300 सांसदों के विरोध प्रदर्शन के मंगलवार को भी जारी रहने से कुछ शंकाएं तो उठती ही हैं। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में व्यापक पैमाने पर वोट चोरी का आरोप लगाते हुए दावा कर रहे हैं कि निर्वाचन आयोग सत्तारूढ़ दल के साथ मिलीभगत कर नतीजों में हेरफेर करता है। सत्तारूढ़ दल ने स्वाभाविक ही राहुल गांधी के दावों को फर्जी बताते हुए मतदाताओं का अपमान करने का आरोप लगाया और कहा कि यह कांग्रेस की बार-बार चुनावी हार की 'हताशा और गुस्से' से उपजा है। सियासत अपनी जगह है, लेकिन राजनीतिक दलों को यह भी समझना चाहिए कि निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर सवाल लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है। लोकतंत्र में निर्वाचन आयोग की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है, जो न केवल चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाता है, बल्कि राजनीतिक दलों और मतदाताओं के विश्वास को भी बनाए रखता है। ऐसे में टकराव के जरिये नहीं, बल्कि संवाद से समाधान ढूंढे जाने चाहिए। मिंता देवी का मामला निश्चित रूप से पड़ताल का विषय है और सरकार व चुनाव आयोग को इसकी पारदर्शी तरीके से जांच करानी चाहिए, लेकिन इसे आधार बनाकर पूरी चुनावी प्रक्रिया को संदेह के घेरे में लाने के प्रयासों का समर्थन नहीं किया जा सकता। विपक्ष को अगर निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर संदेह है, तो उसे ठोस सुबूतों और रचनात्मक सुझावों के साथ अपनी चिंता को सामने रखना चाहिए। भारत दुनिया का सबसे विशाल लोकतंत्र है, जहां चुनावी प्रक्रिया में प्रशासनिक लापरवाही समेत विभिन्न वजहों से चूकें हो सकती हैं। दूसरी तरफ, निर्वाचन आयोग को भी इन आलोचनाओं को गंभीरता से लेते हुए अपने कामकाज में पारदर्शिता लानी चाहिए, ताकि सिर्फ विपक्षी दलों ही नहीं, देश की जनता में भी यह भरोसा कायम रहे कि निर्वाचन आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है। विपक्षी दलों के आरोप को महज राजनीतिक बयान भर कहके टाला नहीं जा सकता, बल्कि देश के लोकतंत्र और मतदाताओं के हित में उसका गंभीर समाधान ढूंढा जाए। जैसा कि निर्वाचन आयोग ने खुद स्वीकार किया कि मतदाता सूची के मसौदे में कुछ गड़बड़ियां हो सकती हैं, तो उसे उन गड़बड़ियों को सुधारने के लिए पूरी तरह से सक्रियता दिखानी चाहिए। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सांविधानिक संस्थान और उनकी स्वतंत्र व निष्पक्ष कार्यशैली ही स्वस्थ व मजबूत लोकतंत्र का आधार होती है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 13, 2025, 06:15 IST
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