Rajasthan: धर्मांतरण विधेयक क्या है? राजस्थान में लागू करने के समझें मायने, वसुंधरा सरकार भी लाई थी यह बिल

राजस्थान में लालचया जबरन धर्म परिवर्तन को संज्ञेय अपराध घोषित करने के लिए भजनलाल सरकार नया कानून ला रही है। इसके लिए विधानसभा में नया बिल पेश कर दिया गया है। इसे 'दि राजस्थान प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलीजन बिल-2024' नाम दिया गया है। पिछले साल कैबिनेट की बैठक में इस विधेयक के प्रारूप को मंजूरी मिली थी। हालांकि, अभी विधेयक पारित नहीं हुआ है। सत्र के दौरान इस पर बहस होगी। इसके बाद इसे विधानसभा से पारित कर राष्ट्रपति को मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। बता दें कि विधेयक के कानून बनने के उपरांतकोई व्यक्ति या संस्था, किसी व्यक्ति पर मिथ्या निरूपण, कपटपूर्वक, बलपूर्वक औरअनुचित प्रभाव आदि का प्रयोग कर धर्म परिवर्तन नहीं करवा सकेंगे। अगर कोई व्यक्ति अथवा संस्था ऐसा कृत्य करते हैंतो उनके लिए विधेयक में अधिकतम 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। धर्म परिवर्तनविधेयक के क्या हैंमायने देश सहित प्रदेश में भी कई ऐसे दर्जनों मामले सामने आए हैं, जहां लड़की, लड़के का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया है। सरकार इन घटनाओं पर रोक लगाने के लिए धर्म विरोधी कानून को लागू करना चाहती है, जो देश के झारखंड, कर्नाटक, गुजरात और उत्तर प्रदेश में पहले से लागू है। इधर, विधानसभा में कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने बताया,धर्मांतरण बिल की बड़ी आवश्यकता है।क्योंकि राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में चाहे हमारे आदिवासी भाई बहनों के क्षेत्र हो या कई अन्य क्षेत्रों में इस तरह के मामले सामने आते हैं। इनकी रोकथाम के लिए यह विधेयक लाना आवश्यक है।क्योंकि कई संस्थाएं समूह बनाकर गलत प्रचार कर आर्थिक रूप से प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन करवाते हैं। लव जिहाज किया तो विवाह अमान्य घोषित हो सकता है अगर कोई व्यक्ति विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन कराने के उद्देश्य से विवाह करता हैतो पारिवारिक न्यायालय ऐसे विवाह को अमान्य घोषित कर सकता है। इस विधि में अपराध गैर-जमानती व संज्ञेय होंगे। उन्होंने कहा कि अन्य कई राज्यों में जबरन धर्मांतरणको रोकने के लिए पहले से ही कानून अस्तित्व में है। स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने धर्मांतरण विरोधी बिल को सदन में पेश किया। संसदीय कार्य और कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने बताया कि राजस्थान के लिए धर्मांतरण बिल की बड़ी आवश्यकता है। उन्होंने कहा, हमारे राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में यह विधेयक जरूरी था। नए बिल के प्रावधान नए बिल के तहत जबरन धर्मांतरण पर एकसे 10 साल की सजा का प्रावधान किया गया है इसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में माना गया है पीड़ित पक्ष की तरफ से कोई भी रक्त संबंधी धर्म परिवर्तन के विरुद्ध एफआईआर करवा सकता है कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन करता है तो उसे 60 दिन पहले इसकी सूचना कलेक्टर ऑफिस को देनी होगी कुंभ में मरने वालों की चिंता नहीं, प्रोपेगेंडा कर रही सरकार :कांग्रेस धर्मांतरण बिल पर नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने कहा कि यदि सरकार को लगता है कि कोई संस्था समूह या व्यक्ति ज़बरन धर्म परिवर्तन करवा रहा है तो उसे कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन, सरकार कुंभ में मरने वाले लोगों की चिंता करने के बजाय धर्म परिवर्तन बिल के नाम पर प्रोपेगेंडा कर रही है। वसुंधरा सरकार मेंभी 16 साल पहले आया था विधेयक राजस्थान में पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार भी धर्म स्वातंत्र विधेयक लाई थी। लेकिन राष्ट्रपति से इसे मंजूरी नहीं मिली। बीजेपी की तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे भी 2008 में धर्म स्वातंत्रविधेयक लाई थी। लेकिन पिछले 16 साल में यह विधेयक राष्ट्रपति भवन में अटका रहा। राष्ट्रपति की अनुमति के बिना यह बिल कानून का रूप नहीं ले पाया। इसके बाद भजनलाल सरकार ने मौजूदा सत्र में इस बिल को वापस लेकर नया बिल पेश कर दिया। अन्य राज्यों में धर्म परिवर्तन कानूनों की स्थिति राजस्थान से पहले देश के कई राज्यों में धर्म के गैरकानूनी रूपांतरण को लेकर कानून बनाए जा चुके हैं। यूपी की योगी सरकार 27 नवंबर2020 को धर्म के गैरकानूनी रूपांतरण पर प्रतिबंध लगाने के लिए अध्यादेश लाई थी। इसके बाद मध्यप्रदेशसरकार ने जनवरी 2021 में मध्यप्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अध्यादेश, 2020 को लागू किया। हरियाणा में तत्कालीन मनोहर लाल खट्टर सरकार ने भी हरियाणा विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन निवारण नियम, 2022 बनाया। संसद में प्राइवेट बिल के रूप में भी आ चुका राज्यों की विधानसभाओं के अलावा धर्म परिवर्तन के विरोध में संसद में भी कई बार इस तरह के प्राइवेट मेंबर बिल सदन में पेश किए जा चुके हैं। लेकिन संसद से कभी पास नहीं हुए। साल 2015 मेंकेंद्रीय कानून मंत्रालय नेकहाकि संसद के पास धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने की विधायी क्षमता नहीं है। फिर भी समय-समय पर कई राज्यों ने बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन से किए गए धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून बनाए। इनमें ओडिशा (1967), मध्यप्रदेश (1968), अरुणाचल प्रदेश (1978), छत्तीसगढ़ (2000और 2006), गुजरात (2003), हिमाचल प्रदेश (2006 और2019), झारखंड (2017), उत्तराखंड (2018), हरियाणा (2022), मध्यप्रदेश (2020) उत्तर प्रदेश (2024) शामिल हैं। हिमाचल प्रदेश (2019) और उत्तराखंड के धर्म परिवर्तन प्रतिषेद कानून में यह प्रावधान हैकि यदि विवाह केवल गैरकानूनी धर्मांतरण के उद्देश्य से किया गया था तो उसे निरस्त किया जा सकता है। तमिलनाडु में साल2002 मेंकानून लाया गया। हालांकि, तमिलनाडु के कानून को 2006 में (ईसाई अल्पसंख्यकों के विरोध के बाद) निरस्त कर दिया गया था। देश भर में धर्मांतरण विरोधी कानूनों की तुलना एनडीए सरकार की अगुवाई में 2019 में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान लव जिहाद का मुद्दा जमकर उछाला गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश के विधि आयोग ने जबरन/धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन की बढ़ती घटनाओं का हवाला देते हुए नवंबर 2019 में धर्म परिवर्तन को विनियमित करने के लिए एक नया कानून बनाने की सिफारिश की। इस सफिरिश पर अमल करते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 2020 मेंअध्यादेश जारी कर दिया। यूपी के बादएमपी सरकार ने भीधर्म परिवर्तन को विनियमित करने के लिए जनवरी 2021 में एक अध्यादेश जारी करने का फैसला किया। इसके बाद जुलाई 2024 में यूपी विधानसभा ने गैरकानूनी धर्म परिवर्तन (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित कर दिया। धर्म परिवर्तन के लिए पहले कलेक्टर को देनी होती है सूचना उत्तर प्रदेश औरमध्यप्रदेश में मौजूदा प्रावधानों के अनुसार, धर्म परिवर्तन करने के लिए पहले कलेक्टर को पूर्व में सूचना देनी अनिवार्य है। इसमें यूपी में धर्मांतरण करने वालों को एक महीने पहले सूचना देनी होती है।जबकि एमपी में पुजारी या आयोजकों को भी 60 दिन पहले सूचना देनी होती है। यूपी में धर्मांतरण का आवेदन मिलने के बाद डीएम प्रस्तावक की पुलिस जांच करवाता है कि धर्मांतरण जबरन या लालच में तो नहीं करवाया जा रहा। एमपी अध्यादेश में ऐसी कोई आवश्यकता नहीं है, हालांकि यह इन प्रक्रियाओं के उल्लंघन के कारण हुए अपराध का संज्ञान लेने के लिए किसी भी अदालत के लिए डीएम की मंजूरी को एक पूर्व शर्त के रूप में अनिवार्य बनाता है। यूपी अध्यादेश में धर्म परिवर्तन के बाद की प्रक्रिया भी निर्धारित की गई है। धर्म परिवर्तन के बाद, धर्म परिवर्तन की तिथि से 60 दिनों के भीतर, धर्मांतरित व्यक्ति को डीएम को एक घोषणा (विभिन्न व्यक्तिगत विवरणों के साथ) प्रस्तुत करना आवश्यक है। डीएम घोषणा की एक प्रति सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करेगा (धर्मांतरण की पुष्टि होने तक) और धर्म परिवर्तन पर किसी भी आपत्ति को दर्ज करेगा। धर्मांतरण करानेमें सहायता करने वाले व्यक्तियों द्वारा किए गए अपराधों के लिए उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में निम्नलिखित सजा का प्रावधान किया गया है। मध्यप्रदेश सामूहिक धर्मांतरण (एक ही समय में दो या अधिक व्यक्तियों का धर्मांतरण) कारावास की अवधि 3-10 वर्ष 5-10 वर्ष जुर्माना राशि 50,000 रुपये या उससे अधिक 1,00,000 रुपये या उससे अधिक किसी नाबालिग, महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति का धर्म परिवर्तन कारावास की अवधि 2-10 वर्ष 2-10 वर्ष जुर्माना राशि 25,000 रुपये या उससे अधिक 50,000 रुपये या उससे अधिक कोई अन्य रूपांतरण कारावास की अवधि 1-5 वर्ष 1-5 वर्ष जुर्माना राशि 15,000 रुपये या उससे अधिक 25,000 रुपये या उससे अधिक यदि किसी संगठन द्वारा उपरोक्त तीनों में से कोई भी अपराध किया जाता है, तो उत्तर प्रदेश अध्यादेश के तहत संगठन का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है और राज्य सरकार से मिलने वाले अनुदान या वित्तीय सहायता बंद की जा सकती है। मध्यप्रदेश अध्यादेश के तहत ऐसे संगठनों का केवल पंजीकरण ही रद्द किया जा सकता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Feb 04, 2025, 21:37 IST
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