संबंध: अमेरिकी नीति के केंद्र में बना रहेगा भारत, वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भी चिंतित होने की जरूरत नहीं
डोनाल्ड ट्रंप के दोस्त हों या दुश्मन, दोनों ही पिछले कुछ वक्त से उनके द्वारा दिए गए बयानों से उत्तेजना महसूस कर रहे हैं। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि ट्रंप को भी अपनी यही छवि पसंद है। वह कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने, मेक्सिको की खाड़ी का नाम बदल कर अमेरिका की खाड़ी रखने और ग्रीनलैंड को डेनमार्क से खरीदने जैसी तमाम बातें कह चुके हैं। जाहिर है कि पूरी दुनिया में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल को लेकर एक अनिश्चितता व बेचैनी जैसा माहौल है, लेकिन इन सबके बीच जो एक देश आश्वस्त हो सकता है, वह भारत ही है। हालांकि, भारतीय निर्यात पर टैरिफ बढ़ाने, अवैध आप्रवासियों को वापस भेजने की धमकी और एच1बी वीजा के अनुदान को कड़ा करने संबंधी कुछ प्रश्न हों, लेकिन फिर भी भारत को ज्यादा चिंता करने की जरूरत न होने की कुछ वजहें हैं। सबसे पहली बात तो यही है कि भारत के साथ घनिष्ठ संबंधों के लिए अमेरिकी कांग्रेस और सीनेट में दोनों दलों का समर्थन जारी है। इसके अतिरिक्त, अमेरिका के अपने कथित रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी चीन के साथ संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। ट्रंप को पता है कि भारत के अलावा दूसरा कोई ऐसा देश नहीं है, जो चीन का मुकाबला कर सके, जिसने पड़ोसियों के खिलाफ अपने आक्रामक रुख को कम नहीं किया है और न ही दक्षिण चीन सागर में अपने एकतरफा दावों को छोड़ा है। तथ्य यह भी है कि हिंद-प्रशांत, क्वाड, जी-20, आई2यू2 व आईएमईसी और औपचारिक सहयोगी नहीं होने के बावजूद जब भी जी-7 शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया गया भारत सहयोगी साझेदार रहा है। इसके अतिरिक्त, भारत-अमेरिका रक्षा व्यापार में तेजी आ रही है; भारतीय थल सेना, वायुसेना और नौसेना के पास बड़े भंडार हैं, जिससे अमेरिकी रक्षा निर्माण कंपनियों को बड़े अनुबंध मिलेंगे, नौकरियां पैदा होंगी और ट्रंप खुश रहेंगे। अगर ट्रंप ज्यादा अमेरिकी रक्षा निर्माताओं को भारत में उत्पादन शुरू करने के लिए प्रेरित करते हैं, तो रक्षा संबंध और भी गहरे हो जाएंगे, जैसे कि तकनीक हस्तांतरण के साथ जीई ने एचएएल के साथ जीई एफ 414 जेट इंजन बनाने के लिए समझौता किया है, जो बाइडन के कार्यकाल में हुआ था। अगस्त, 2024 में हस्ताक्षरित दो समझौतों-आपूर्ति सुरक्षा समझौता (एसओएसए) और संपर्क अधिकारी नियुक्ति समझौता (एएलओ) से भी रक्षा सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन (आईबीईएफ) के अनुसार, 2023-24 में, 118.2 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था, और भारत के पक्ष में 36.8 अरब अमेरिकी डॉलर का अधिशेष था। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य रहा, जो भारत के वैश्विक व्यापार का 17 फीसदी हिस्सा है। हालांकि, भारत को स्वेच्छा से कुछ चुनिंदा आयातों पर शुल्क कम करना चाहिए; कई उत्पादों पर हमारी शुल्क दरें आसियान देशों द्वारा लगाए गए शुल्कों से बहुत अधिक हैं। बदले में, हमें कई भारतीय निर्यातों के लिए बहुत आसान बाजार पहुंच की मांग करनी चाहिए। वर्ष 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा के साथ भारत को ट्रंप द्वारा पहले कार्यकाल के दौरान खत्म की गई जीएसपी व्यवस्था की बहाली की मांग नहीं करनी चाहिए। पहले कार्यकाल में उनके दबाव के कारण ही हमने ईरान से तेल आयात बंद कर अमेरिका से तेल और गैस खरीदना शुरू कर दिया था, जिससे भारत का निर्यात बढ़कर 14.3 अरब डॉलर हो गया है; उनके दूसरे कार्यकाल में इस व्यापार के और अधिक बढ़ने की संभावना है। बाइडन के राष्ट्रपतित्व काल में भारतीय और अमेरिकी एनएसए द्वारा हस्ताक्षरित महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर पहल (आईसीईटी), दोनों देशों के बीच प्रौद्योगिकी सहयोग का प्रेरक इंजन बनने जा रहा है, क्योंकि यह वायरलेस दूरसंचार, एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग, सेमीकंडक्टर जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कवर करता है और सरकारों, उद्योगों, शिक्षाविदों, स्टार्टअपों को एक मंच पर लाता है। भारत को ट्रंप 2.0 के तहत और अधिक समझौतों की आवश्यकता है, जैसे कि बाइडन के नेतृत्व में चिप निर्माण और सेमीकंडक्टर निर्माण समझौते किए गए थे। सबसे बढ़कर, 40 लाख सशक्त, अमीर और प्रभावशाली भारतीय अमेरिकी दोनों देशों के बीच सबसे मजबूत पुल का निर्माण करते हैं। ट्रंप पारंपरिक राजनेताओं के किसी भी सांचे में फिट नही बैठते हैं। वह एक अरबपति से राजनीतिज्ञ बने, राष्ट्रपति बने। उनकी धमकियों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, लेकिन यही तो उनकी शैली है। ट्रंप अपने भड़काऊ बयानों से अपने समकक्षों को परेशान करते हैं और उन्हें सौदे करने के लिए मजबूर करते हैं। अपने पहले कार्यकाल में, कनाडा और मेक्सिको के खिलाफ उनकी शुरुआती धमकियों ने उन्हें संशोधित नाफ्टा पर सहमत होने के लिए मजबूर कर दिया था। और चीन भी अमेरिकी निर्यात को चीन में आने देने के लिए सहमत हो गया। अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत अरुण के सिंह को लगता है, वह अपने दोस्तों, भागीदारों और कमजोर देशों को धमकाते रहे हैं और ताकत का दिखावा भी करते रहे हैं। सौभाग्य से, हमारे पास नरेंद्र मोदी जैसे प्रधानमंत्री हैं, जिनके साथ उन्होंने व्यक्तिगत गर्मजोशी वाला तालमेल विकसित किया है। हाउडी मोदी (सितंबर 2019) भारतीय अमेरिकियों का सबसे बड़ा समागम था, जिसमें कभी ट्रंप ने भाग लिया था। यह देखना आश्चर्यजनक था कि एक भारतीय प्रधानमंत्री अमेरिका में 50,000 लोगों की भीड़ के सामने अमेरिकी राष्ट्रपति का परिचय करा रहे थे। और अहमदाबाद के सरदार पटेल स्टेडियम में मोदी द्वारा आयोजित नमस्ते ट्रंप (फरवरी 2020) एक कदम और आगे बढ़ गया। 1,25,000 भारतीयों ने ट्रंप का ऐसा स्वागत किया, जो उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी नहीं देखा था। फिर आगरा में ताजमहल के लॉन में मेलानिया के साथ सैर ने उनके लिए शायद जीवन भर की यादें छोड़ दी होंगी। ट्रंप के फंडे स्पष्ट हैं : जो लोग अमेरिका से कुछ चाहते हैं, उन्हें कुछ देने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसलिए, हमें सौदेबाजी और समझौता करने के लिए तैयार रहना चाहिए। लेकिन हमें बहुत ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए, पिछली बार प्रधानमंत्री मोदी के साथ बातचीत के बाद ट्रंप ने खुद कहा था कि वह एक सख्त वार्ताकार हैं! और मोदी का मानना है कि सबसे अच्छा सौदा वह होता है, जिसमें दोनों पक्ष विजेता महसूस करते हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Jan 21, 2025, 07:39 IST
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