मतदाता सूची का पुनरीक्षण: इस विवाद का कोई अर्थ नहीं, निर्वाचन प्रक्रिया की जीवंतता बनाए रखने के लिए यह जरूरी
मतदाता सूची पुनरीक्षण पर विवाद गहराता जा रहा है। चुनाव आयोग पर नित नए आरोप लगाए जा रहे हैं। उसकी निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा को संदेह के घेरे में लाया जा रहा है। धरना, प्रदर्शन और यहां तक कि संसद की कार्यवाही पर भी इसका असर पड़ रहा है। संविधान के अनुच्छेद-324 में चुनाव आयोग को चुनाव प्रक्रिया के अधीक्षण, उसके निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार दिया गया है। चुनाव आयोग इसके लिए मतदाता सूची को लगातार पुनरीक्षित करता रहता है, ताकि नए मतदाताआें का नाम जोड़ा जा सके और जो मतदाता नहीं हैं, उनका नाम हटाया जा सके। सर्वोच्च न्यायालय ने लक्ष्मी चरन सेन बनाम एकेएम हसन 1985 के मुकदमे में स्पष्ट किया था कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण एक लगातार चलते रहने वाली प्रक्रिया है और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि यह निरंतर चलती रहे। वयस्क मताधिकार हमारी लोकशाही का मूल सिद्धांत है। संविधान के अनुच्छेद-326 में कहा गया है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे। ऐसा कोई भारतीय नागरिक, जो 18 वर्ष की उम्र पूरी कर चुका है, जो समुचित विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी कानून द्वारा अयोग्य नहीं ठहराया गया है, वह वोट देने का हकदार है। अनुच्छेद-326 में दिए गए अधिकार का प्रयोग करते हुए संसद ने लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 बनाया। इस कानून में मतदाता सूची को तैयार करने के संबंध में व्यापक उपबंध दिए हुए हैं। लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-16(1)(ए) में कहा गया है कि जो व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है, उसे मतदाता सूची में पंजीकृत नहीं किया जा सकेगा। इसे स्पष्ट करते हुए धारा-16(2) में कहा गया है कि यदि ऐसे किसी व्यक्ति का नाम, जो भारत का नागरिक नहीं है, मतदाता सूची में पंजीकृत कर भी लिया गया है, तो उसे सूची से निकाल दिया जाएगा। चूंकि, किसी मतदाता का नाम देश में किसी एक स्थान पर ही पंजीकृत हो सकता है, इसलिए मतदाता सूची का पुनरीक्षण करते समय यह सुनिश्चित किया जाता है कि वह उस स्थान का सामान्यत: निवासी हो, जहां पर उसका नाम हो। धारा-20 इसकी विस्तार से व्याख्या करती है। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि किसी निर्वाचन क्षेत्र में घर होने मात्र से ही कोई व्यक्ति वहां का सामान्यत: निवासी नहीं मान लिया जाएगा। कुछ अपवादों को छोड़कर उसे यह भी साबित करना पड़ेगा कि व्यावहारिक रूप से वह उसी निर्वाचन क्षेत्र में निवास करता है। लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा-21 के अंतर्गत मतदाता सूची का पुनरीक्षण करते समय जमीनी स्तर के अधिकारियों को सुनिश्चित करना होता है कि मतदाता भारत का नागरिक हो तथा वह उस जगह पर सामान्यत: निवास करता हो। निर्वाचन प्रक्रिया की जीवंतता बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण लगातार होता रहे और आवश्यकतानुसार नए मतदाताओं का नाम जुड़ता रहे तथा उन मतदाताओं का नाम सूची से हटाया जाता रहे, जो भारत के नागरिक नहीं हैं और सामान्यतया उस निर्वाचन क्षेत्र में निवास नहीं कर रहे हैं। न्यायबोध सुनिश्चित करना लोकशाही का प्रमुख कर्तव्य होता है। अत: मतदाता पुनरीक्षण के मामलों में भी इस बात की विशेष सावधानी बरती जाती है कि नाम जोड़ते या हटाते समय किसी के साथ अन्याय नहीं हो। इसके लिए धारा-24 में कहा गया है कि यदि कोई मतदाता इस तरह से तैयार की गई मतदाता सूची से असंतुष्ट है, तो वह जिला मजिस्ट्रेट या अन्य नियत प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है, ताकि यदि कोई चूक हुई हो, तो उसमें सुधार किया जा सके। उसके बाद भी यदि कोई व्यक्ति असंतुष्ट है, तो अनुच्छेद-226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय का विकल्प भी खुला हुआ है। भारत के चुनाव आयोग की यह जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कि किसी गैर-नागरिक का नाम मतदाता सूची में शामिल न हो सके। इसलिए यदि किसी मतदाता की पात्रता पर कोई संदेह है, तो इस सांविधानिक संस्था की जिम्मेदारी है कि उसकी सम्यक जांच करे। यदि वह ऐसा नहीं करती, तो यह सांविधानिक निर्देशों का उल्लंघन करने के जैसा होगा। मतदाता सूची के पुनरीक्षण के समय आधार कार्ड जैसे दस्तावेजों की प्रासंगिकता से जुड़े विवाद लगातार आ रहे हैं। आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम-2016 की धारा-09 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि केवल आधार नंबर या उसका प्रमाणीकरण ही किसी व्यक्ति के अधिवास या नागरिकता का स्वत: प्रमाण नहीं माना जाएगा। इसका मतलब यह कि किसी व्यक्ति की नागरिकता को साबित करने के लिए संविधान और नागरिकता अधिनियम, 1955 की शर्तों को पूरा करना होगा। यहां तक कि यदि कोई व्यक्ति अवैध रूप से भारत में निवास करता है, तो उसे नागरिक नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. योगेश भारद्वाज बनाम उत्तर प्रदेश (1990) में इस तरह के एक मुकदमे का निपटारा करते समय स्पष्ट किया कि वैध रूप से भारत में रहने वाले व्यक्ति ही अधिवासी माने जाएंगे और यदि कोई व्यक्ति आव्रजन कानून का उल्लंघन करते हुए कहीं पर रहता है, तो उसे देश का निवासी नहीं माना जा सकता। मतदाता सूची का पुनरीक्षण केवल औपचारिक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं है, अपितु यह संविधान के उदात्त उद्देश्यों को पूरा करने का पुनीत कर्तव्य भी है। इसमें किसी भी तरह की चूक या त्रुटि संविधान के अनुच्छेद-14,(1)(ए) और अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है। अत: हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि इसके पुनरीक्षण में सहयोग करे और यदि कोई शिकायत है, तो संविधान और कानून में दिए गए उपबंधों के अनुसार आगे बढ़े।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Aug 05, 2025, 06:35 IST
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