जोखिम: दुनिया के शीर्ष 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत के शहर, सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी कोई असर नहीं
जिन देशों ने प्रदूषण नियंत्रण को राजनीतिक प्राथमिकता बनाया, वहां की हवा कुछ ही वर्षों में शुद्ध हो गई। अमेरिका, यूरोप, जापान और दक्षिण कोरिया इसके उदाहरण हैं, जहां राजनीतिक इच्छाशक्ति ने उद्योगों, ऊर्जा क्षेत्र व परिवहन में कठोर सुधार लागू कर प्रदूषण को आश्चर्यजनक रूप से घटाया। इसके उलट भारत में दशकों से लगातार बिगड़ती हवा के बावजूद न केंद्र और न ही राज्य सरकारों ने इसे वैसी राष्ट्रीय आपात स्थिति माना, जैसी स्थिति आज देश की हवा में दिखती है। यह भी पढ़ें - Indigo Crisis: सातवें दिन भी इंडिगो की 562 उड़ानें निरस्त, यात्रियों का फूट रहा गुस्सा; उड्डयन मंत्री हुए सख्त दुनिया के शीर्ष 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में संसद से लेकर विधानसभाओं तक में चर्चा हुई लेकिन कोई सार्थक हल नहीं निकला। केवल सुप्रीम कोर्ट बार-बार आदेश देता रहा, पर उनका पालन राजनीतिक प्राथमिकता नहीं बन पाया। इसलिए बेबस जनता रोज 14-15 सिगरेट के बराबर जहरीला धुआं पीने को मजबूर है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) की संयुक्त पर्यावरणीय समीक्षा बताती है कि दुनिया की तुलना में भारत की हवा अभूतपूर्व रूप से जहरीली है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के मुताबिक सुरक्षित पीएम 2.5 स्तर 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होना चाहिए, जबकि भारत के प्रमुख महानगर साल भर औसतन इससे 10 से 20 गुना अधिक प्रदूषण झेलते हैं। समस्या दिल्ली तक सीमित नहीं कई शहर शामिल समस्या दिल्ली तक सीमित नहीं, मुंबई, पटना, कोलकाता, लखनऊ, कानपुर, मेरठ, फरीदाबाद, गुरुग्राम व गाजियाबाद जैसे शहर भी पूरे वर्ष में खतरनाक एक्यूआई श्रेणी में रहते हैं। बर्कले अर्थ व स्टैनफोर्ड एयर क्वालिटी मॉडल के अनुमान के मुताबिक पीएम 2.5 का 22 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रहने पर रोज 1 सिगरेट के बराबर स्वास्थ्य-हानि होती है। सर्दियों में जब दिल्ली-एनसीआर का पीएम 2.5 स्तर 300 से 500 के बीच रहता है, तब यह 14 से 23 सिगरेट रोज पीने के बराबर है। प्रदूषण पर राजनीतिक चुप्पी संयुक्त पर्यावरण समीक्षा के अनुसार भारत की हवा दुनिया में सबसे जहरीली है, लेकिन उसके राजनीतिक विमर्श में इसका स्थान लगभग शून्य है। लोकसभा और विधानसभाओं में प्रदूषण पर विस्तृत विधायी चर्चा पिछले कई दशकों में उंगलियों पर गिनने लायक भी नहीं हुई। अर्थशास्त्री और पर्यावरण नीति विशेषज्ञ डॉ. राघव चतुर्वेदी का कहना है कि केवल दिल्ली के विधानसभा चुनाव के दौरान इस मुद्दे को उठाया जाता है और चुनाव संपन्न होते ही यह भुला दिया जाता है। यह भी पढ़ें - SC: निजी परिसर में कथित जातिसूचक टिप्पणी को अदालत ने नहीं माना 'सार्वजनिक स्थान', SC/ST एक्ट के आरोप किए रद्द सुप्रीम कोर्ट की अकेली लड़ाई सर्वोच्च अदालत ने 1998 से लेकर 2024 तक डीजल वाहनों, निर्माण गतिविधियों, कचरा जलाने और स्टबल बर्निंग पर कई आदेश दिए। अदालतें बार-बार कहती रहीं कि हवा साफ करना संवैधानिक कर्तव्य है, परंतु न राज्यों ने और न केंद्र ने इन आदेशों को लागू करने में समन्वय दिखाया। जस्टिस (सेवानिवृत्त) मदन बी. लोकुर ने 2023 में टिप्पणी की थी, भारत में प्रदूषण पर राजनीतिक इच्छा शक्ति लगभग अनुपस्थित है। सुप्रीम कोर्ट आदेश दे सकता है, लागू नहीं कर सकता। यह काम सरकारों का है जो दुर्भाग्य से इसे प्राथमिकता ही नहीं मानतीं। नतीजा, दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, पटना, कानपुर, लखनऊ, कोलकाता समेत देश के अधिकांश महानगर विश्व के शीर्ष प्रदूषित शहरों में शामिल रहते हैं। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी के अनुसार भारत में हर साल वायु प्रदूषण से 12 लाख से अधिक समयपूर्व मौतें होती हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 09, 2025, 05:40 IST
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