साहिर लुधियानवी: पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुराओ तो कोई बात बने

पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुराओ तो कोई बात बने सर झुकाने से कुछ नहीं होगा सर उठाओ तो कोई बात बने ज़िंदगी भीख में नहीं मिलती ज़िंदगी बढ़ के छीनी जाती है अपना हक़ संग-दिल ज़माने से छीन पाओ तो कोई बात बने रंग और भेद ज़ात और मज़हब जो भी हो आदमी से कमतर है इस हक़ीक़त को तुम भी मेरी तरह मान जाओ तो कोई बात बने नफ़रतों के जहाँ में हम को प्यार की बस्तियाँ बसानी है दूर रहना कोई कमाल नहीं पास आओ तो कोई बात बने

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: May 17, 2025, 13:13 IST
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