सरशार सैलानी: हम ही हम हैं तो क्या हम हैं तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो

चमन में इख़्तिलात-ए-रंग-ओ-बू से बात बनती है हम ही हम हैं तो क्या हम हैं तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो अँधेरी रात तूफ़ानी हवा टूटी हुई कश्ती यही अस्बाब क्या कम थे कि इस पर नाख़ुदा तुम हो ज़माना देखता हूँ क्या करेगा मुद्दई हो कर नहीं भी हो तो बिस्मिल्लाह मेरे मुद्दआ तुम हो हमारा प्यार रुस्वा-ए-ज़माना हो नहीं सकता न इतने बा-वफ़ा हम हैं न इतने बा-वफ़ा तुम हो

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Feb 19, 2025, 14:55 IST
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