सतीश एलिया की 3 चुनिंदा कविताएं

स्वेद-सिक्त रोशनी दीया कच्ची माटी खेत की गुथने, ठुकने और पीटे जाने के बाद चढ़ती है चाक पर सधे हाथ खुद भी तपते हैं धूप में और भट्ठे में तपकर खनकते हैं दीये तेल आसमान को ताकते किसान जब मायूस होकर पसीने से ही सींचते हैं फसल और कोल्हू में तिलहन के साथ पिसती है उम्मीदें भी तब कहीं निकलता है ज़रा सा तेल बाती जिसके तन पर खुद कपड़े नहीं वही उपजाता है उजला कपास न जाने कितने हाथों से गुज़रता है और पहुँचता है नन्हे हाथों में भूखे पेट और ज़र्द चेहरे वाला बच्चा बेचता है रोशनी की बाती अभाव, विवशता और विपन्नता से उपजता है हमारे घरों का उजाला और उसी उजाले से रोशन होते हैं कुछ कच्चे और टूटे घरों के अँधेरे कोने हमारी दीवाली से मनती है न जाने कितने घरों की दीवाली

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 18, 2025, 21:30 IST
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