चिंताजनक: ऋतुओं का चक्र टूटा, जलवायु प्रेरित चरम मौसम से जूझ रहा भारत
मानव सभ्यता हजारों वर्षों तक ऋतुओं की निश्चितता पर निर्भर रही। कब बुवाई हो, कब ठंड आए, कब पेड़ फल दें और कब बच्चों की छुट्टियां हों। लेकिन अब ऋतुएं अपनी पहचान खोने लगी हैं और मौसम का संतुलन चरम सीमाओं पर जा पहुंचा है। भारत में हर बीतता दिन किसी न किसी विनाशकारी मौसम घटना का गवाह बन रहा है, जहां लू सर्दियों में चल रही है, बाढ़ रेगिस्तानों में आ रही है और मानसून नवंबर तक खिंच रहा है। यह अब प्रकृति का उतार-चढ़ाव नहीं, बल्कि एक नया जलवायु युग है, जिसके गवाह हम सभी बन रहे हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट तथा डाउन टू अर्थ की टीम ने 2022 से सितंबर 2025 तक भारत में घटित मौसम-संबंधी घटनाओं का विश्लेषण किया और लगभग 1,500 दिनों, अक्तूबर से दिसंबर 2025 को छोड़कर, की चरम मौसम आपदाओं का एक विस्तृत एटलस तैयार किया है। यह अध्ययन बताता है कि भारत का मौसम अब भूगोल आधारित और पारंपरिक ऋतु-चक्र की सीमाओं से बाहर निकल गया है। यानी मौसम बदल नहीं रहा, मौसम बदल चुका है। रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। भारत अकेला नहीं, दुनिया भी झेल रही है विषय मौसम की मार रिपोर्ट का वैश्विक संदर्भ बताता है कि यह संकट व्यापक है। यूरोप में जुलाई–अगस्त के महीनों में रिकॉर्ड-तोड़ हीटवेव और वनाग्नि,खाड़ी देशों में अत्यधिक उमस और गर्मी के कारण बाहर काम करने पर प्रतिबंध, अमेरिका में लगातार तूफान-बाढ़ और असामान्य सर्दी-गर्मी की मिश्रित घटनाएं,चीन और जापान में मानसून जैसी बारिश सर्दियों तक खिंची। यह संकेत देता है कि पृथ्वी की जलवायु असामान्यता अब वैश्विक वास्तविकता बन चुकी है। ठंड के सीजन में लू, मानसून से पूर्व बाढ़ जैसी अपदाएं 1,500 दिनों में से 1,227 दिनों पर कम से कम एक चरम मौसम घटना दर्ज हुई। कड़ाके की ठंड, लू, बादल फटना, बाढ़, भारी बारिश, आंधी-तूफान सब सामान्य बनते जा रहे हैं। ऐसे इलाकों में चरम घटनाएं हुईं जहां पहले ऐसा इतिहास में भी नहीं दर्ज था। जैसे चेन्नई में बादल फटना, राजस्थान और लेह के रेगिस्तानी क्षेत्रों में बाढ़ और पहाड़ी शहरों में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी। साल 2025 में ऋतु-चक्र का विघटन अब स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। ये भी पढ़ें:जहरीली हवा: दिल्ली-NCR बन सकता है दुनिया का सबसे प्रदूषित इलाका, वैज्ञानिक बोले- सात साल में मुमकिन है बदलाव दीर्घकालिक खतरा विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यदि यह मौसम पैटर्न जारी रहा तो अगले दशक में खाद्यान्न सुरक्षा, ग्रामीण आय और रोजगार व्यवस्था पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है। फसल-बीमा की सीमित पहुंच और बढ़ती उत्पादन लागत किसानों को आर्थिक अस्थिरता की ओर धकेल रही है। कृषि-वैज्ञानिकों के अनुसार, मौसम-आधारित फसल मॉडल, जल प्रबंधन सुधार, बीज- अनुसंधान और राज्य-स्तरीय कृषि नीति परिवर्तन अब विलंबित विकल्प नहीं, बल्कि भारत के कृषि-भविष्य को सुरक्षित करने की अनिवार्यता बन चुके हैं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 01, 2025, 02:11 IST
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