सोशल मीडिया की लत छीन रहीं संवेदनाएं: युवा ही नहीं बुजुर्ग भी बिता रहे ज्यादा समय, व्यवहार पर पड़ रहा गहरा असर
सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेम की लत ने बच्चों से लेकर बुजुर्ग को आभासी दुनिया में ऐसा बांध दिया है कि वास्तविक रिश्तों और भावनाओं की डोर कमजोर पड़ने लगी है। मोबाइल स्क्रीन पर लगातार घंटों समय बिताने, ऑनलाइन गेम्स में हार-जीत का तनाव, सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलोवर बढ़ाने की होड़ ने युवा मन को भी असंवेदनशील बना दिया है। यही वजह है कि घटना-दुर्घटना होने पर पीड़ित की मदद के बजाय लोग रील्स बनाने में जुट जाते हैं जो मानसिक अस्वस्थता की स्थिति दर्शाता है। बढ़ रही मानसिक और शारीरिक कमजोरी इस बार शुक्रवार को मनाए जाने वाले विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की थीम आपदाओं और आपात स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि सोशल मीडिया पर बढ़ती सक्रियता कई स्तर पर लोगों को बीमार कर रही है। कोई शारीरिक कमजोरी की चपेट में आ रहा है तो कोई मानसिक कमजोरी की। घंटों मोबाइल स्क्रीन पर समय बिताने से सामाजिक व्यावहारिकता खत्म हो रही है। सगे संबंधियों से दूरियां बढ़ रही हैं। इससे भावनाएं संवेदनहीन हो रही हैं। लोग मानसिक तनाव की चपेट में आ रहे हैं। शोध में यह बात सामने आई है कि स्क्रीन पर घंटों समय बिताने से दिमाग में डोपामिन हार्मोन निकलता है। कोई रोकता या विरोध करता है तो हार्मोन बंद होने से लोग उत्तेजित होकर हमलावर भी हो जाते हैं। मदद करने के बजाय रील बनाने पर फोकस जिला अस्पताल की मनोचिकित्सक डॉ. शिकाफा जाफरीन बताती हैं कि सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा लाइक की चाह संवेदनहीनता को बढ़ाती है, जो खतरनाक मानसिक समस्या है। उनके दिमाग में ज्यादा लाइक मिलने का नशा होता है, इसलिए मदद करने के बजाय रील बनाने पर फोकस करते हैं। मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सक डॉ. जब्बार हुसैन ने बताया कि सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रियता की वजह से सोचने-समझने की शक्ति काफी प्रभावित होती है। देखा जाता है कि जिन लोगों को थायराइड की दिक्कत होती है, उनमें अवसाद बढ़ने की आशंका ज्यादा होती है। केस एक प्रेमनगर निवासी 13 वर्ष का बालक पड़ोसी जिले के नवोदय स्कूल में पढ़ता है। परिजनों ने संपर्क बनाए रखने के लिए उसे फोन दे दिया। कुछ समय बाद वह सोशल मीडिया पर घंटों समय बिताने लगा। बीमारी का बहाना बनाकर स्कूल भी नहीं जाता था। शिकायत पर परिजन उसे घर लेकर आए तो मोबाइल से दूरी बन गई। इसके चलते वह विगत एक सप्ताह में तीन बार आत्महत्या का प्रयास कर चुका है। केस दो शहर की 58 वर्षीय महिला को रील्स बनाने की ऐसी लत पड़ गई है कि वह 10-12 घंटे सोशल मीडिया पर व्यस्त रहने लगी। उसकी रील्स पर आने वाले कमेंट्स से परिवार वाले परेशान हो गए हैं। मना करने वह घर में उपद्रव करने लगी। जब पति ने रील्स बनाने का विरोध किया तो वह तलाक देने के लिए भी तैयार हो गई। कुछ दिन पहले पुत्रवधू उसे जिला अस्पताल लेकर आई। अभी उसका उपचार जारी है। ये होते हैं नुकसान शारीरिक गतिविधि कम होने से रक्त संचार बिगड़ना, मांसपेशियों और हड्डियों पर असर, प्रतिरक्षा पर नकारात्मक असर। मोबाइल फोन की रोशनी से शारीरिक चक्र बिगड़ता है। रात में नींद मुश्किल से आती है। फोन पर मैसेज से नींद की गुणवत्ता प्रभावित होती है। एक तिहाई से ज्यादा किशोर रात में फोन देखते हैं। इससे चिंता, तनाव या बेचैनी होती है। मानसिक तनाव होता है। किशोरावस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सामाजिक कौशल विकसित करना है। सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रियता से रिश्ते कमजोर होते हैं। बचाव के लिए ये करें स्क्रीन के लिए समय निर्धारित करें। सोने से एक घंटे पहले फोन रख दें। सोते समय फोन से दूरी बनाकर रखें। खेलकूद अथवा सैर-सपाटा में समय बिताएं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 10, 2025, 14:10 IST
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