Exclusive: दालमंडी में पैदा हुए थे शायर आगा हश्र, यहीं है उनकी कुंडली; चचेरे पौत्र ने सहेज रखी हैं उनकी यादें
दालमंडी के चौड़ीकरण का काम करीब-करीब शुरू हो चुका है। ऐसे में वह याद आ रहे हैं जिनकी महक इस गली में घुली हुई है। इस गली की चौखट पर पहुंचते ही बहती हवा में गजल की कुछ पंक्तियां सुनाई देती हैं। ऐसा लगता है कि कोई पलंग पर लेटे बेबसी में गुनगुना रहा हो, याद में तेरी जहां को भूलता जाता हूं मैं, भूलने वाले कभी तुझको भी याद आता हूं मैं। गजल की यह पंक्ति आगा हश्र कश्मीरी की है, जिन्हें उर्दू का शेक्सपीयर कहा जाता था। आगा हश्र इसी दालमंडी के गोविंद कलां में ही पैदा हुए थे। आज भले ही वे इस दुनिया से चले गए हों लेकिन गोविंद कला स्थित उनके पैतृक आवास की पहली मंजिल के एक कमरे में उनकी यादें उनके चचेरे पौत्र ने सहेज रखी हैं। एक मच्छरदानी वाली पलंग की ओर इशारा करके उनके पौत्र आगा नेहाल अहमद शाह बताते हैं कि इसी पर दादा जी सोया करते थे। पलंग को देखते ही ऐसा लगेगा कि है कोई लाचार वृद्ध दर्द भरी आवाज में दालमंडी को टूटता देख बुदबुदा रहा हो, धुंधला सा तसव्वुर है कि दिल भी था यहां, अब तो सीने में फकत इक टीस सा पीता हूं। पलंग के पास शानदार नक्काशीदार लकड़ी की चमचमाती उनकी आलमारी है। इसमें पुराने रिसाले (पत्रिकाएं), किताबें, कुछ पांडुलिपियां रखी हैं। आगा नेहाल उनका निकाहनामा भी दिखाते हैं जो 1917 का है। इसमें तमाम गवाहों के साथ आगा हश्र के भी दस्तखत हैं। इसे भी पढ़ें;Dalmandi Varanasi: दालमंडी में 10 दिन बाद फिर चला प्रशासन का हथाैड़ा, रोका गया रास्ता; फोर्स तैनात
- Source: www.amarujala.com
- Published: Nov 08, 2025, 15:02 IST
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