अध्ययन: वायु प्रदूषण के बीच गुजरा बचपन तो दिमागी विकास होगा प्रभावित, याददाश्त और निर्णय लेने पर डालता है असर
बचपन में मस्तिष्क का विकास न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक व संज्ञानात्मक (काग्निटिव) दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण होता है। यह वह समय होता है जब बच्चे सोचने, समझने, महसूस करने और प्रतिक्रिया देने की मूलभूत क्षमताएं विकसित करते हैं, परंतु एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने इस विकास के मार्ग में वायु प्रदूषण को एक गंभीर खतरे के रूप में चिह्नित किया है। एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित बार्सिलोना इंस्टिट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि यदि बच्चे जन्म से लेकर 12 वर्ष की आयु तक वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के संपर्क में आते हैं तो उनके मस्तिष्क के भीतर स्थित महत्वपूर्ण हिस्सों के बीच संचार संयोजकता यानी फंक्शनल कनेक्टिविटी प्रभावित हो सकती है। यह कनेक्टिविटी वह तंत्र है, जो मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों को आपस में जोड़कर सोचने-समझने, भावनाएं व्यक्त करने और निर्णय लेने में मदद करती है। अध्ययन में विशेष रूप से पीएम2.5, पीएम10 जैसे सूक्ष्म कणों, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स (एनओएक्स) को बच्चों के दिमागी विकास के लिए सबसे खतरनाक पाया गया। यह बात नीदरलैंड के रॉटरडैम शहर में जनरेशन आर नामक प्रोजेक्ट से जुड़े 3,626 बच्चों पर अध्ययन कर स्थापित की गई। ये भी पढ़ें:Reactor:देश के पहले प्रोटोटाइप फास्ट-ब्रीडर रिएक्टर की अगले साल सितंबर में होगी शुरुआत; ऐसे बनाई जाएगी बिजली ब्रेन स्कैन से पहले साल में पीएम10 का प्रभाव दिखा अध्ययन में यह भी देखा गया कि जिन बच्चों ने ब्रेन स्कैन से एक साल पहले पीएम10 के उच्च स्तर का सामना किया, उनमें सैलेन्स नेटवर्क और मेडियल-पैराइटल नेटवर्क्स के बीच भी जुड़ाव कमजोर हो गया। ये नेटवर्क न केवल आसपास के वातावरण को समझने में बल्कि आत्मचिंतन और चेतना के स्तर को बनाए रखने में मदद करते हैं। जन्म के बाद पहले 3 वर्षों तक वायु प्रदूषण का गहरा असर शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रदूषण से मस्तिष्क के अमिग्डाला जो भावनाओं को समझने में मदद करता है, हिप्पोकैम्पस जो याददाश्त और सीखने से जुड़ा होता है और कॉडेट न्यूक्लियस जो मोटर फंक्शन और निर्णय लेने में सहायता करता है, जैसे हिस्सों के आपसी संबंध कमजोर हो जाते हैं। विशेष बात यह रही कि जिन बच्चों को जन्म के बाद पहले तीन वर्षों तक वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ा, उनके दिमाग के अंदर भावनात्मक और संज्ञानात्मक नियंत्रण से जुड़े हिस्सों के बीच की कड़ी सबसे ज्यादा प्रभावित हुई। ये भी पढ़ें:IIM:'5 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य सिर्फ आंकड़ा नहीं'; दीक्षांत समारोह में बोले PM के प्रधान सचिव नीदरलैंड की तुलना में भारत की स्थिति बेहद खराब यह शोध नीदरलैंड के बच्चों पर किया गया है। वहां वायु प्रदूषण भारत की तुलना में बेहद कम है। इसके बावजूद यदि वहां बच्चों के मस्तिष्क पर इतना गहरा प्रभाव देखा गया है तो भारत जैसे देश, जहां वायु गुणवत्ता बेहद चिंताजनक है, वहां बच्चों पर इसका प्रभाव और भी अधिक गंभीर हो सकता है। वायु गुणवत्ता पर नजर रखने वाले वैश्विक संगठन आईक्यू एयर की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत 2024 में दुनिया का पाँचवां सबसे प्रदूषित देश रहा। यहां पीएम2.5 का वार्षिक औसत 50.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से 10 गुना ज्यादा है। भारत के 74 शहर दुनिया के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। संबंधित वीडियो
- Source: www.amarujala.com
- Published: Apr 20, 2025, 04:41 IST
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