Supreme Court: 'जल्दबाजी में फैसले देने से कमजोर होगा कानून का शासन', कोर्ट ने मृत्युदंड पाए दोषी को किया बरी
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में एक किशोरी के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या मामले में मृत्युदंड पाए आरोपी को बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि जल्दबाजी में मृत्युदंड देना न केवल कानून के शासन को कमजोर करता है, बल्कि न्यायपालिका की प्रतिष्ठा पर भी सवाल खड़ा करता है। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि अभियोजन ने आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पूरे सबूत पेश नहीं किए। इसके साथ ही सह-अभियुक्त, जिसे सात साल की सजा दी गई थी, उसे भी बरी किया गया। ये भी पढ़ें:'उच्च न्यायालयों में काफी आपराधिक अपीलें लंबित..', शीर्ष कोर्ट ने छह दोषियों की सजा पर रोक लगाई अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट को मृत्युदंड देने से पहले बहुत सतर्कता बरतनी चाहिए। मृत्युदंड केवल बहुत ही दुर्लभ मामलों में ही दिया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन का मामला पूरी तरह परिस्थितिजन्य था। इसमें कोई आंखों देखा गवाह नहीं था। डीएनए सबूत में भी असंगतियां पाई गईं, जिससे इसे भरोसेमंद नहीं माना जा सकता। शीर्ष कोर्ट ने कहा, वैज्ञानिक सबूत गंभीर खामियों से भरे हैं। ऐसे हालात में आरोपी को मृत्युदंड देना खतरनाक और अनुचित होगा। ये भी पढ़ें:सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- अगर राज्यपाल अपने कर्तव्य में विफल हो जाएं तो क्या हम चुप बैठें फैसला सुरक्षित सुप्रीम कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि यदि किसी मामले में दो तरह की व्याख्याएं संभव हों, तो हमेशा आरोपी के पक्ष में निर्णय लिया जाना चाहिए। किसी भी संदेह या असंगति की स्थिति में मृत्युदंड जैसी कठोर सजा देना न्याय के खिलाफ होगा। किसी निर्दोष की जान को असुरक्षित करना न्यायिक प्रक्रिया का अपमान है। बता दें कि यह मामला काठगोदाम पुलिस स्टेशन (उत्तराखंड) में नवंबर 2014 में दर्ज किया गया था। किशोरी के पिता ने 21 नवंबर 2014 को गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई थी। चार दिन बाद लड़की का शव बरामद हुआ था।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 11, 2025, 19:30 IST
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