Supreme Court: SIR पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, EC से पूछा- क्या संदिग्ध नागरिकता की शुरुआती जांच भी नहीं कर सकते?
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की उस प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, जिसमें आयोग ने कई राज्यों में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू किया है। अदालत ने सीधा सवाल किया कि क्या आयोग इतने व्यापक अधिकार रखने के बावजूद किसी संदिग्ध नागरिक पर प्रारंभिक जांच भी नहीं कर सकता। मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत की अगुवाई वाली पीठ ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि यदि मतदाता सूची को साफ-सुथरा रखना आयोग की जिम्मेदारी है, तो शुरुआती जांच उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर कैसे हो सकती है। पीठ ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें आरोप लगाया गया है कि चुनाव आयोग की यह एसआईआर प्रक्रिया लोगों पर नागरिकता साबित करने का अनावश्यक दबाव डाल रही है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, आयोग के अधिकारी यह तय नहीं कर सकते कि कोई व्यक्ति नागरिक है या विदेशी, क्योंकि यह अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार या विदेशी न्यायाधिकरण के पास है। अदालत ने इस पर पूछा कि यदि कोई नाम संदिग्ध लगे, तो क्या आयोग सिर्फ शंका भी दर्ज नहीं कर सकता और उसे संबंधित प्राधिकरण को भेज नहीं सकता। नाम हटाने से पहले पूरी जांच जरूरी सुनवाई के दौरान एक वकील ने कहा कि मतदाता सूची में शामिल होने के लिए संविधान ने सिर्फ तीन शर्तें तय की हैं। भारतीय नागरिक होना, 18 वर्ष से अधिक आयु और किसी भी तरह की अयोग्यता न होना। उनका कहना था कि चुनाव आयोग इस प्रक्रिया के नाम पर अतिरिक्त शर्तें जोड़ रहा है, जिससे सामान्य मतदाता को अपनी नागरिकता साबित करने का दबाव झेलना पड़ रहा है। उन्होंने दलील दी कि यदि कोई व्यक्ति पहले से मतदाता सूची में है, तो उसके नाम को हटाने से पहले पूरी और स्वतंत्र जांच जरूरी है। ये भी पढ़ें-भाजपा सांसद निशिकांत का राहुल पर पलटवार, बोले- EVMs राजीव गांधी ने पेश की थीं कोर्ट की तीखी टिप्पणियां अदालत ने कहा कि आयोग यह दावा नहीं कर रहा कि वह किसी को गैर-नागरिक घोषित कर सकता है, लेकिन आयोग का यह अधिकार तो होना चाहिए कि वह किसी संदिग्ध स्थिति में मुद्दे को जांच के लिए आगे भेज सके। अदालत ने पूछा कि क्या आयोग की सुपरिंटेंडेंस की शक्तियों का मतलब यह नहीं है कि वह मतदाता सूची को सही रखने के लिए किसी भी अनियमितता की जांच कर सके। पीठ ने कहा कि आयोग को अपनी कार्यवाही संवैधानिक मर्यादा और निष्पक्षता के अनुरूप ही चलानी चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि नागरिकता एक संवैधानिक आवश्यकता है और इसकी जांच करना किसी भी तरह चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। एक वकील ने तर्क दिया कि यदि कोई व्यक्ति लंबे समय से यहां रह रहा है पर नागरिक नहीं है, तब भी आयोग यह तय नहीं कर सकता कि उसे मतदाता सूची में रहना चाहिए या नहीं। उनका कहना था कि यह अधिकार केवल केंद्र सरकार और विदेशियों के लिए बने कानूनों के तहत गठित न्यायाधिकरणों को ही है अदालत ने कहा कि यह मामला आयोग की शक्तियों की सीमा और मतदाता सूची की विश्वसनीयता दोनों से जुड़ा है। इसलिए यह तय करना बेहद जरूरी है कि आयोग की पूछताछ कहाँ तक वैध है और नागरिकता पर अंतिम फैसला किस प्राधिकरण को करना है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि शेष याचिकाकर्ताओं को भी सुना जाएगा और अगली सुनवाई 11 दिसंबर को होगी। यह मामला अब चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और नागरिकता से जुड़े अधिकारों का बड़ा सवाल बन चुका है। अन्य वीडियो-
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 09, 2025, 16:14 IST
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