Supreme Court: गवाह को धमकाने पर कोर्ट की मंजूरी बिना पुलिस दर्ज कर सकेंगी केस; शीर्ष अदालत का 'सुप्रीम' फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवाह को धमकाना एक संज्ञेय अपराध है और पुलिस अदालत से औपचारिक शिकायत का इंतजार किए बिना सीधे एफआईआर दर्ज कर सकती है और ऐसी घटना की जांच कर सकती है। ऐसे मामलों में शिकायत के लिए पहले अदालत जाने के लिए कहना एक अव्यावहारिक बाधा है। जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 195-ए के तहत अपराध एक संज्ञेय अपराध है और यह किसी व्यक्ति को उसके शरीर, प्रतिष्ठा या संपत्ति या किसी ऐसे व्यक्ति के शरीर या प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की धमकी देकर उसे झूठी गवाही देने के लिए प्रेरित करने से संबंधित है जिससे वह व्यक्ति जुड़ा हो। 2016 में भाजपा कार्यकर्ता योगेश गौदर की हत्या से संबंधित एक मामले में, जिसमें पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता विनय कुलकर्णी भी आरोपी थे, अदालत ने सीबीआई की ओर से दायर एक अपील को स्वीकार कर लिया। साथ ही कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें गवाहों को धमकाने के आरोपी के खिलाफ अपराध का संज्ञान लेने को रद्द कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आईपीसी की धारा 195-ए (गवाहों को धमकाने का अपराध) को आईपीसी की धाराओं 193, 194, 195 और 196 के तहत दर्ज अपराधों से अलग और भिन्न अपराध के रूप में परिकल्पित किया गया था। केरल हाईकोर्ट का भी एक फैसला खारिज पीठ ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि आईपीसी की धारा 195-ए के तहत गवाह को धमकाने से संबंधित अपराध के लिए पुलिस की ओर से प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती। इस दृष्टिकोण से असहमत होते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस धारा को जानबूझकर एक अलग अपराध के रूप में परिकल्पित किया गया है, जिसकी प्रक्रिया अलग है और एक संज्ञेय अपराध होने के कारण, पुलिस को धमकी दिए गए गवाह के बयानों के आधार पर सीधे प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि धमकी दिए गए गवाह को शिकायत के लिए पहले अदालत जाने के लिए कहना एक अव्यावहारिक बाधा है। अदालत जाने को कहना सिर्फ प्रक्रिया को कमजोर और बाधित करेगा पीठ ने कहा, उस व्यक्ति को संबंधित अदालत में जाने और उसे उस धमकी के बारे में सूचित करने के लिए बाध्य करना, जिसके लिए धारा 195(1)(बी)(i) के तहत शिकायत दर्ज करने और सीआरपीसी की धारा 340 के तहत जांच की आवश्यकता होती है, इस प्रक्रिया को केवल कमजोर और बाधित करेगा। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि यह निर्विवाद तथ्य बना हुआ है कि धारा 195-ए के तहत अपराध एक संज्ञेय अपराध है। अदालत ने कहा कि एक बार ऐसा हो जाने पर सीआरपीसी की धारा 154 और 156 के तहत पुलिस की कार्रवाई करने की शक्ति पर संदेह नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने केरल, कर्नाटक हाईकोर्ट के दृष्टिकोण को कानूनन असंतुलित बताया अदालत के फैसले में केरल और कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा लिए गए दृष्टिकोण को गलत और कानून की दृष्टि से असंतुलित घोषित किया गया। केरल द्वारा दायर मामले में हाईकोर्ट ने आरोपी को यह कहते हुए जमानत दे दी कि पुलिस को आईपीसी की धारा 195ए के तहत अपराध के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार नहीं है और केवल अदालत को ही उक्त अपराध के विरुद्ध शिकायत दर्ज करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार की अपील को स्वीकार कर लिया।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 29, 2025, 04:23 IST
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