तारिक़ नईम: ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते

ये ख़याल था कभी ख़्वाब में तुझे देखते कभी ज़िंदगी की किताब में तुझे देखते मिरे माह तुम तो हिजाब ही में रहे मगर हमें ताब थी तब-ओ-ताब में तुझे देखते कभी कोई बाबत-ए-हुस्न हम से जो पूछता तो हम अहल-ए-इश्क़ जवाब में तुझे देखते किसी और धज से बनाते तेरा मुजस्समा कभी हम जो ऐन-शबाब में तुझे देखते कभी देखते तुझे तीरगी के जमाल में कभी रौशनी के सराब में तुझे देखते हमारे यूट्यूब चैनल कोSubscribeकरें।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 10, 2025, 12:46 IST
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