अंतरराष्ट्रीय: पाकिस्तान के लिए नासूर बने आतंकी, भारत में अशांति फैलाने के लिए तीन दशक तक 'तालिबान' का पोषण...

हाल के हफ्तों में पाकिस्तान और अफगान-तालिबान के बीच वर्षों बाद गंभीर सैन्य झड़पें हुईं, जिसमें दर्जनों लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। रविवार को कतर और तुर्किये की मध्यस्थता से दोनों देशों ने एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हुए संघर्ष विराम पर सहमति जताई। अब वे अगली बातचीत के लिए इस्तांबुल में मिलेंगे। फिर भी, स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है, क्योंकि संघर्ष के मूल कारणों का अब तक समाधान नहीं हो पाया है। इस्लामाबाद का दावा है कि अफगान-तालिबान, अफगानिस्तान के चरमपंथी इस्लामी शासन की तर्ज पर पाकिस्तान को बदलने के लिए पाकिस्तानी-तालिबान (जिसे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान या टीटीपी भी कहा जाता है) को पनाह व सहायता दे रहा है। तालिबान ने उसके आरोपों को नकार दिया है। वर्ष 2021 के मध्य में अमेरिका और उसके सहयोगियों के पीछे हटते ही अफगानिस्तान में तालिबान ने सत्ता में अपनी वापसी के बाद फिर से मुल्क को आतंकी समूहों का अड्डा बना दिया, जिनमें टीटीपी सबसे प्रमुख है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, अमेरिका द्वारा छोड़े गए सात अरब डॉलर मूल्य के कुछ हथियार टीटीपी तक पहुंच गए हैं। जैसे-जैसे टीटीपी की पाकिस्तान में गतिविधियां बढ़ने लगी हैं, इस्लामाबाद अफगान-तालिबान सरकार के प्रति अधिक असहिष्णु हो गया है। वह भारत के साथ काबुल के संबंधों को लेकर भी बेहद चिंतित है। तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने हाल ही में नई दिल्ली का दौरा किया, जहां उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया। पाकिस्तान पारंपरिक रूप से अफगानिस्तान को अपना प्रभाव क्षेत्र मानता रहा है। पाकिस्तान की सेना और आईएसआई ने अफगानिस्तान से उत्पन्न खतरे का मुकाबला करने के लिए निवारक और दंडात्मक रणनीति अपनाई है। इसमें हजारों शरणार्थियों को अफगानिस्तान वापस भेजना शामिल है। इस्लामाबाद ने अफगानिस्तान में बमबारी भी की है। इस महीने स्थिति तेजी से तब बिगड़ गई, जब टीटीपी ने पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर हमले शुरू कर दिए, जिसमें 23 लोग मारे गए। जवाब में पाकिस्तान ने टीटीपी पर हमले के बहाने काबुल और कांधार में हमला किया, जहां तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्ला अखुनजादेह रहते हैं। जवाबी कार्रवाई में तालिबानी बलों ने विवादित 2,600 किलोमीटर लंबी अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा (जिसे डूरंड रेखा भी कहा जाता है) पर पाकिस्तानी चौकियों पर हमला किया, जिसमें दोनों तरफ के लोग मारे गए। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के पारगमन मार्गों को भी अवरुद्ध कर दिया, जिससे अफगान अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का लगा। हालांकि, तालिबान ने अपने माल को ईरानी बंदरगाहों के रास्ते भेज दिया, लेकिन यह आर्थिक रूप से उतना व्यावहारिक विकल्प नहीं है। पाकिस्तानी हमले में कई अफगान क्रिकेटरों की मौत हो गई, पर इस्लामाबाद ने आम लोगों पर हमले से इन्कार किया। दरअसल, पाकिस्तान की दुविधा यह है कि उसने तीन दशकों तक तालिबानी आतंकवादी समूह का पोषण और समर्थन किया। जैसा कि पाकिस्तानी रक्षा मंत्री कवाजा आसिफ ने हाल ही में स्वीकार किया कि इस्लामाबाद लंबे समय से दोधारी विदेश नीति अपनाता रहा है। उसने सार्वजनिक रूप से आतंकवाद का विरोध किया है, जबकि भारत से होड़ करते हुए क्षेत्रीय बढ़त हासिल करने के लिए अफगान-तालिबान और उसके सहयोगी चरमपंथी गुटों का इस्तेमाल किया है। तालिबान जब 2021 में सत्ता में लौटा, तो पाकिस्तान ने सोचा था कि वह उसके इशारे पर काम करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और चरमपंथ को बढ़ावा देने का दांव उल्टा पड़ गया। -द कन्वर्सेशन से

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Oct 24, 2025, 05:30 IST
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