वाहन प्रदूषण को रोकने में पिछली सरकार ने की खानापूर्ति : मुख्यमंत्री
विधानसभा में सीएम ने पेश की कैग की रिपोर्ट, तत्कालीन आप सरकार पर उठाए सवालनिगरानी स्टेशनों की कमी, अपर्याप्त डाटा, उत्सर्जन का आकलन न होना आदि कमियां शामिल------------2016 से 2020 के बीच 2137 में से 1195 दिन वायु गुणवत्ता खराब व गंभीर श्रेणी में रहीअमर उजाला ब्यूरोनई दिल्ली। विधानसभा में मंगलवार को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने राजधानी के वायु प्रदूषण से जुड़ी कैग की रिपोर्ट पेश की। उन्होंने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि राजधानी की प्रदूषण नियंत्रण (पीयूसी) प्रमाणन प्रणाली में ढेरों कमियां हैं। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था भी खराब है। वाहनों के उत्सर्जन भार से जुड़े आंकड़े भी ठीक नहीं हैं। इसका मिला-जुला असर जहरीली हवा के तौर पर मिला है।सीएम ने कहा कि वर्ष 2015 से 2021 की रिपोर्ट बताती है कि आप सरकार के कार्यकाल के दौरान वाहनों से होने वाले प्रदूषण को रोकने की दिशा में कई खामियां रहीं। सिर्फ खानापूर्ति ही की गई। आप सरकार के पास दिल्ली की सड़कों पर चलने वाले वाहनों का ठीक से आंकड़ा तक नहीं था। वाहन विशेष की संख्या कितनी है, इसकी जानकारी विभाग को नहीं थी। इन वाहनों के उत्सर्जन भार का आकलन सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों (सीएएक्यूएमएस) से मिले आंकड़ों में अशुद्धियों हैं। इसके अलावा कैग रिपोर्ट ने निजी वाहनों के उपयोग को कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन की बसों और अंतिम माइल कनेक्टिविटी के विकल्पों की कमी की ओर भी इशारा किया है।कैग रिपोर्ट में पिछली सरकार पर मोनो रेल और लाइट रेल ट्रांजिट व इलेक्ट्रॉनिक ट्रॉली बसों जैसे कम प्रदूषणकारी विकल्पों को गंभीरता से ध्यान नहीं देने की ओर भी इशारा किया है। रिपोर्ट के निष्कर्ष इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि 2016 से 2020 के बीच 2,137 दिनों में से 1,195 दिनों (56 फीसदी दिन) के लिए दिल्ली में वायु गुणवत्ता खराब से गंभीर के रूप में वर्गीकृत की गई। इसका सीधा असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। दिल्ली की वायु गुणवत्ता विभिन्न क्षेत्रों जैसे परिवहन, आवासीय, सॉल्वैंट्स, बिजली संयंत्रों और सड़क की धूल से प्रभावित होती है। रिपोर्ट में परिवहन क्षेत्र द्वारा उत्पन्न प्रदूषण को शामिल किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वाहनों से होने वाला उत्सर्जन प्रदूषण का प्रमुख स्रोत है, जिसकी उत्पत्ति दिल्ली में होती है, इसलिए इसे दिल्ली सरकार की ओर से नियंत्रित किया जा सकता है।सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की अपर्याप्ततासीएम के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि 9,000 बसों की आवश्यकता के मुकाबले केवल 6,750 बसें उपलब्ध थीं। मार्च 2015 में बेडे में 4712 बसें थीं जिसमें से 4180 बसें सड़कों पर थीं। 2019-20 में यह संख्या घटकर 3222 पहुंच गई। इसका परिवहन विश्वसनीयता पर सीधा असर पड़ा। वहीं, बस मार्गाें को युक्तिसंगत नहीं बनाया गया जिससे काफी लोग परिवहन सेवा से वंचित रहे। इसमें 657 अधिसूचित बस मार्गों में 238 मार्ग कवर ही नहीं किए जा रहे थे। इससे लोगों को मजबूरी में निजी वाहनों का उपयोग करना पड़ा। साथ ही, मार्गाें के अध्ययन के लिए 2.97 करोड़ रुपये में दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टी माॅडल ट्रांजिट लिमिटेड से अध्ययन कराने का प्रस्ताव की योजना तैयार की गई, लेकिन 2021 तक लागू नहीं की गई।ग्रामीण सेवा वाहन नहीं बढ़ेवर्ष 2010 में दिल्ली सरकार ने ग्रामीण सेवा वाहन स्कीम शुरू की। जनसंख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई, लेकिन ग्रामीण सेवा वाहनों की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। इससे वायु प्रदूषण में भी बढ़ोतरी हुई। उत्सर्जन जांच में अनियमितताएंरिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि सार्वजनिक बसों और ग्रामीण सेवा वाहनों की नियमित उत्सर्जन जांच नहीं हुई। इस संबंध में एनजीटी ने निर्देश दिया था, लेकिन इसका पालन नहीं किया गया। प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र जारी करने में भी कई खामियां पाईं गईं।यह कमियां भी मिली-4,007 डीजल और 1.08 लाख पेट्रोल/सीएनजी/एलपीजी वाहनों को उत्सर्जन सीमा से अधिक होने के बावजूद पास किया।-एक मिनट में जांच और प्रमाणपत्र जारी करने जैसे अव्यावहारिक मामले सामने आए।-जांच केंद्रों की कोई तीसरे पक्ष से लेखापरीक्षा या उपकरणों का अंशांकन नहीं हुआ।-रिमोट सेंसिंग डिवाइस जैसे तकनीकी विकल्पों को अपनाने में देरी जबकि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश थे।-केवल 12% वाहनों की स्वचालित फिटनेस जांच हुई, शेष मैनुअल निरीक्षण पर आधारित थी।- 2018-19 में 64% वाहन फिटनेस जांच के लिए नहीं आए।- 60% फिटनेस प्रमाणपत्र उत्सर्जन जांच के बिना जारी किए।-सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करते हुए बीएस-3 व चार वाहनों का अनियमित पंजीकरण हुआ। - 47.51 लाख जीवन समाप्त वाहनों में से केवल 2.98 लाख अपंजीकृत हुए और जब्त 347 वाहनों में से कोई भी स्क्रैप नहीं हुआ।--------ई-वाहनों की धीमी प्रगतिकैग रिपोर्ट में बताया गया है कि राजधानी में ई-वाहनों को बढ़ावा देने के लिए पिछली सरकार ने कई तरह की लापरवाहियां बरतीं। चार्जिंग स्टेशनों की सीमित और असमान उपलब्धता के कारण वित्तीय प्रोत्साहन के बावजूद ई-वाहनों की संख्या कम बढ़ी। साथ ही, गैर-मोटर चालित परिवहन की उपेक्षा की गई। साइकिल और पैदल यात्री सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया। वहीं, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के तहत उपाय (ऑड-ईवन, ट्रकों पर प्रतिबंध) को उच्च प्रदूषण स्तर के बावजूद लगातार लागू नहीं किया गया। साथ ही, अंतरराज्यीय बसों के लिए आईएसबीटी विकसित नहीं हुए, जिससे दिल्ली ट्रांजिट हब बनी रही। इसके अलावा दिल्ली प्रबंधन एवं पार्किंग नियम 2019 को लागू नहीं किया गया जिससे जाम और उत्सर्जन बढ़ा।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Apr 01, 2025, 20:08 IST
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