कपड़े खरीदते वक्त पर्यावरण की भी सोचें: अभी न चेते तो कचरे के अंबार बढ़ते जाएंगे, कम करना असंभव हो जाएगा

कभी दिवाली, होली और जन्मदिन पर मिलने वाले कपड़ों को लेकर मन में ललक और साल भर की प्रतीक्षा रहती थी, लेकिन बदलते माहौल में तो हर दिन नया कपड़ा भी मिल जाता है और उसके बावजूद निरंतर बदलाव की चाहत बनी रहती है। अभी तो यह संकट पूरी तौर पर समझ में नहीं आ रहा, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब प्लास्टिक की तरह कपड़ों को कतरने और उनसे उत्पन्न संकट पर आंसू बहाने में दुनिया लग जाएगी। वैसे इस बाबत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा शुरू हो गई है और सरोकार प्रकट किया जाने लगा है कि कपड़ों का भंडारण अपरिग्रह के सिद्धांत के अनुरूप ही हो, लेकिन दिखावे की इस दुनिया में सबसे आसान है अपने पहनावे में नित नए बदलाव कर और फास्ट फैशन के नाम पर सुलभ होते सस्ते कपड़े बदल कर प्रवाह में बने रहना। प्लास्टिक रेशे से बने प्रदूषणकारी कपड़े भी उत्तरदायी नियमों के दायरे में रहने चाहिए हममें से ज्यादातर इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि कपड़ों को बनाने में प्लास्टिक का इस्तेमाल बहुत बड़ी मात्रा में होता है। तथ्य यह भी है कि जहां पूर्व में कपड़ों को बनाने के लिए कपास से बने सूत का ही बहुतायत में उपयोग होता था, वहीं आज इसका स्थान सिंथेटिक धागों ने ले लिया है। सूती कपड़े तो आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्तियों की पहुंच तक ही सीमित रह गए हैं। अभी पहनने के कपड़े बनाने वाली कंपनियों पर किसी भी प्रकार का उत्तरदायित्व संबंधित कानून लागू नहीं होता, जबकि कपड़ा बनाने में प्लास्टिक का उपयोग भी किया जाता है, जो उत्तरदायित्व संबंधी कानून के दायरे में है। अतएव प्लास्टिक रेशे से बने प्रदूषणकारी कपड़े भी उत्तरदायी नियमों के दायरे में रहने चाहिए। नियम और कानून के अभाव में उसका लाभ लेते हुए बड़े-बड़े औद्योगिक घराने भी फास्ट फैशन की दौड़ में शामिल हो चुके हैं और उसे बढ़ावा देने संबंधी विपणन को प्राथमिक व्यापार के रूप में अपना चुके हैं। उचित तो यह हो कि शुरुआती दौर में ही नियम-कायदे बना कर उत्पादन एवं निष्पादन पर प्रभावी नियंत्रण कायम किया जाए। साथ ही आमजन के मध्य भी पर्यावरण को हो रहे प्रत्यक्ष आघात के बारे में चेतना जागृत की जाए। अन्यथा समस्या के विकराल होने के पश्चात नियंत्रण में जहां संसाधन तो विपुल मात्रा में लगेंगे, वहीं आदत पड़ जाने के कारण जनता उसके मोह से अपने को अलग करने में भी कष्ट महसूस करेगी। बाजार शहरी नियोजन के दायरे से बाहर निकलते जा रहे हैं भारत एवं अन्य विकसित एवं विकासशील देशों में आदिकाल से कपड़ों को उनकी पूर्ण जीवन शृंखला तक उपयोग करने की परंपरा रही है, जो कि कालांतर में लुप्त होती जा रही है। हालांकि इसके कुछ अपवादों में अहमदाबाद के दिल्ली दरवाजे और कुछ दक्षिण अमेरिकी एवं अफ्रीकी शहरों के उपयोग में लगाए जा रहे बाजारों में अभी भी सेकेंडहैंड कपड़ों का व्यापक स्तर पर व्यापारिक लेन-देन हो रहा है। इनकी विशेषता यह है कि देश कोई भी हो, सेकेंडहैंड कपड़ों के बाजार में प्रभुत्व तथाकथित रूप से अनपढ़, ग्रामीण और पिछड़ी महिलाओं का ही रहता है। ये अनौपचारिक बाजार मूलतः महिलाओं में स्वरोजगार का बड़ा माध्यम होते थे, जिनके माध्यम से इन महिलाओं में व्याप्त नैसर्गिक व्यावसायिक प्रतिभा को अभिव्यक्त किया जाता था। लेकिन पूर्व की भांति यह परंपरा अथवा बाजार शहरी नियोजन के दायरे से बाहर निकलते जा रहे हैं। यदि सेकेंडहैंड बाजार के उन्नयन की चर्चा भी होती है, तो यूरोप में स्थापित रिवाइटल शृंखला के प्रकार की बड़ी दुकान स्थापित करने की ही वकालत की जाती है। भारत में परंपरागत रूप से सेकेंडहैंड कपड़ों के बदले बर्तन एवं घरेलू उपयोग की वस्तुओं की अदला-बदली एक आम चलन हुआ करता था, जिससे सभी के हित सध जाते थे। ब्रांडेड कपड़ों को किराये पर देने संबंधी पहल सेकेंडहैंड सामान के व्यापार को भी औपचारिक रूप प्रदान करने हेतु स्टोर कायम कर देने से लाभ चंद व्यक्तिओं तक सीमित रह जाएगा। पूरी दुनिया में सेकेंडहैंड कपड़ों के उपयोग को प्रोत्साहन देने के लिए अभियान के साथ तत्संबंधी जनचेतना जागृत करने की दिशा में भी कार्य किए जा रहे हैं। युवा पीढ़ी को भी अपने भविष्य के मद्देनजर निरंतर की जाने वाले शॉपिंग से विराम देने, पर्यावरणसम्मत कपड़ों के चयन और परिजनों में साझा तौर पर उपयोग को बढ़ावा देने संबंधी संकल्प लेने होंगे। जयपुर में वर्ष 2015 में रीवायर नाम से एक युवा उद्यमी ने ब्रांडेड कपड़ों को किराये पर देने संबंधी पहल की थी, किंतु 10 वर्ष पूर्व की यह पहल शायद समय से पूर्व और समझ के दायरे से बाहर थी। लेकिन वर्तमान समय में उक्त प्रकार के विकल्प सृष्टि को कायम रखने के लिए नितांत आवश्यक हैं। यदि हम अभी न चेते तो कचरे के अंबार बढ़ते जाएंगे और उन्हें कम करना असंभव हो जाएगा।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Mar 18, 2025, 05:14 IST
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