टाइम मशीन: प्रवासियों को लेकर अमेरिकी दुविधा की दास्तां, साल दर साल ऐसी रही है कहानी

वकील और ट्रैवल एजेंट समझा रहे हैं कि अमेरिका मत जाइए। डोनाल्ड ट्रंप फुफकार रहे हैं। अमेरिका के हवाई अड्डों पर सख्त पड़ताल चल रही है। लोगों को अपने ग्रीन कार्ड छोड़ने के लिए कहा जा रहा है। अमेरिका में रहना है, तो पचास लाख डॉलर यानी करीब 43 करोड़ रुपये वाला गोल्ड कार्ड लेना होगा। दूसरी बड़ी जंग के बाद अमेरिका की तरक्की जिन प्रवासियों के जरिये ही आई थी, जिन्हें यहां अवसर मिले और जिन्होंने अवसर बनाए, उनके लिए यह मुल्क इस वक्त दर्दनाक बेरुखी से भरा है। सो आइए, विराजिए टाइम मशीन में, हम उस दौर में चलते हैं, जिसके बाद अमेरिका दुनिया भर के लोगों के लिए सपनों का देश हो गया था। हम न्यूयॉर्क के हार्बर पर हैं और सामने है दुनिया की मशहूर स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी। लोग बता रहे हैं कि राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन यहां एक बड़े क्रांतिकारी कानून पर दस्तखत करेंगे। यहां इमिग्रेशन एंड नेशनलिटी एक्ट पर दस्तखत होंगे, जिसके बाद अमेरिका अपने दरवाजे दुनिया भर के प्रवासियों के लिए खोल देगा। इसे मिशीगन के सीनेटर फिलिप हर्ट और न्यूयॉर्क के प्रतिनिधि इमैनुअल सेलर के नाम से यानी हर्ट एंड सेलर एक्ट भी कहा जाएगा। यह कानून अमेरिका को बदल देगा। अभी हम करीब दो सदी पीछे चलते हैं, क्योंकि प्रवासियों को लेकर अमेरिकी नीति निर्धारकों की दुविधा की दास्तां वहीं से शुरू होती है। यह 1790 का साल है। निर्विरोध निर्वाचित पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन ने एक साल पहले 1789 में न्यूयॉर्क में शपथ ली है। अमेरिका में नागरिकता कानूनों की शुरुआत हो रही है। अमेरिकी कांग्रेस ने न्यूट्रलाइजेशन एक्ट पारित किया है, जिसमें कोई व्यक्ति अमेरिका में दो वर्ष और किसी एक राज्य में एक वर्ष रहता है, तो उसे अमेरिकी नागरिक माना जाएगा। मगर ठहरिए, यह छूट केवल श्वेतों के लिए है। अलबत्ता यह कानून लंबा नहीं टिकना है। टाइम मशीन अब 19वीं सदी के मध्य में अमेरिका के पश्चिमी तट पर मंडरा रही है। आप जहाजों से उतर रहे आयरिश और जर्मन लोगों की भीड़ देख रहे होंगे। यह अमेरिका में यूरोप से प्रवास की सबसे बड़ी लहर की शुरुआत है। आयरलैंड में अकाल पड़ा है। जर्मनी में आर्थिक संकट है। हजारों लोग अमेरिका पहुंच रहे हैं। 19वीं सदी के अंत में ब्रिटेन और स्कैंिडनेविया के प्रवासी भी अमेरिका आ रहे हैं। अमेरिका में प्रवासियों के नए दल पूर्वी और दक्षिण यूरोप से आए हैं, जिनमें पोलिश, इतालवी, रूसी, आस्ट्रो हंगेरियाई और बड़ी संख्या में पूर्वी यूरोप के यहूदी हैं। अब टाइम मशीन कैलिफोर्निया की तरफ बढ़ रही है। इस इलाके में गोल्ड रश शुरू हो गई है और चीनी मजदूरों के जहाज अमेरिकी तटों पर लंगर डालने लगे हैं। यही वह मौका है, जब अमेरिका में चीन विरोधी राजनीति की शुरुआत होती है। व्हाइट हाउस में विराज रहे हैं 21वें राष्ट्रपति चेस्टर ए आर्थर। अमेरिका के पश्चिमी राज्यों की राजनीति में चीन के कामगारों को लेकर गुस्सा बढ़ रहा है। कैलिफोर्निया के सीनेटर जॉन एफ मिलर ने एक कानून का मसौदा पेश किया है। और यह लीजिए, 6 मई, 1882 का अखबार बता रहा है कि अमेरिकी कांग्रेस ने चाइनीज एक्सक्लूजन एक्ट पारित कर दिया है। यह अमेरिका का पहला कानून है, जो राष्ट्रीयता के आधार पर प्रवासियों को रोकता है। अब अगले दस साल के लिए चीनी लोगों का अमेरिका में प्रवास प्रतिबंधित है। पहले से आ चुके लोगों को नागरिकता नहीं मिलेगी। यह कानून अमेरिका में सबसे लंबा चलेगा। 1943 में जब अमेरिका को दूसरे विश्वयुद्ध में चीन की मदद की जरूरत होगी, तब यह कानून वापस लिया जाएगा। अब हम बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में आ गए हैं। यह 1924 का साल है। अमेरिकी कांग्रेस ने जॉनसन रीड एक्ट यानी इमिग्रेशन एक्ट पारित कर दिया है। कानून की अगुवाई 30वें राष्ट्रपति काल्विन कूलिज ने की है। इस कानून में देशों के आधार पर प्रवासियों का कोटा तय किया गया है। दक्षिण और पूर्वी यूरोप वाले अमेरिका न आ सकेंगे। एशिया वाले तो कभी नहीं। उन पर सख्त पाबंदी है। यहीं से अमेरिका के बॉर्डर कंट्रोल की शुरुआत होती है। यह 1940 से 1960 के दशक हैं। अमेरिका को प्रवास नीति में रोमांचकारी बदलाव करने पड़े हैं। 1930 की महामंदी ने अमेरिका को तोड़ दिया है। राष्ट्रपति रूजवेल्ट की पत्नी एलेनॉर रूजवेल्ट प्रवासियों को लेकर उदार होने के अभियान का नेतृत्व कर रही हैं। डेमोक्रेट राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट हिचकते-ठहरते प्रवासियों को लेकर नियम बदल रहे हैं। 1946 में अमेरिका ने एलियन रजिस्ट्रेशन एक्ट पारित किया है। विदेशियों को फॉर्म आई 151 पर नागरिकता मिली है और कार्ड दिया गया है। यही ग्रीन कार्ड है, जिसकी जड़ें तलाशते हुए हमारी टाइम मशीन अमेरिका के अतीत में मंडरा रही है। 1948 में डिस्प्लेस्ड पर्सन्स एक्ट बनेगा, जो युद्ध से तबाह यूरोपीय शरणार्थियों को स्वीकार करेगा। अब हम 1960 के दशक की तरफ बढ़ते हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कामगारों की अभूतपूर्व कमी है। तकनीक और औद्योगिक विकास तेज है। अमेरिका में हाईवे बन रहे हैं, आटोमोबाइल उद्योग रफ्तार पर है। सिलिकॉन वैली बन रही है। आईबीएम की शुरुआत के साथ तकनीकी कामगारों की मांग बढ़ी है। यह दौर अमेरिका और रूस के बीच होड़ का है। दोनों अंतरिक्ष में पहुंच रहे हैं और एक-दूसरे की तबाही के साज-ओ-सामान जुटा रहे हैं। यह शीतयुद्ध का युग है। अमेरिका को बड़ी संख्या में युवा प्रशिक्षित लोग चाहिए। कानूनी बाधा रहने तक उनके आने का कोई रास्ता नहीं है। बदलते वक्त ने अमेरिका को प्रवासियों के लिए सबसे उदार मुल्क बनने पर बाध्य कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी इस बदलाव का नेतृत्व कर रहे हैं, मगर अचानक उनकी हत्या हो गई। कैनेडी की हत्या के शोक से उबर कर अमेरिकी कांग्रेस ने हरबर्ट सेलर एक्ट यानी क्रांतिकारी इमिग्रेशन एंड नेशनलिटी एक्ट को पारित कर दिया है। अब टाइम मशीन स्टेच्यू आफ लिबर्टी के ठीक ऊपर है। यह तीन अक्तूबर, 1963 है। स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी के नीचे भारी भीड़ और तालियों के बीच राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने इमिग्रेशन एंड नेशनलिटी एक्ट पर दस्तखत कर दिए हैं। यह कानून राष्ट्रीयता के आधार पर प्रवासियों के कोटे की प्रणाली को खत्म करता है, जो 1920 से जारी था। राष्ट्रपति जॉनसन के शब्द हवा में गूंज रहे हैं-पुराना कानून अमेरिकी लोकतंत्र के मूल सिद्धांत का उल्लंघन करता था। अमेरिका में प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता के आधार पर महत्व और अवसर मिलने चाहिए। हमने एक क्रूर और स्थायी गलती को सुधारा। यात्रीगण कृपया ध्यान दें! यह 1963 नहीं, 2025 है। इससे पहले कि नए इमिग्रेशन नियमों को लेकर अमेरिकी अधिकारी हमें तलाश लें, अपने-अपने ग्रीन कार्ड लेकर हमें तत्काल यहां से निकलना होगा। फिर मिलेंगे अगले सफर पर

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Mar 30, 2025, 05:45 IST
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