Book Review: एहसासों की गहराई से ख़लिश के मोती तलाशते विशाल बाग़, वीराने तक जाना है...
विशाल बाग़ पेशे से आईटी इंजीनियर हैं। लिखते भी हैं और जो लिखते हैं उसे जीते भी दिखते हैं। आमतौर पर माना यही जाता है कि क़लमगीरी कल्पनाओं का कमाल है। विशाल बाग़ के एहसासों की गहराई सिर्फ आशिक़ी की नहीं है। उनकी पुरख़ों की जड़ें कश्मीर से जो उखड़ीं तो अगली नस्लें चाहकर भी फिर उस धरती पर जलसों के बीज बो नहीं पाईं। उसी दर्द को पोटली में दबाए दरबदर शायर हैं विशाल बाग़। इन दिनों वह पुणे में रहकर लिखते हैं और दुनिया भर में पढ़े जाते हैं। पढ़ने से ज्यादा उनको सुनना सुकून देता है,लेकिन अपने ख्वाहिशमंदों की गुज़ारिश पर उन्होंने अपने अब तक के लिखे को किताब की शक्ल दी है और नाम रखा है,वीराने तक जाना है विशाल बाग़ को पढ़ना उन एहसासों को फिर से जीने जैसा है,जिन्हें हम और आप में से तक़रीबन हर किसी ने क़रीब से जाना है,समझा है और किसी न किसी के साथ साझा भी किया है। वह तिश्नगी का मातम नहीं मनाते। न ही रफ़ीक़ के रक़ीब बन जाने पर गुस्सा ही होते हैं,वह बस उन लम्हों को जीते हैं,जो साथ बीते और जिनकी यादें सबसे ख़ुशनुमा हैं। वह लिखते हैं.. लफ़्ज़ों से बनती जाती सब तस्वीरों को देखा है मैंने उसके हाथों लिक्खी तहरीरों को देखा है.. . मुझको उसकी नज़रें अपने चेहरे पे महसूस हुईं इसका मतलब उसने मेरी तस्वीरों को देखा है.. और,विशाल बाग़ ज़िंदगी की हर लहर को किनारे तक आने का पूरा समय देते हैं। अपने आसपास हो रही हलचलों पर भी उनकी बारीक़ नज़र है। बदलते वक़्त से वह मुंह नहीं मोड़ते। सुबह के अख़बार से लेकर सुनी सुनाई रवायतों से आंखें मिलाते हुए वह लिखते हैं.. ये अक्सर सोचता हूं कुछ अलग इस बार आया हो है मुमकिन ख़ून से खाली मेरा अख़बार आया हो ….. मुहब्बत आग का दरियासुना हमने भी है लेकिन, कोई मिलता नहीं जो डूब के इस पार आया हो बदलते कारोबारी माहौल में जब येन केन प्रकारेण कुर्सी पर बने रहना ही कामयाबी की असल पहचान बन चुकी हो तो ईमानदारों की नस्ल को धरती से गायब कर देने की चालें भी ख़ूब चली जा रही हैं। लेकिन विशाल बाग़ अपने लिए नहीं अगली नस्ल के लिए बर्बाद होने की ज़िद पकड़े हैं.. मेरे सब दुश्मनों को शाद कर दो मसीहाओ!मुझे बर्बाद कर दो . जो अगली नस्ल का साया बनेंगे उन्हीं पौधों की मुझको खाक कर दो या फिर..
- Source: www.amarujala.com
- Published: Dec 29, 2022, 12:46 IST
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