मुद्दा : हिंसक स्थानीय भाषाबोध के खतरे, निर्णायक हस्तक्षेप की दरकार

देश इन दिनों दो तरह के भाषा विमर्श से जूझ रहा है। एक तरफ स्थानीय राजनीतिक विरोध के बहाने राजभाषा को निशाना बनाया जा रहा है, तो दूसरी तरफ राजभाषा का विरोध तो नहीं हो रहा, लेकिन स्थानीय भाषा बोध को स्थापित करने के बहाने उसे बोलने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। तमिलनाडु की भाषाई राजनीति में प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य की अपनी हालिया यात्रा के दौरान हस्तक्षेप भी किया है, लेकिन महाराष्ट्र में हिंदी भाषियों के साथ हो रही बदसलूकी की घटनाओं पर अब तक न तो राज्य और न ही केंद्र की ओर से कोई निर्णायक हस्तक्षेप होता दिख रहा है। महाराष्ट्र में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ता उन लोगों को जबर्दस्ती मराठी बोलने को मजबूर कर रहे हैं, जो गैर-मराठी भाषी हैं। इनमें ज्यादातर हिंदी भाषी हैं। ऐसे लोग ज्यादातर सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बड़े बैंकों, सार्वजनिक उपक्रमों और केंद्रीय सेवाओं में कार्यरत हैं। राज ठाकरे के कार्यकर्ताओं के निशाने पर दुकानों और डिपार्टमेंटल स्टोर में काम करने वाले गैर-मराठी भाषी भी हैं। महाराष्ट्र में बीती तीन फरवरी को राज्य सरकार के दफ्तरों में मराठी में काम करना, बोलना, कंप्यूटर की-बोर्ड आदि का उपयोग जरूरी कर दिया गया था। बड़ा हिंदी क्षेत्र इसके समर्थन में नजर आया। लेकिन हिंदी भाषियों को इस बात का इल्म नहीं था कि जिस मराठी भाषाबोध की प्रशंसा में वे खड़े हैं, वही भाषाबोध उनके ही लोगों को निशाने पर लेने का जरिया बन जाएगा। केंद्रीय सेवाओं की भर्ती परीक्षाएं देने महाराष्ट्र पहुंचे लोगों पर भी पूर्व में खूब हमला हुआ। चूंकि सरकारी नौकरियों की चाहत और मजबूरी सबसे ज्यादा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों के नागरिकों की रही है, लिहाजा इन हमलों के सबसे ज्यादा शिकार यहीं के नौजवान रहे। मुंबई की सड़कों पर ऑटो और टैक्सियां दौड़ाने वाले ज्यादातर लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। शुक्र है कि अभी उन्हें निशाने पर नहीं लिया जा रहा है। मुंबई में शिवसेना के उभार के पीछे मलयाली लोगों के खिलाफ चलाए गए आंदोलन की भी भूमिका मानी जाती है, लेकिन मलयाली लोगों के विरोध से शुरू उसकी यह राजनीतिक स्टाइल उसकी पहचान बन गई और अब हिंदी भाषियों के विरोध की तरफ बढ़ चुकी है। मराठी भाषाबोध का सम्मान होना चाहिए। लोग मराठी बोलना सीखें और लिखें, इस पर भी किसी को एतराज नहीं होना चाहिए, लेकिन इसके लिए बल प्रयोग और बदसलूकी हो, इसे सभ्य समाज में कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। महाराष्ट्र राजभाषा कानून के तहत मराठी की अनिवार्यता सिर्फ राज्य सरकार के दफ्तरों और राज्य की सार्वजनिक इकाइयों पर ही लागू होती है। केंद्र सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक आदि के लिए ऐसी अनिवार्यता नहीं है। वैसे भी केंद्र सरकार के दफ्तर पूरे देश में हैं और उसके अधिकारियों-कर्मचारियों का स्थानांतरण पूरे देश में होता रहता है। अगर मराठी भाषी इन आंदोलनकारियों जैसा भाषाबोध हर राज्य के स्थानीय भाषा-भाषियों में विकसित हो जाए, तो केंद्रीय कर्मचारियों के लिए मुश्किलें अनंत होंगी। तमिलनाडु की अपनी हालिया यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी ने तमिलभाषी और तमिल नेताओं से मांग रखी कि वे अपना हस्ताक्षर अंग्रेजी के बजाय तमिल में करें। तमिलनाडु में हिंदी भाषा का विरोध महाराष्ट्र से अलग है। वहां हिंदी का विरोध तो है, लेकिन हिंदी भाषियों का नहीं। बहरहाल अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य के मुख्यमंत्री स्टालिन से तमिल भाषा में मेडिकल की पढ़ाई शुरू कराने की मांग करके भाषा विरोधी इस विमर्श को नई गति दे दी है। विदेशी भाषा अंग्रेजी से मोहब्बत और देश की भाषा का राजनीति के नाम पर विरोध, स्थानीय भारतीय भाषाबोध के पाखंड को ही उजागर करता है। तमिल भाषाबोध के संदर्भ में देखें, तो महाराष्ट्र में हिंदी भाषियों को निशाने पर लेने से एक तरह से हिंदी का अपमान हो रहा है। उस हिंदी का, जिसे समूचे देश को एक सूत्र में बांधने वाली भाषा के तौर पर महाराष्ट्र के तेज पुरुष बाल गंगाधर तिलक ने 120 साल पहले स्वीकार किया था। स्थानीय भाषाएं फलें-फूलें, इससे कोई भी भाषाप्रेमी इन्कार नहीं कर सकता। मराठी हो या तमिल या हिंदी, ये हम भारतीयों की माताएं हैं। किसी एक क्षेत्र की भाषाई मां के ममत्व में दूसरी भाषा बाधा नहीं बनती। मराठी भाषी राजनीति को इसे समझना होगा। भाषाओं के लिए हिंसा कानून और व्यवस्था का भी मामला है। इसे राजनीति को भी देखना होगा और हिंसा को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो दूसरी भाषाओं के लोगों में प्रतिहिंसक भाषाबोध जाग सकता है। इस भाषाई खतरे की तरफ जिम्मेदार लोगों का ध्यान नहीं है, जो न तो भाषाओं के हित में है, और न ही देशहित में।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Apr 10, 2025, 06:44 IST
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