जल संकट: पंजाब का हठ, हरियाणा की छटपटाहट... भाखड़ा बांध पर नहीं थम रही तनातनी

भाखड़ा बांध से पानी की आपूर्ति को लेकर पंजाब और हरियाणा, दोनों पड़ोसी राज्यों में तीन सप्ताह से चला आ रहा टकराव खत्म होता नजर नहीं आ रहा। एक बूंद भी अतिरिक्त पानी नहीं देंगेपंजाब के इस हठ से हरियाणा में छटपटाहट है। दोनों के अपने-अपने तर्क हैं। हाईकोर्ट के दो बार दखल के बाद भी अब तक कोई हल नहीं निकला है। यह स्थिति दोनों राज्यों के लिए तो ठीक नहीं ही है, संघीय व्यवस्था के लिए भी चिंता की बात है। पहले हरियाणा को 8500 क्यूसेक पानी देने के भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के फैसले का पंजाब ने विरोध किया और हरियाणा की आपूर्ति में 4500 क्यूसेक पानी की कटौती कर दी। इससे हरियाणा में सिंचाई ही नहीं, बल्कि पेयजल संकट पैदा हो गया। करीब पांच जिलों में यह संकट अब भी खत्म नहीं हुआ है। बृहस्पतिवार को बीबीएमबी की बैठक में हरियाणा ने अगले सर्किल के लिए 10,300 क्यूसेक पानी मांगा, पर पंजाब का कहना है कि वह उसे उसके हक का 8900 क्यूसेक पानी ही देगा, क्योंकि उसे अपने इस्तेमाल के लिए भी पानी चाहिए। पंजाब ने भी नौ हजार क्यूसेक अतिरिक्त पानी की मांग बीबीएमबी से की है। यानी अभी पानी पर यह खींचतान जारी रहेगी। ब्यास व सतलुज के पानी के वितरण का जिम्मा भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के पास है। उसकी जिस बैठक में हरियाणा को अतिरिक्त पानी आपूर्ति का फैसला लिया गया, उसमें केंद्र, हरियाणा, राजस्थान के प्रतिनिधियों ने इसका समर्थन किया, हिमाचल तटस्थ रहाऔर पंजाब ने असहमति जताई। राज्यों की जरूरत के हिसाब से आपसी सहमति से पहले भी अतिरिक्त पानी दिया जाता रहा है, लेकिन इस बार बीबीएमबी ने बहुमत के आधार पर जो निर्णय लिया, उस पर पंजाब उखड़ गया। हरियाणा व राजस्थान में भाजपा की सरकारें हैं। आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार को बोर्ड का यह प्रयास नागवार गुजरा। पंजाब का तर्क है कि हरियाणा ने पहले ही अपने हिस्से से ज्यादा पानी इस्तेमाल कर लिया और अब अगले सर्किल के लिए भी तय कोटे से ज्यादा पानी मांग रहा है। पंजाब का तर्क वाजिब है, तो हरियाणा की मांग भी गलत नहीं। हरियाणा में ऐसा संकट पहले कभी पैदा नहीं हुआ। भाखड़ा से राज्य की पांच नहरों में पानी जाता है। भाखड़ा से आपूर्ति घटने से इन नहरों में पानी बहुत कम हो गया है। शहरों में जलघर सूख गए। टैंकरों से पानी सप्लाई किया जाता रहा। यह प्रदेश के लचर जल प्रबंधन का नतीजा है कि उसने 21 मई से शुरू होने वाले अगले सर्किल से पहले ही अपना कोटा पूरा कर लिया था। पानी की सियासत के इस वेग में दिल्ली व हिमाचल भी आ गए। दिल्ली ने कहा कि उसका पानी भी कम हो गया है। हिमाचल के मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि पानी तो हिमाचल से आता है, इसलिए उसके हितों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। जैसे-जैसे बीबीएमबी व हरियाणा ने दबाव बनाया, पंजाब का रुख और कड़ा होता जा रहा है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कंट्रोलिंग स्टेशन के गेट पर ताला लगवा दिया। बीबीएमबी हाईकोर्ट गया और पंजाब का दखल खत्म करने की मांग की। हाईकोर्ट के आदेश पर जब बीबीएमबी के चेयरमैन हरियाणा को पानी छोड़ने पहुंचे, तो उन्हें ऐसा नहीं करने दिया गया। पंजाब की सभी राजनीतिक पार्टियों ने पहले सर्वदलीय बैठक में और फिर विधानसभा के विशेष सत्र में पानी न देने के फैसले पर सहमति जताई। यही नहीं, बीबीएमबी को रद्द कर डैम सेफ्टी एक्ट में संशोधन करने का प्रस्ताव भी पास किया। हाईकोर्ट में उसकी पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई हो रही है। वर्ष 1966 में हरियाणा और हिमाचल को जब पंजाब से अलग किया गया, तभी से पानी के बंटवारे को लेकर कशमकश है। मुख्य विवाद सतलुज-यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) को लेकर रहा। सियासी पानी तो बहुत बहा, पर नहर नहीं बन पाई। पंजाब में 1982 में शुरू हुए धर्मयुद्ध मोर्चा ने एसवाईएल के निर्माण का विरोध किया, क्योंकि इससे सतलुज का पानी हरियाणा को मिलना था। एसवाईएल का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में है। पंजाब को एक बार फिर उसने फटकार लगाई है और आपसी बातचीत से हल की सलाह दी है। पंजाब का यह तर्क सही है कि इस साल 70 प्रतिशत से अधिक भूजल स्रोतों में पानी न के बराबर है, बांध सूख रहे हैं और उसे धान की खेती के लिए पानी की जरूरत है। पर पानी को लेकर भावनाएं भड़काना अल्पकालिक राजनीतिक लाभ दे सकता है, मगर इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। अभी तक केंद्र ने सीधे हस्तक्षेप नहीं किया है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद भी यदि हल नहीं निकलता है, तो केंद्र को हस्तक्षेप करना होगा या फिर प्रधानमंत्री को अनुच्छेद 257 में प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए फैसला लेना होगा। हरियाणा को भी चाहिए कि वह पानी के इस्तेमाल को लेकर संजीदा हो और अपने हिस्से से ही अपनी जरूरत पूरी करे, ताकि ऐसी नौबत ही न आए।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: May 19, 2025, 06:07 IST
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