महादेवी वर्मा की जयंती पर विशेष : दर्पण न देखने वालीं महादेवी वर्मा की रचनाएं समाज का आईना हैं...
साहित्यकार महादेवी वर्मा कभी दर्पण नहीं देखती थीं। आज जब संगमनगरी के साहित्यप्रेमी छायावाद काल की अनूठी रचनाकार की पुण्यतिथि मना रहे हैं, तब उनके मनमौजी स्वभाव को दर्शाती बातें भी याद कर रहे हैं। उनका प्रकृति प्रेम और मानवता के प्रति दायित्वबोध तो उनकी रचनाओं में दिखता है, लेकिन उनका खिलखिलाकर हंसना और तब के साहित्यकारों के साथ भाई-बहन के रिश्ते वाला गुण शिवचंद्र नागर और मैिथलीशरण गुप्त जैसे बड़े नामों के कई संस्मरणों मे लिखा मिलता है। प्रयागराज की सांस्कृतिक व साहित्यिक विरासत को संजोने में जुटे सरस्वती पत्रिका के संपादक और कई पुस्तकों के लेखक रविनंदन सिंह के पास महादेवी वर्मा से जुड़े उस समय के बड़े साहित्कारों के कई संस्मरण हैं। निबंधकार शिवचन्द्र नागर ने वर्ष 1951 के एक ऐसे ही संस्मरण में लिखा था कि जब एक बार वह एक पत्रिका लेकर महादेवी के पास गए और कहा कि ''आपका एक चित्र इस पत्रिका में छपा है, पर वह आपसे बिल्कुल नहीं मिलता।'' यह सुनकर महादेवी ने कहा कि ''मुझे तो पता नहीं, मिलता है या नहीं।'' शिवचन्द्र नागर ने जब वह पृष्ठ खोलकर दिखाया और कहा कि ''आप चाहे शीशे में मिलाकर देख लीजिए।'' महादेवी हंसते हुए बोलीं '' तो भाई, अब इसके लिए एक दर्पण भी रखना होगा।''नागर के संस्मरण में एक जगह लिखा है कि महादेवी अपने हाथ में आई पूरी पत्रिका पढ़ जाती थीं, किंतु उसमें अपने विषय में छपे लेखों और आलोचनाओं को कभी नहीं पढ़ती थीं।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Sep 11, 2025, 18:08 IST
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