Dharamshala: तिब्बत में चीनी सैन्य विस्तार हिमालयी पारिस्थितिकी और जल सुरक्षा के लिए खतरा, रिपोर्ट में खुलासा

तिब्बत में चीन का सैन्य विस्तार नाजुक हिमालयी पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। इसके साथ ही क्षेत्रीय जलवायु और जल सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहा है।यह खुलासा स्टॉकहोम के इंस्टीट्यूट फॉर सिक्योरिटी एंड डेवलपमेंट पॉलिसी (आईएसडीपी) की सोमवार को जारी एक ताजा रिपोर्ट में हुआ है। तिब्बत और निर्वासित तिब्बत के बारे में खबरें प्रकाशित करने वाले अंग्रेजी भाषा के समाचार पोर्टल फायुल ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की है। सुरक्षा की पारिस्थितिक लागत : तिब्बत में सैन्य विकास और पर्यावरण परिवर्तन शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि तिब्बती पठार के तेजी से सैन्यीकरण ने पर्यावरणीय परिवर्तनों को जन्म दिया है और इसका असर आसपास के क्षेत्र से भी आगे तक हो रहा है। दरअसल, तिब्बती पठार में एशिया के सबसे बड़े ग्लेशियर और पर्माफ्रॉस्ट (जमी हुई भूमि) भंडार हैं। आईएसडीपी ने चेताया है कि ये परिवर्तन दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में रहने वाली आबादी के लिए जल सुरक्षा और स्थानीय जैव विविधता दोनों को खतरे में डालते हैं। संवाद चीनी सेना का विशाल नेटवर्क रिपोर्ट बताती है कि 1950 के दशक की शुरुआती तैनाती से चीन की सैन्य मौजूदगी अब एक विशाल नेटवर्क बन गई है और यह उसकी रक्षा और आर्थिक रणनीति से जुड़ी है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के मुताबिक,पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने तिब्बत क्षेत्र में 70,000 से 1,20,000 सैनिक तैनात किए हैं। इनमें से लगभग 40,000 से 50,000 सैनिक अकेले तिब्बत में तैनात हैं। आईएसडीपी के मुताबिक, सैटेलाइट तस्वीरें और जमीनी अध्ययन दिखाते हैं कि पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्रों में सड़कें, सुरंगें, हवाई पट्टियां और सैन्य अड्डे बनाए जा रहे हैं, जिससे भूमि का नुकसान तेज हो रहा है। तिब्बती पठार पर 10.6 लाख वर्ग किमी पर्माफ्रॉस्ट है, जो दुनिया का सबसे बड़ा ऊंचाई वाला जमा हुआ क्षेत्र और अहम कार्बन सिंक है। लेकिन पिछले 30 वर्षों में यहां की जमीन का तापमान हर साल 0.1 से 0.5 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ा है। इससे पर्माफ्रॉस्ट कमजोर हो रहा है। सैन्य गतिविधियां इस नुकसान में और इजाफा करती हैं। इससे ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं और जल प्रणाली प्रभावित होती है। पर्यावरणीय-वैश्विक असर आईएसडीपी ने बताया कि पूरे तिब्बत में सैन्य ढांचे चीन की ताकत बढ़ाने में मदद करते हैं, लेकिन इनके पर्यावरणीय नतीजे गंभीर हैं। फायुल के मुताबिक, यह नुकसान स्थानीय पारिस्थितिकी को बिगाड़ता है और वैश्विक जलवायु अस्थिरता भी बढ़ाता है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Aug 21, 2025, 06:06 IST
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