दीपावली: ग्वालिन की पूजा का है विशेष महत्व, प्रतिमा से जुडे़ 16 दीप चंद्रमा की सोलह कलाओं का प्रतीक
बुंदेलखंड में मां लक्ष्मी एवं गणेश जी की पूजा में ग्वालिन की पूजा का भी विशेष महत्व है। दीपावली पर सभी घरों एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों में ग्वालिन की प्रतिमा की पूजा की जाती है, जो सुख, समृद्धि एवं सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है। 16 दीप चंद्रमा की सोलह कलाओं का प्रतीक ज्योतिषविद रजनी दीक्षित एवं आचार्य सुबोध शास्त्री के अनुसार बुंदेलखंड में दीपावली पर ग्वालिन की पूजा की परंपरा सदियों पुरानी है। ग्वालिन की प्रतिमा से जुडे़ 16 दीप चंद्रमा की सोलह कलाओं का प्रतीक माने जाते हैं। दीपों की संख्या पांच, सात और नौ भी होती है, जो प्रकृति के पंच तत्व, नवग्रह एवं संगीत के सात स्वरों का प्रतीक भी माना जाता है। ग्वालिन की पूजा के साथ मिट्टी के छोटे सात कलशों में खील, बताशा, फल एवं मिठाइयां रखी जाती हैं, जिसे शुभ माना जाता है। शुभ एवं मंगलमय है सुराती दीपावली की पूजा के लिए दीवार पर श्रीयंत्र के साथ सुराती बनाने की भी प्राचीन परंपरा है। यह गेरूआ रंग से बनाई जाती है। वरिष्ठ साहित्यकार एवं बुंदेली संस्कृति के विद्वान पन्नालाल असर के अनुसार दीवारी चित्रांकन को सुराती कहते हैं, जिसे बहुत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि दीपावली की रात्रि में देवताओं का आगमन होता है। उनके अनुसार सुराती स्वास्तिक को जोड़कर बनाई जाती है। 16 घर की लक्ष्मी जी की आकृति एवं नौ घर की भगवान विष्णु की आकृति बनाई जाती है। इसके साथ ही सूरज, चंद्रमा, धन से भरे सात घडे़, गणेश जी, तुलसी घर, कामधेनु गाय, हाथी आदि के चित्र भी बनाए जाते हैं। हाथ से बने लक्ष्मी एवं गणेश के चित्रों की भी पूजा होती है, जिसे पना कहा जाता है।
- Source: www.amarujala.com
- Published: Oct 15, 2025, 17:40 IST
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