Urdu Poetry: हमारे ज़ख़्म वर्ज़िश कर रहे हैं

नमक की रोज़ मालिश कर रहे हैं हमारे ज़ख़्म वर्ज़िश कर रहे हैं सुनो लोगों को ये शक हो गया है कि हम जीने की साज़िश कर रहे हैं हमारी प्यास को रानी बना लें कई दरिया ये कोशिश कर रहे हैं मिरे सहरा से जो बादल उठे थे किसी दरिया पे बारिश कर रहे हैं ये सब पानी की ख़ाली बोतलें हैं जिन्हें हम नज़्र-ए-आतिश कर रहे हैं अभी चमके नहीं 'ग़ालिब' के जूते अभी नक़्क़ाद पॉलिश कर रहे हैं तिरी तस्वीर, पंखा, मेज़, मुफ़लर मिरे कमरे में गर्दिश कर रहे हैं ~ फ़हमी बदायूनी

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Jun 02, 2025, 19:42 IST
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