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राहत इन्दौरी की ग़ज़ल: मोम के पास कभी आग को लाकर देखूँ...
Category: urdu-adab
Urdu Poetry: हमारे ज़ख़्म वर्ज़िश कर रहे हैं...
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Urdu Poetry: छोड़ो मोह! यहाँ तो मन को बेकल बनना पड़ता है...
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Urdu Poetry: दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था...
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