Yamuna Flood: दिल्ली में मृतप्राय यमुना को साल भर जीवन दे सकती है बाढ़, जल विशेषज्ञों ने सुझाई यह युक्ति

साल के करीब दस महीने मृतप्राय रहने वाली यमुना के लिए बाढ़ जीवन शक्ति बन सकती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि यमुना में जीवन डाला जा सकता है। इसके लिए नदी के बाढ़ क्षेत्र में जैव विविधता पार्क का विकास करना पड़ेगा। बाढ़ से यमुना ने दिल्ली में अपने दायरे को परिभाषित किया है। यह दिल्ली के लिए बड़ा सबक है। उनका कहना है कि यमुना ने अपने बाढ़ क्षेत्र के साथ इसमें मौजूद नम भूमियों की पहचान की है। जहां तक पानी गया, वह यमुना का अपना एक्टिव फ्लड प्लेन है। बाढ़ ने दिल्ली को सतर्क किया है कि बारिश के पानी के प्रबंधन की कारगर रणनीति जरूरी है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार के प्रो. राम कुमार के मुताबिक, नदी मुख्य चैनल तो है हीं, इससे एकदम सटा रिपेरीयन जोन, जहां पानी तो नहीं होता, लेकिन नमी पूरी रहती है। सक्रिय बाढ़ क्षेत्र, जहां बाढ़ कम आए या ज्यादा, पानी पहुंचना ही है। पुराना बाढ़ क्षेत्र वह हिस्सा है जहां ज्यादा बाढ़ आने पर पानी पहुंच जाता है। बांध क्षेत्र भी इसमें शामिल है। इनमें से किसी एक या दूसरे में छेड़छाड़ नदी की सेहत पर असर डालती है। दिल्ली में नदी के हर हिस्से में छेड़छाड़ की गई है। अगर दिल्ली को बाढ़ से नहीं घिरना है तो इसका प्रबंधन जरूरी है। तीस पार्क तक का हो सकता विकास मैली से निर्मल यमुना नाम की सिटीजन रिपोर्ट बताती है कि पल्ला से जैतपुर तक दिल्ली में यमुना के फ्लड प्लेन में 25-30 बायोडायवर्सिटी पार्क विकसित हो सकते हैं। इनमें बनी नम भूमियों में बाढ़ का अतिरिक्त पानी खुद ही रुक जाएगा। पौधों से हरियाली रहेगी। बाढ़ उतरने के बाद इससे यमुना के पानी की किल्लत कुछ हद तक दूर हो सकेगी। पौधरोपण का होता अपना विज्ञान विशेषज्ञ बताते हैं कि पौधरोपण के विज्ञान के हिसाब से यमुना के रिपेरीयन जोन व सक्रिय बाढ़ क्षेत्र में बड़े पौधे नहीं लगने चाहिए। इनमें काम मूंज, कुश, झाऊ, नरकुल, पटेरा, पार्स पेलम और पार्स पेलेडियम का है। नम भूमियों के साथ मिलकर यह नदी की किडनी का काम करते हैं। बड़े पेड़ पक्षियों के बसेरे के लिए इक्का-दुक्का ही लगने चाहिए. इनकी सही जगह पुराना बाढ़ क्षेत्र व बांध है। फ्लड प्लेन का पौधरोपण बेतरतीब, नहीं हो रहा फायदा बुंदेलखंड में करीब छह नदियों को पुनर्जीवित कर चुके और जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह बताते हैं कि करीब दो साल पहले यमुना संसद की अगुवाई में एक सर्वे किया था। वजीराबाद से कालिंदी कुंज तक नदी के किनारे-किनारे जो दिखा, उसमें पौधरोपण अवैज्ञानिक तरीके से हुआ था। रिपेरीयन जोन तक में चिनार, चेरीब्लॉसम समेत दूसरे कई तरह के बाहरी पौधे दिखे, जबकि सक्रिय बाढ़ क्षेत्र में पीपल, अर्जुन, बांस व जामुन की भरमार है। लगाने का तरीका भी ऐसा कि उनका बचना बहुत मुश्किल है। उन पौधों का तो कोई नामो-निशान नहीं, जो यहां लगने चाहिए। बाढ़ उतरने के क्रम में अब यमुना में स्थानीय पौधे ही बचे दिख रहे हैं। बाहर के पौधों को बाढ़ बहा ले गई। नदी से छेड़छाड़ दिल्ली की सेहत को करेगी खराब संजय सिंह बताते हैं कि इस बार जहां तक यमुना का पानी गया है, वह यमुना का अपना घर है। दिल्ली में फिलहाल इसका दायरा 97 वर्ग किमी है। यह दिल्ली के कुल क्षेत्रफल का सात फीसदी है। इसमें से 16 वर्ग किमी में होकर पानी गुजरता है, जबकि 81 वर्ग किमी में बाकी सारे क्षेत्र आ जाते हैं। इसके बड़े हिस्से पर सरकारी व गैर-सरकारी अतिक्रमण हुआ है। फिर भी जितना बचा है वह दिल्ली काे बचाने के लिए पर्याप्त है।

  • Source: www.amarujala.com
  • Published: Sep 05, 2025, 02:35 IST
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